उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) जौनपुर
सरपतहा जौनपुर ! पुलिस विभाग द्वारा पत्रकारों पर पुलिसिया तांडव, वर्दी की हनक तथा धौंस दिखाने, गुंडागर्दी, फर्जी मुकदमों में फंसाना, झूठे आरोप लगा कर जालसाजी के तहत फंसाना, बदसलूकी करना अभद्रता करना, अपमानित करना, ज्यादती करना यह सब बातें आज की कोई नई नहीं है बल्कि पत्रकारों के साथ घटित होने वाली आज के समय की सामान्य सी बातें हो गई हैं। यही मामला शाहगंज तहसील अंतर्गत सरपतहां थाने के सब इंस्पेक्टर रामविलास सहित कुछ और एस आई आजकल पत्रकारों को निष्पक्ष पत्रकारिता करने में बहुत बड़ा रोड़ा बन रहे हैं। सरपतहां पुलिस इस समय पत्रकारों तथा आम जनता के प्रति अत्याचार, दबंगई ,गुंडागर्दी, तानाशाही, प्रताड़ित करने तथा अन्याय करने की सारी हदों को पार कर गई है। यहां के क्षेत्र की आम जनता भी यहां की पुलिस के अन्याय तथा अत्याचार से त्रस्त है, जनता में हाहाकार मचा हुआ है। गौरतलब हो की अभी हाल ही में सारी जहांगीर पट्टी गांव के दो पक्षों के बीच मारपीट में घायल व्यक्ति की थानाध्यक्ष द्वारा तहरीर ना लेने, बार-बार दौड़ाने, थाने पर लंबे समय तक बिठाने और उचित कार्रवाई करने में हीला हवाली एवं उदासीनता बरते जाने की शिकायत की सूचना पर पहुंचे क्रांतिकारी पत्रकार परिषद उपाध्यक्ष व पत्रकार द्वारा पीड़ित से जानकारी लेने के संदर्भ में बातचीत करने पर पत्रकार की मोबाइल रामविलास सब इंस्पेक्टर तथा मौके पर पहुंचे सराय मोहिउद्दीनपुर चौकी इंचार्ज विवेक तिवारी द्वारा मिलकर छीन ली गई। दोनों लोगों ने पत्रकार के साथ अभद्रता किया, अपमानित बदसलूकी की तथा डांटा – डपटा। विवेक तिवारी पत्रकार पर मारने के लिए टूट पड़े और पत्रकार को 1 घंटे तक बैठाए रखे। बाद में इसकी सूचना क्रांतिकारी पत्रकार परिषद संस्थापक व पदाधिकारियों पत्रकार संघ के वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा पुलिस विभाग के आला अधिकारियों से शिकायत करने पर दबाव वश मोबाइल वापस किए तथा थाने पर से पत्रकार को जाने दिए। थाना क्षेत्र की जनता भी पुलिस के तानाशाही रवैया से असंतुष्ट है ।लोगों का आरोप है कि थाने के अधिकारी कर्मचारी तहरीर लेने तथा उचित कार्रवाई करने के बजाय दोनों पक्ष से सुलह समझौता कराने के चक्कर में ज्यादा रहते हैं इसके बारे में भी लोग तरह-तरह के सवाल खड़े कर रहे हैं। पत्रकारों के साथ ऐसी घटना घटने से लोकतंत्र के भविष्य पर दूरगामी परिणाम अत्यधिक भयावह साबित हो सकते हैं। यह अत्यंत गंभीर समस्या है कि जब पत्रकारों के साथ पुलिस द्वारा ऐसा व्यवहार किया जाता है तो आम जनता के ऊपर क्या गुजरती होगी। पत्रकारों की मोबाइल छीन लेना उन्हें थाने के अंदर जाने से रोकना ,निष्पक्ष पत्रकारिता में बाधा उत्पन्न करना, पत्रकारों पर हावी होना, डराना- धमकाना, उनके मनोबल को दबाना आदि मामले इस रहस्य के पीछे इशारा करते हैं कि कहीं उनकी पोल न खुल जाए, अंदर कोई आपत्तिजनक कार्य या भ्रष्टाचार में संलिप्तता या उनकी लापरवाही तथा उदासीनता न उजागर हो जाए । इसके पीछे कहीं थाने के कर्मचारियों की भ्रष्टाचार लूट – खसोट द्वारा किसी बड़े कारनामे का पर्दाफाश होने की बात तो नहीं है जिससे पत्रकारों को माइक तथा मोबाइल के साथ अंदर जाने से रोका जाता है।
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