उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) जिस तरह से कोरोना महामारी का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है उसको देखते हुए लॉकडाउन खोलना किसे आबाद और किसे बर्बाद करेगा , देश की जिस अर्थव्यवस्था की दुहाई देकर लॉकडाउन को खोलकर गरीबों को मौत की भट्टी में झोंका जा रहा , और जिनके खून पसीने से अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा रहा है उस गरीब को उस अर्थव्यवस्था से क्या मिलेगा?
5 किलो चावल, 15 किलो गेंहू 1 किलो चना या मनरेगा के तहत 500 रुपये ?
20 लाख करोड़ की बात होती है लेकिन सच्चाई यह है कि गरीब आदमी को 20 हजार का लोन भी बैंक नही देता ।
इस लॉकडाउन को हटाकर गरीब को एक ईंधन समझकर कोरोना की भट्टी में झोंका जा रहा है क्योंकि सबको पता है न वो खुद को संक्रमित होने से बचा सकता है और न अपना इलाज करा सकता है, समझना ज्यादा मुश्किल नही कि इस फैसले से कौन आबाद होगा कौन बर्बाद –
-देश मे एक तरफ वो लोग हैं जिनके पास अच्छे मास्क सेनेटाइजर और किले जैसे बंद अपने बंगले जो अपनी एसी लगी लाखों की कार को भी सेनेटाइज करके बैठते हैं , और दूसरी तरफ वो लोग जिनके पास न तो मुँह को ढकने के लिए रुमाल है और न ही हाथों को साफ करने के लिए साबुन ।
– एक तरफ वो लोग हैं जिनके घाटे पूरे करने जिनको लोन में रियायत देने के लिए सरकार करोडो रुपये दे देती है और एक तरफ वो जिन्हें 5 किलो चावल के लेने के लिए भी सुबह से शाम तक कोटेदार के घर के चक्कर काटने पड़ते हैं ।
– देश मे एक तरफ वो लोग हैं जिनको सर दर्द भी हो जाए तो बड़े बड़े अस्पताल अपने 5स्टार कमरे उनके लिए खोल देता है और दूसरी तरफ वो जो अस्पताल के सामने रोड़ पर तड़फ तड़फ कर अपना दम तोड़ देते हैं ।
देश का गरीब तो रोटी में नमक लगाकर खा लेगा, लुंगी पहनकर जी लेगा जमीन में सो जाएगा, लेकिन रोज ऐय्यासी करने वाले हवाई जहाज और महँगी गाड़ियों में चलने वाले क्या करेंगे उनको अपने बैंक बैलेंस और अपनी लाइफ स्टाइल की चिंता होती है उनके अपने रोज के लाखों रुपए के खर्चे की चिंता होती जो एक मजदूर गरीब 12 घंटे काम करके अपने खून पसीने को बहाकर उनके लिए जुटाता है, इसलिए उन्हें इससे कोई फर्क नही पड़ता कि वो मजदूर कोरोना में जीता है कि मरता है, क्योंकि एक मरेगा दूसरा आएगा , उनका काम नही रुकना चाहिए । आखिर वो ही तो देश हैं और उनकी व्यवस्था अर्थव्यवस्था। गरीब मजदूर का वजूद सिर्फ जमीन में रेंगने वाले एक कीड़े का है और कुछ नही ??
अगर इस समस्या के निदान की बात की जाए तो मेरे दिमाग मे कुछ उपाय आते है उनमे से फैक्ट्री उधोगों को गाँव की तरफ लगाने की बात हो , आत्मनिर्भर बनाने की जो बात हो रही इसके तहत गरीब को सरकारी बैंक दुनिया भर की फॉर्मेलिटी के बिना सिर्फ ग्राम प्रधान के रिकमंडेशन लेटर से अपना व्यवसाय लगाने के लिए कर्ज दें, और ग्राम पंचायत स्तर पर सरकार लोगो के प्रशिक्षण और उनके उधोगों के लगाने में उनकी सहायता करे, और यह सब ग्राम प्रधान के अंदर हो क्योंकि एक गाँव मे उसके लोगों की स्थिति ग्राम प्रधान से ज्यादा कोई नही जानता ।
ब्यूरो रिपोर्ट दैनिक कर्मभूमि सचिन तिवारी
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