भारतीय इतिहास में सावरकर बनाम गांधी !

उत्तर प्रदेश( राष्ट्रीय दैनिक कर्मभूमि) जौनपुर

जौनपुर।महात्मा गांधी के सपनों का भारत बनाया गया । रामराज कि परिकल्पना पर काम हुआ । देश को रचा गया देश के लिए शहादत देने वालों को सदा याद भी किया जाता है । स्वतंत्रता के अद्भुत प्रहरियों को जो सम्मान मिलना चाहिए वो मिला की नहीं यह तो विचार का विषय है किन्तु हमने तार्किक रूप से ऐसे विषयों में पक्षपात कैसे पैदा किया यह वर्तमान में गंभीर विषय है जिसमें सावरकर बनाम गांधी की चर्चा को तूल दिया जा रहा । वीर सावरकर के स्वतंत्रता योगदान पर प्रश्न चिन्ह लगाने और भ्रांतियां फैलाने वाले मुट्ठी भर विद्रोहियों से एक संयोजी और स्वतंत्र पत्रकार होने के नाते ये पूछ्ना चाहूंगा की क्या देश के इतिहास में नेहरूवाद और इंदिरावाद के अतिरिक्त भी कुछ बचा है पढ़ाने को यदि हां तो फिर क्यों नहीं पढ़ाया जाता और पहले जो देश कालखंड की स्थिति थी उससे हम विरत कैसे हो गए ? ऐसे असाध्य प्रश्नों के उत्तर केवल वहीं दे सकता है जो निस्पक्ष रूप से भारतीय इतिहास के पन्नों को पलटा हो । ये देश जितना गांधी जी का है उतना ही सावरकर का भी है । जितना नेहरू जी का उतना ही गोपाल कृष्ण गोखले साहब का भी है । हम आजादी के जो ककहरे सीख के बड़े हुए है उसमे आजादी के संघर्षों में एकपक्ष और पक्षपात अध्ययन ही रखा गया जिसके पुख्ता प्रमाण है । कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे इस कालखंड में तारे ज़मीन पर उतरे थे या भगवान ने समूची सहस्त्राब्दी के महापुरुष कुछ ही दशक के अंतराल में हमें दे दिए। जैसे देश के लिए कोई गोल्डन पैकिज डील की हो ईश्वर ने। सारा टैलेंट एक ही वक़्त में दे दिया।

सच बोलूँ …तो आज उस दौर के आगे हम कहीं टिकते ही नही। सच बताईए, क्या आज के किसी एक भी स्वामी में आपको विवेकानंद का एक कण भी कहीं दिखता है? क्या देश में आज अरबिंदो का सब्सिट्यूट कहीं है? बात उद्योग की करें तो जमशेदजी टाटा कहाँ से लाएँगे? क्या अडानी या अम्बानी में आपको जमना लाल बजाज की एक इंच छवि दिखती हे ? या किसी आई ए एस की रगों में आपको सुभाष चंद्रा बोस का एक चुटकी ख़ून कभी दौड़ता हुआ महसूस हुआ ? क्या सरदार पटेल के हिमालय जैसे व्यक्तित्व में आपको मोदी कहीं छुपे नज़र आते हें ? क्या आज के किसी गीतकार की क़लम से जन गण मन का गीत काग़ज़ पर उतर सकता सकता है ? शायद जितना अंतर अम्बेडकर और मायावती के मत और मेधा में होगा उससे कहीं ज़्यादा अंतर सावरकर और अमित शाह के चरित्र और सत्यनिष्ठा में होगा ? जितना अंतर लोहिया और मुलायम के समाजवाद में है उतना ही अंतर नेहरू और राहुल की डिस्कवरी आफ इंडिया में भी है । नेहरू ने वेद और उपनिषद को खंगाला था, राहुल ने फ़ैक्टरी से आलू खंगाले है। ये पतन की पैमाईश नही, पतन की अंधी गहरायी है। आप में से किसी को हेगडेवार की संघी विचारधारा से गहरे मतभेद हो सकते हैं लेकिन फिर भी आपको ये स्वीकार करना होगा कि बीती एक सदी में लाखों लाख स्वयं सेवक जब अपनी सादगी पर क़ुर्बान हुए तब कहीं जाकर लालक़िले ने ध्वज को नमन किया है। लेकिन आज लखनऊ से लेकर मुंबई तक संघ के कौन से प्रचारक ट्रान्स्फ़र पोस्टिंग और दलाली का गिरोह चला रहे हैं ये मोटाभाई भी जानते है । मायावती और शिवपाल के दौर से ज़्यादा भ्रष्टाचार आज यूपी में है। जितनी रिश्वत गायत्री प्रजापति ने नही ली होगी उतनी रिश्वत सादगी के छद्म पर्याय यानी कलयुग के प्रचारक आज विधान सभा मार्ग पर ले रहे हैं। थोड़ा और इंतज़ार करिए, लखनऊ के बंगारू लक्ष्मण का चेहरा सार्वजनिक होगा। मित्रों, तुलसीदास ने कहा था, हरि अनंत हरि कथा अनंता। लेकिन अवध में आज राम की ही नही , हमारे नैतिक पतन की कथा भी अनंत है। इसलिए बात बढ़ाना नही चाहता। सिर्फ़ इतना कहना है कि पतन केवल कांग्रेस या भाजपा में नही , उद्योग, व्यापार, नौकरशाही में नही …..पतन हमारे सम्पूर्ण, सर्वस्व राष्ट्रीय चरित्र में है । ऑल अराउंड एंड एवरी व्हेर। इसलिए वो अख़बार भूल जाईए जिनके नाम इंक़लाब होते थे। जिन छापेखानो में ‘गांडीव ‘ छपते थे वो कब के बंद हो गये। आज तो 100-100 करोड़ की डील करने वाले दलाल देश के सबसे बड़े चैनल के मुख्य सम्पादक है। आज चार चार गुरुओं का गला दबाकर महंत बने बाबा दस हज़ार करोड़ के साम्राज्य के मालिक हैं। और जिस नम्बर दो के व्यापारी ने कभी बबलू श्रीवास्तव जैसे गुंडे के हाथ जोड़े हों आज वो दिल्ली के राजपथ का सबसे रसूखदार उद्योगपति है। मोटा भाई जानते है। मित्रों, दुर्भाग्य अब यही है कि ये लक्षण महाशक्ति का सपना देखने वाले देश के क़तई नही है। जिस देश के लिए १९६६ में माधव सदाशिव गोलवलकर ने लिखा था कि देश की अश्मिता पर देश के ही कलंक कालिख लगाते है ,बाहर से आए तो नौशिखिए होते है ।- पंकज कुमार मिश्रा एडिटोरियल कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर ।