क्या पीडीए बड़े वोट बैंक में संगठित हो पाएगा बृजभूषण सिंह परिहार 

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) कानपुर भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 2027 की प्रथम तिमाही में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं।वर्तमान समय में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का सुरक्षा कवच हिंदुत्व और मंदिर अभी तक अभेद्य बना हुआ है।यद्यपि वर्ष 2024 में इंडिया गठबंधन ने कड़ी चुनौती दी और लगभग उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित सफलता भी प्राप्त की।उत्तर प्रदेश में जातिगत वोट बैंक का बोलबाला है।हिंदुत्व में हिंदू समाज की समस्त जातियां समाहित है।इसलिए यह संगठन आकार की दृष्टि से बड़ा हो जाता है।परंतु पी डी ए की भी अपनी महत्ता और प्रासंगिकता है । पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक मिलकर एक बड़े समूह का निर्माण करते हैं।बहुसंख्यकवाद अल्पसंख्यक का काउंटर है।वैचारिक धरातल में अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के नाम पर बहुसंख्यक वाद को वोट बैंक के रुप में रिझाने का काम किया गया जो लगभग 60 वर्षों के अनवरत संघर्ष के बाद फलीभूत हुआ।उत्तर प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के पास इसका कोई काउंटर नहीं था अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण के नाम का दंश झेलती हुई पार्टी प्रमुख विपक्षी दल तो बनी रही।लेकिन सत्ता से दूर ही रही जिसके परिणाम स्वरूप पार्टी ने पी डी ए के स्वरूप को आकार दिया।पिछड़े और दलित हिंदुत्व में भी समाहित है।परंतु हिंदुत्व के भेदभावपूर्ण रवैये और जाति श्रेष्ठता के बोध के तले दबे पिछड़ों और दलितों को लामबंद करना सरल है।दलित विमर्श और बामसेफ की भारी भरकम वोट बैंक उचित नेतृत्व के अभाव में अभी दिशाहीन है।यद्यपि इतिहास में 200 वर्षों से बहुत बड़े-बड़े दलित आंदोलन हुए जिसकी एक लंबी फेहरिस्त है।लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव केवल उत्तर प्रदेश में ही पड़ा। बसपा वर्तमान समय में दलितों के मध्य अपनी उपयोगिता और प्रासंगिकता खोती जा रही है।उच्च जातियों और कुलीन वर्ग का विरोध कर बसपा ने अपने आकार को बड़ा किया था।परंतु उन्हीं से मुहब्बत और उन्हीं से लड़ाई एक साथ नहीं चल सका 90 की दशक में आरक्षण के के आंदोलन ने पिछड़ी जातियों को लामबंद करने में महती भूमिका अदा की थी।इस दशक में जातिगत गणना अभी इतनी तेजी से जोर नहीं पकड़ पाई है।जितनी तेजी से आरक्षण ने अपनी जगह बनाई थी।अगर समाजवादी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व पर भारी पड़ना चाहती है।और 2027 के विधानसभा चुनाव में उसे सत्ता से बाहर करना है तो उसे पीडीए की बैठकों में धार देना पड़ेगा । बैठकों में जब तक किसी विशेष नारे और वैचारिकी का अभ्युदय नहीं हो पाया तो हिंदुत्व की बड़ी अवधारणा को पराजित करना असंभव है।दलित विमर्श के नए नायकों को जोड़कर उन्हें यथोचित स्थान देना चाहिए एवं सनातन संस्कृति के विरोधी के रूप में स्वयं को नहीं दिखाना चाहिए।बल्कि पाखंड और धर्मान्धता पर जोरदार प्रहार करके उनके तिलिस्म को तोड़ना होगा ।समाजवादी पार्टी ने अपने केंद्र बिंदु को निर्धारित तो कर लिया है ।परंतु अपने केंद्र बिंदु को अभी तक समाज में चर्चा का विषय नहीं बना पाई है।कोई भी राजनीतिक दल जब एक केंद्र बिंदु की स्थापना कर उसे चर्चा में ला देता है।तो सफलता की सीढ़ियां छू लेता है।जैसे भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व,बहुसंख्यक वाद अल्पसंख्यक तुष्टिकरण,राम मंदिर आदि को चर्चा में लाकर स्वयं को बहुत मजबूत कर लिया।समाजवादी पार्टी में राजनेताओं और कार्यकर्ताओं की लगी लंबी कतारें उसके वर्चस्व को स्थापित तो करती हैं।परंतु वास्तविक समाजवादी विचारधारा के प्रणेता की उपस्थिति की कमी है जैसे श्री राम मनोहर लोहिया जनेश्वर मिश्र आदि ।समाजवादी पार्टी को अपनी वैचारिकी को स्थापित करने के लिए एक अच्छे चेहरे की तलाश करनी होगी।एक ऐसा चेहरा जो समाजवादी विचारधारा को अंदर आत्म सात किए हो।समाजवादी विचारधारा से ही सनातन धर्म भरा हुआ है और उसी सनातन धर्म के द्वारा समाजवादी पार्टी की पराजय इतिहास के लिए चर्चा का विषय है तो सामाजिक मनोविज्ञान के लिए मस्तिष्क की ग्रंथि का विषय तो आधुनिक पूंजीवाद के लिए प्रचार तंत्र ही सर्वोपरि ऐसे ही चर्चा के रूप हैं ।

संवाददाता आकाश चौधरी कानपुर