राजस्थान राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) छीपाबड़ौद:श्री हनुमान सिद्ध साधना आश्रम अमीरपुर खेड़ी पर महन्त सेवानन्द पुरी महाराज के सानिध्य ओर मार्गदर्शन में मनाए जा रहे शारदीय नवरात्रि महोत्सव में माता के महागौरी अवतार की पूजा आराधना की गयीं।महन्त पुरी महाराज ने अपने सम्बोधन में साधकों से कहा कि दुर्गा के आठवें रूप को माता महागौरी,कहा जाता है,पौराणिक कथा के अनुसार माता महागौरी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी तब तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता महागौरी को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था।अलख निरंजन ज्योति ध्यान योग केंद्र के कार्यकारी अध्यक्ष शंकर लाल नागर ने कहा कि शारदीय नवरात्र अब अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है।आज मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा की जाती है।आठवें दिन महागौरी की पूजा देवी के मूल भाव को दर्शाती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार,मां के नौ रूप और 10 महाविद्याएं सभी आधिशक्ति के अंश और स्वरूप हैं लेकिन भगवान शिव के साथ उनकी अर्धांगिनी के रूप में महागौरी सदैव विराजमान रहती हैं। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है।नवरात्रि की अष्टमी तिथि साधना कि दृष्टि से विशेष महत्व रखती है क्योंकि कई लोग इस दिन कन्या पूजन कर अपना व्रत खोलते हैं।देवीभागवत पुराण के अनुसार,देवी पार्वती का जन्म राजा हिमालय के घर हुआ था। देवी पार्वती को मात्र 8 वर्ष की उम्र में अपने पूर्वजन्म की घटनाओं का आभास हो गया था और तब से ही उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या शुरू कर दी थी। अपनी तपस्या के दौरान माता केवल कंदमूल फल और पत्तों का आहार करती थीं,बाद में माता ने केवल वायु पीकर तप करना आरंभ कर दिया,तपस्या से देवी पार्वती को महान गौरव प्राप्त हुआ था इसलिए उनका नाम महागौरी पड़ा।साधक इस दिन दुर्गा सप्तशती के अष्ठम चरित्र का पाठ करना विशेष फलदायी माना जाता है।
संवाददाता कुलदीप सिंह सिरोहीया बारां छीपाबड़ौद
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