उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) रायबरेली। ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को आवारा पशुओं से राहत दिलाने और गोवंश की रक्षा संरक्षा के नाम पर उत्तर प्रदेश सरकार बजट पानी की तरह खर्च कर रही है। इतिहास में पहली बार ग्रामीण क्षेत्रों में एक साथ इतने बड़े पैमाने पर गौशाला को विस्तार देने की कवायद शुरू हुई है।
जानकारी के अनुसार अब तक जिले भर में तीन साल के भीतर दर्जनों की संख्या में पशु संरक्षण केंद्र बन कर तैयार हो चुके हैं। जहां पर पशुओं के रहन-सहन, रख-रखाव और मीनू के हिसाब से इतना बड़ा बजट निर्गत हो रहा है कि यह बात या तो सम्बंधित विभाग को पता है या फिर खर्च का प्रस्ताव भेजने वाले गौशाला के संचालक ही जानते हैं। लेकिन इन सबके बावजूद जिले में किसान और आवारा पशुओं को कहीं से कोई राहत मिलती दिखाई नहीं दे रही है।
शहर से बाहर चाहे जिस सड़क पर आप निकल जाइए हर तरफ मवेशी फसलों को नुक्सान पहुंचाते दिख जाएंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में इस कदर बुरा हाल हो रखा है कि लोगों ने दलहन की खेती से कान पकड़ लिया है। नतीजे में अरहर और उड़द की कीमत आसमान छू रही हैं। दूसरी तरफ कोई वारिस नहीं होने की वजह से आवारा जानवरों की हालत भी सर्दी में बेहद खस्ता है। दिन भर खेतों को नुक्सान पहुंचाने के बाद रात को इन्हें सर छुपाने की भी जगह नहीं मिलती।
रात भर खुले आसमान तले ठंड खाकर जानवरों के बड़ी संख्या में मरने की खबर मिल रही है। इसके अलावा जो जानवर ठंड में बीमार पड़ते हैं उन्हें जीते-जी कुत्तों का शिकार होना पड़ रहा है। बुधवार को महराजगंज से दुसौती मार्ग पर ठीक सड़क के बगल जिस तरह कुत्ते जानवरों को नोच कर खा रहे थे यह सरकार की नीति और उसके सिस्टम सवाल खड़े करने के लिए काफी था। दूसरी तरफ जिला प्रशासन की तरफ से अफसरों के गौशाला में गोवंशो के साथ आस्थावान तस्वीरों के पीछे छिपे असली सच को भी आप इन तस्वीरों से बखूबी समझ सकते हैं।
सवाल उठता है कि जब सरकार लगातार आवारा मवेशियों को गांव से गौशाला पहुंचाने को निर्देशित कर रही है तो जनपद स्तर पर इस विषय को लेकर प्रशासन के लोग गम्भीर क्यों नहीं हो पा रहे हैं। शुरुआती तौर पर प्रशासन को टीम बनाकर जिले भर में जानवरों का आकलन करना चाहिए। फिर उसी हिसाब से पशु संरक्षण केंद्र बनाए जाएं। उसके बाद भी जानवरों के फसलों को नुक्सान पहुंचाने पर ग्राम स्तर पर किसी की जवाबदेही निर्धारित किये बगैर समस्या किसी भी कीमत पर हल नहीं हो सकती।
हिंदी दैनिक कर्म भूमी
रिपोर्ट श्रवण कुमार रायबरेली
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