कुलपति के कार्यों को सराहा “मेरा गांव, मेरी जिम्मेदारी” की टीम ने।

उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि)जौनपुर

जौनपुर।वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रोफ़ेसर राजाराम यादव के कार्यकाल का यह अंतिम महीना चल रहा है खबर है जून के अंतिम सप्ताह तक पूर्वांचल विश्वविद्यालय को नया कुलपति मिल जाएगा, ऐसे में वर्तमान कुलपति के 3 वर्ष के कार्यकाल को लेकर मीडिया में चर्चाओं का दौर जारी है। इसी क्रम में ‘मेरा गांव मेरी जिम्मेदारी’ की टीम कुलपति के कार्यों की सराहना करते हुए उनके 3 साल के कार्यकाल को पूर्वांचल विश्वविद्यालय के लिए उत्कृष्ट माना है। “मेरा गांव मेरी जिम्मेदारी” के प्रणेता प्रदीप मिश्रा ने कहा कि जब पूरे देश में बेरोजगारी बढ़ रही थी, लोगों की नौकरियां जा रही थी, ऐसे में पूर्वांचल विश्वविद्यालय में कुलपति ने जॉब फेयर लगाकर अपने 3 साल के कार्यकाल में पूर्वांचल जैसे पिछड़े क्षेत्र के हजारों युवाओं के लिए रोजगार के द्वार खोले। नरेश चंद गौतम के बाद यह पहले कुलपति ऐसे हुए हैं, जिन्होंने पूर्वांचल विश्वविद्यालय के इंफ्रास्ट्रक्चर में इजाफा किया। पीजी हॉस्टल, मूल्यांकन भवन, विश्वस्तरीय रज्जू भैया संस्थान, शिक्षकों ,कर्मचारियों के लिए आवासीय परिसर आदि बनवाया। इन 3 वर्षों में पूर्वांचल विश्वविद्यालय में कई रोजगार परक पाठ्यक्रम खोलकर पूर्वांचल के युवाओं के लिए नए अवसर प्रदान किए। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन, विविध शैक्षणिक गतिविधियां व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के संचालन सहित परिसर में एकेडमिक माहौल को स्थापित किया तथा वर्षों से लंबित परिसर के शिक्षकों की मांगों को पूरा करते हुए प्रोफेसर बनाया, तरक्की दी। कुलपति ने विश्वविद्यालय में शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ सामाजिक सेवा का कार्य भी हाथ में लिया। 50 गांव को गोद लेकर अभावग्रस्त लोगों का मेडिकल चेकअप, स्वच्छता अभियान, टी.बी उन्मूलन कार्यक्रम में विश्वविद्यालय का सक्रिय सहयोग, शैक्षणिक उन्नयन एवं जागरूकता के कार्यक्रम, वृक्षारोपण, स्किल डेवलपमेंट जैसे विविध कार्यक्रमों का सफल संचालन किया। कुलपति प्रोफेसर राजाराम के कार्यकाल में पूरे 3 वर्ष उनके हर निर्णय में छात्र हित केंद्र बिंदु में रहा। छात्रों से वह सीधे जुड़े रहे और छात्र समस्याओं का निस्तारण शीर्ष प्राथमिकता पर करवाया। अपने कार्यकाल के दौरान कुलपति ने कई साहसिक निर्णय लिया और कभी दबाव में नहीं आए, जिसके कारण कतिपय लोगों ने उन्हें विवादों में भी रखा।
भवदीय प्रदीप मिश्र
प्रणेता (मेरा गांव, मेरी जिम्मेदारी)