पत्रकारिता एक गंभीर विषय जिसको लेकर सरकार मौन

उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) बिजनौर कई पत्रकार ने अपनी कलम के माध्यम से आजादी की आग को घी तेल देने का काम किया है क्या भारत में पत्रकारिता एक नया मोड़ ले रही है पत्रकारिता को लेकर वर्तमान समय में कई सवाल उठ रहे हैं एक तरफ कुछ पत्रकार पत्रकारिता के चरित्र को धूमिल कर रहे हैं वहीं दूसरा सवाल क्या शासन व प्रशासन प्रेस की आजादी पर पेहरा लगाने का प्रयास कर रही है। निडर होकर सच की आवाज को उठाना लोकतंत्र में आ वेल मुझे मार जैसा व खुद की मौत को आमंत्रित करना है यह सवाल आज हर किसी के मन में उठ रहे हैं पत्रकारों की सुरक्षा आज एक बड़ी चिंता का विषय है सरकार को पत्रकारों की सुरक्षा के लिए वर्तमान में एक अच्छी पहल करनी चाहिए व दुर्घटना बीमा की व्यवस्था भी करनी चाहिए ताकि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ निडर होकर समाज को एक नई दिशा में ले जाए इतिहास देखें तो भारत में पत्रकारिता ने आजादी के समय अपनी अहम भूमिका का निर्वहन कर गुलामी के दिन दूर करने का प्रयत्न किया मीडिया जहां संचार का साधन है वही परिवर्तन का माध्यम भी है लेकिन पत्रकारों पर निरंतर हो रहा अत्याचार व ईमानदार पत्रकारों की हत्या जैसेे मामलों में प्रेस की आजादी को संकट के घेरे में ला दिया है इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट के सर्वे के अनुसार वर्ष 2016 में पूरी दुनिया में 122 पत्रकार और मीडिया कर्मी मारे गए। आज कई ऐसा पत्रकार नहीं होगा जिसे रोज मारने डराने की धमकी नहीं मिलती होगी कई बार पत्रकारों पर भीड़ द्वारा किए गए हमलों में सरकार की भी शहर होती है इसी वजह

बहुमत का रंग कुछ यूं चढ़ा की यथार्थवादी भी उपन्यासकार बन गए ।
खरी-खोटी करने वाले पत्रकार भी देखो आज सत्ता के चाटुकार बन गए ।

लेकिन सरकार शायद यह भूल रही हैै कि लोकतंत्र की सफलता या विफलता उसकी पत्रकारिता पर निर्भर करती है मैं मेरी कलम के माध्यम से सरकार से पत्रकारिता के हित के लिए अहम कानून बनाए जाने की मांग करता हूं जिससे देश की तस्वीर बदल सके। मेरी निजी सोच

 

रविंद्र कुमार रिपोर्टर धामपुर तहसील प्रभारी बिजनौर