स्टोन क्रेशर पर्यावरण के नियमों को धत्ता बताते हुए हो रहे संचालित

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय(दैनिक कर्मभूमि)चित्रकूट।जिला में इन दिनों संचालित क्रेशर नियमों को दरकिनार कर पतौड़ा , गोंडा ,कटका व भोरा बजनी मे जंगल के बीच वह बस्ती से महज कुछ ही दूर स्थापित है । एक तरफ पर्यावरण को बचाने और उसे संरक्षित करने के लिए जहां देश दुनिया भर के लोग जुटे हुए है सरकार लाखों करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। वही जिले का प्रदूषण विभाग नेताओं और रसूखदारों के दबाव में आकर स्टोन क्रेशर प्लांटों को मनमानी करने की खुली छूट दे रहा है। विभाग के आला अधिकारी यह जानते हैं कि यह स्टोन क्रेशर समस्त प्रकार के नियमों को ताक पर रखकर काम कर रहे हैं लेकिन इनके खिलाफ कार्यवाही करने मे अधिकारियों के पसीने छूट रहे हैं । मुख्य वजह यह है कि क्रेशर प्लांट छोटे मोटे लोंगो के नहीं रसूखदारों के हैं। जिससे अधिकारियों को कार्रवाई करने मे सांप सूंघ जाता है।

 

 

भरतकूप क्षेत्र के कई पहाड़ो में लगातार अवैध खनन भी जारी है। इसकी जानकारी भी खनिज विभाग को है लेकिन खनिज विभाग और राजस्व विभाग की लापरवाही और मिलीभगत होने की वजह से सरकार के लाखों रुपए के राजस्व को चूना लग रहा है । कई स्थानों पर तो ऐसे क्रेशर संचालित है कि महज कुछ ही दूर पर बसती है । और किसानों की उपजाऊ जमीन भी लेकिन क्रेशर की डस्ट की वजह से अब किसानों की उपजाऊ जमीन बंजर हो रही है जिससे किसानों को अब अपना परिवार पालना मुश्किल हो रहा है किसानों के द्वारा कई बार क्रेशर से उड़ने वाली डस्ट के बारे में भी उच्च अधिकारियों से शिकायत की गई है लेकिन अधिकारी सुनने को तैयार नहीं है क्योंकि भाई बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया इस अंदाज में जिले के उच्च अधिकारी और पर्यावरण विभाग के अधिकारी चल रहे हैं। इतना ही नहीं यहां स्टोन क्रेशर से निकलने वाली धूल प्राथमिक शाला के शासकीय स्कूल के बच्चों को प्रभावित करती है। वहीं सैकड़ों एकड़ में लगी हुई हरी-भरी फसल को भी खासा नुकसान पहुंचाती है। आलम यह है कि इसके वन विभाग सीमा से लगे होने के कारण व अवैध ब्लास्टिंग की आवाज से जहां एक तरफ ग्रामीणों की दीवारें थर्रा रही हैं और बच्चे सोते से जाग कर रोने लगते हैं तो वही जंगली जानवर अब अपना आवाज सुनकर जान बचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र की ओर पलायन करते हैं और होता यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में जानवर पहुंचने से पहले ही किसी न किसी हादसे का शिकार हो जाता है ।

 

