उत्तर प्रदेश( दैनिक कर्मभूमि )अयोध्या
अयोध्या।वृन्दावनका उडि़या आश्रम आजकल चर्चामें है। चर्चाभी सामान्य कारणोंसे नहीं, अपितु पुरी के पूज्य शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी के वक्तव्यके कारण हो रही है।वह आश्रम विगत तीन वर्ष से ज्योतिष्पीठ और द्वारका पीठ के पूज्य शङ्कराचार्यजी के नियंत्रणमें है जो कि उसके ट्रस्टाधिपति बनाये गये हैं। इन पूज्यश्रीसे पहले पुरी के शङ्कराचार्यजी उसके ट्रस्टाधिपति थे। सम्भवतः उनकी निष्क्रियता के कारण ट्रस्टियों ने उनको पदमुक्त कर व्यवस्थापरिवर्तन कर दिया। यह तो#्सम्पत्तिप्रबन्धन सम्बन्धी विषय हुआ।
प्रसंग छिडा़ है तो दण्ड_संन्यास_परम्परा और इसके #विषयक्षेत्र पर भी चर्चा हो जाय। क्या केवल सम्पत्तिके लिये संन्यासियोंको विवाद करना चाहिये? क्या केवल भवन निर्माण और दान चन्दा इत्यादि आकर्षित करना ही संन्यासीके मठ/आश्रमका उद्देश्य है? क्या रासलीला कराना, द्वैतप्रचार करना, प्रेतपूजासदृश #अन्धविश्वासको बढा़वा देना, शङ्कराचार्य के कार्यक्षेत्र में है ? पुरीके शङ्कराचार्यजी किस परम्परा और किस सिद्धान्त का रक्षण और संवर्धन कर रहे थे और वर्तमान में वहां किस परम्परा और किस सिद्धान्त का रक्षण संवर्धन हो रहा है?
इस सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि क्या उडि़या बाबा शाङ्करपरम्पराके संन्यासियों के आदर्श कहे जा सकते हैं ??? हमतो उनको आदर्श नहीं मान सकते !
उन्हीके परमभक्तों द्वारा लिखित उनकी जीवनी और संस्मरण तथा उनकी भगवद्गीताकी टीका को पढ़कर जो हमने निष्कर्ष निकाला उसके अनुसार निस्संदेह वे अच्छे संत थे। उनकी क्षमाशीलता और वेदान्तके प्रति उनकी दृष्टि सराहनीय है। किन्तु, संन्यासग्रहणके उपरान्त उनका जो व्यावहारिक मार्ग रहा (यथा, नैष्ठिक ब्रह्मचारी होकर भी गुरुसेवा करनेके स्थान पर अन्य चमत्कारी संतों की खोज करना, भांति भांति की सकाम साधनायें करना और किसीमें भी स्थिर न रहकर थोडे़ ही समयमें निराश होकर छोड़ते जाना, संन्यासग्रहण के कुछ ही दिनके उपरान्त दण्डको फेंक देना, और दण्डत्यागके उपरान्तभी सिद्धियों-चमत्कारोंके लिये भटकना, आत्महत्या का संकल्प/प्रयास, शिवलिंग पर पैर रखकर सोना, पुनः सकाम भक्तिमें प्रवृत्ति इत्यादि) वह सब शङ्कराचार्य अथवा शाङ्करपरम्पराके संन्यासियोंके लिये अनुसरणीय नहीं हो सकता। हमें विश्वास है कि इस विन्दु पर सभी संन्यासी और सभी पूज्यपाद शङ्कराचार्य हमारे विचारका अनुमोदन करेंगे।
उत्तर प्रदेश सम्पादक अभिषेक शुक्ला
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