ग्रामीणों का कहना है कि यहां क्रेशर से उड़ने वाली डस्ट की वजह से अब ग्रामीणों को अस्थमा टीवी व अन्य कई घातक बीमारियों की चपेट में आ चुके हैं बच्चा जन्म लेने के बाद ही कुपोषित हो जाता है । ग्रामीणों के बाद सैकड़ों बार अधिकारियों से शिकायत की गई लेकिन क्रेशर संचालकों पर कार्रवाई नहीं हुई भले ही ग्रामीण केसर संचालकों के गुर्गों के शिकार हो गए हैं । ग्रामीणों ने यह भी कह डाला कि यहां क्रेशर संचालकों व उनके खिलाफ आवाज उठाता है उसे किसी ना किसी बहाने किसी रूप में महिला व एससी एसटी वाले लोगों से कुछ पैसा रुपया देकर झूठी रिपोर्ट लिखा कर हटवा दिया जाता है जिसकी वजह से खनिज माफिया और क्रेशर संचालकों की मनमानी का शिकार अब ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोग हो रहे हैं । यहां तक की स्टोन क्रेशर जंगल के बीच संचालित होने से वन्य प्राणियों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है वहीं वन्य प्राणियों का यह शरण स्थल है। प्रशासनिक जिम्मेदार अधिकारी नियम को ताक मे रखकर जंगल के बीच क्रेशर प्लांट की अनुमति दे दिए हैं। ग्रामीणों ने बताया कि प्लांटों के चलने से पत्थरों से उड़ने वाले छोटे-छोटे टुकड़े लोंगो को घायल कर रहे हैं। इतना ही नहीं क्रेशर व पत्थर की खदानों में काम करने वाले मजदूरों को कोई सुरक्षा सेफ्टी नहीं दिए गए है प्लांट के मालिक मजदूरों का शोषण कर रहे हैं इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। यही वजह है कि संचालित पत्थर की खदानों में कई मजदूर अपनी जान गवा चुके हैं लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों को इसका कोई फर्क नहीं पड़ रहा है वजह यह है कि समय से ही जिम्मेदार अधिकारियों को पत्थर के खदान संचालक व क्रेशर मालिकों के द्वारा खुशियांना तौर पर सुविधा शुल्क पहुंचा दी जाती है।

 

*क्रेशर की दूर तक जाती है धूल,बर्बाद हो रही किसानों की फसल, जिम्मेदार मौन*

 

 

 

तहसील कर्वी के पतोडा, गोंडा, कटका गोंडा व भोरा, बजनी में संचालित दर्जनों क्रेशर संचालकों की मनमर्जी से राजस्व को करोड़ों का चूना लग रहा है। वहीं एनजीटी के निर्देशों की धज्जियां उड़ रही है प्लांटों मे नियम ताक पर है। इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। बताया गया कि यहां पर संचालित क्रेशर प्लांट मालिकों की सत्ता पर काबिज नेताओं से मजबूत पकड़ है जिससे लाखों करोड़ों रुपये का राजस्व की खुलेआम चोरी करते हैं खदानों मे जितनी क्षमता है कहीं उससे ज्यादा अवैध खनन किया गया है। लाखों करोड़ों की खनिज संपदा दोहन की गई है। खदानों की जितनी गहराई लंबाई चौड़ाई कर दी गई है यदि निष्पक्ष हो जाये तो अवैध खनन करने वाले रसूखदार प्लांट मालिकों की खटिया खड़ी और बिस्तर गोल हो जाएगी।

 

*कागजों तक सीमित है नियम*:

 

कर्वी तहसील क्षेत्र मे दर्जनों स्टोन क्रेशर प्लांट संचालित हैं जिनके द्वारा नियम का पालन नहीं किया जाता। जबकि प्रदूषण विभाग की अहम भूमिका होती है इनके संचालन के लिए प्रदूषण विभाग की बकायदा टीप लगती है जिम्मेदारों के द्वारा नियम तो बनाये गए हैं लेकिन सिर्फ कागजों मे पालन हो रहा है यथा स्थिति नियम ताक पर हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नियमों का स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि क्रेशर प्लांट की बाउंड्री वाल चारों तरफ 15 फुट की ऊंचाई हो इतना ही नहीं मशीनों में जहां से डस्ट उड़ती है वहां छन्ना लगा होना चाहिए इसके साथ ही क्रेशर प्लांट जब चालू हो उस समय धूल ना उड़ने के लिए उसमे लगातार पानी की सिंचाई करना अनिवार्य है। साथ ही आसपास एरिया मे पर्यावरण को संरक्षित करने पेड़ पौधे लगाना अनिवार्य है। किन्तु यहां नियम को ताक मे रखकर मनमानी चल रही है और जिम्मेदार प्रदूषण विभाग, वन विभाग, राजस्व विभाग खुली छूट देकर कुंभकर्ण निद्रा में लीन हैं स्थानीय ग्रामीणों ने मनमाने तरीके से चल रहे क्रेशर प्लांट संचालन पर रोक लगाने एवं कार्र्वाई की मांग की है।

 

*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

*जनपद* चित्रकूट