*वर्ग संघर्ष को उकसाती राजनैतिक रैलियाँ-उदयराज मिश्र*

राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) अंबेडकर नगर

लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना और लोकतंत्र की जीवंतता का मूलमंत्र जनमानस द्वारा अपनी पसंद के मुताबिक मताधिकार का प्रयोग औरकि निर्वाचित प्रतिनिधियों के बहुमत से बनी सरकार में निहित होता है।जिसमें सत्ता पक्ष के साथ ही साथ मजबूत और संघर्षशील प्रतिपक्ष की नितांत आवश्यकता होती है।किंतु सत्ता की दहलीज तक जाने की ललक में राजनैतिक दलों द्वारा चुनावपूर्व की जा रही रैलियां दिनोंदिन जातीयता के पुट से लबरेज़ होती जा रही हैं।जिनसे अनेकता में एकता वाली हमारी समावेशी भारतीय संस्कृति जहाँ चुटहिल हो रही है वहीं कई ध्रुवों में बंटने के कारण समाज स्वयम अंतर्कलह तथा वर्गसंघर्ष की राह पर आगे बढ़ता दिख रहा है,जोकि न तो जनमानस के लिए लाभप्रद है और न देश के प्रति ही।अस्तु राजनैतिक रैलियों में जातीय और धार्मिक जमावड़े पर बंदिश समय की मांग तथा वक्त की नजाकत जान पड़ती है।
वस्तुतः भारतीय परिप्रेक्ष्य में राजनीति कभी भी धर्म से अलग नहीं रही है।यहां धार्मिक ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण सत्ता प्राप्ति के महाअस्त्र जैसे हैं।जिनका प्रयोग कमोवेश सभी दल करते हैं।काबिलेगौर है कि पाकदामन दिखने वाली कांग्रेस जहां मुस्लिम तुष्टिकरण करने में सिद्धहस्त है तो वहीं उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तो खुल्लमखुल्ला इसकी सरपरस्त है।यही कारण है कि सपा के नेतागण तो आतंकवादियों तक कि निंदा करने से डरते और बचते हैं।सपाइयों को हरवक्त अपने बोटबैंक खिसकने का डर बना रहता है।हालांकि बहुजन समाजवादी पार्टी तुष्टिकरण की राजनीति में सपा और कांग्रेस से काफी पीछे है किंतु जाति आधारित राजनीति का बीजमन्त्र इसी पार्टी की उपज और देन है।चुनावपूर्व जाति आधारित भाईचारा कमेटियों की घोषणा और चुनाव बाद उनका भंग किया जाना अब शिगूफा नहीं अपितु चलन बन गया है।जिसकी राह पहले सपा तो अब भाजपा और कांग्रेस ने भी पकड़ ली है।भाजपा जातीय सम्मेलन प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की आड़ में तो सपा फ्रंटल ऑर्गनाइजेशन के गठन के साथ करती दिख रही है।जिससे गांव से लेकर शहर तक मिलजुलकर रहने वाली हमारी भारतीय लोकसंस्कृति और परम्परा अब जातीयता और धार्मिक अंधता की भेंट चढ़ती जा रही हैं।लिहाजा वर्ग संघर्ष बढ़ रहे हैं और देश दिनोंदिन गर्त में जाता दिख रहा है किंतु जिम्मेदार मौन हैं,यह विचारणीय है।
अभी हालिया दिनों में उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जनपद में सपा की जनादेश रैली में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा मंच से 2022 में पिछड़ों का साम्राज्य कहकर सम्बोधन किया गया।श्री यादव का सम्बोधन सामाजिक तानेबाने को तारतार करने में स्वयम पर्याप्त है।इतना ही नहीं उक्त श्री यादव ने भारत निर्माता सरदार पटेल की तुलना मुहम्मद अली जिन्ना से करके भी मुस्लिम कार्ड खेलने से गुरेच नहीं किया।जबकि उन्हें भी कदाचित मालूम होगा कि भारत निर्माण में सरदार पटेल की भूमिका बेजोड़ थी औरकि जिन्ना कहीं भी उनके दाएं बाएं नहीं टिकते।भाजपा भी पटेल बनाम जिन्ना प्रकरण में कूदकर अब कुर्मियों को अपने पाले में करने हेतु जहां लालायित है वहीं जाति आधारित निषाद पार्टी के नेतागण तो स्वयम भगवान तक भला बुरा कहने से बाज नहीं आ रहे।ऐसा करके वे भी मुस्लिम मतों की आस लगाए बैठे हैं।जाति आधारित राजनीति में माहिर ओमप्रकाश राजभर तो स्वयम में अपनी जाति के ठेकेदार बनकर सौदेबाजी में व्यस्त हैं।ये बात दीगर है कि राजभर समाज उन्हें सर्वमान्य नेता मानता ही नहीं है।
वस्तुतः सामाजिक तानेबाने को अबतक जो क्षति राजनैतिक नेताओं द्वारा औरकि कतिपय कट्टरपंथी धार्मिक प्रतिनिधियों द्वारा हो चुकी है,उसकी भरपाई निकट भविष्य में होती तो नहीं दिख रही है।किंतु फिर भी सभी धर्मों और पंथों के उदार व विद्वान पुजारियों,मौलवियों,भिक्षुकों आदि को एकमंच पर आकर समरसता का संयुक्त सन्देश देना नितांत अपरिहार्य सा बन गया है।राजनेताओं ने जिसतरह से समाज को खोखला कर अपने अपने हित साधने की कुत्सित कोशिश की है,वह भारतीय समाज की विचारधारा के बिल्कुल उलट तथा लोकतंत्र की भावना के ठीक विपरीत है।अब इसकी भरपाई विद्यालयों और उदारमना धार्मिक प्रतिनिधि ही कर सकते हैं।
अस्तु लोकतंत्र में स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्यरत चुनाव आयोग को भी इस बाबत स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिए और आदेश की अवज्ञा की स्थिति में राजनैतिक दलों की मान्यता तक प्रत्याहरित भी करने का प्रबंध सुनिश्चित करना समीचीन जान पड़ता है।जो भी समाज को टुकड़ों टुकड़ों में बंटने से रोकने के और भी जो कारगर उपाय प्रासङ्गिक हों,उन्हें भी व्यवहृत करना ही लोकतंत्र की अक्षुणता के लिए अपरिहार्य मानकर लागू किया जाना आज भारतीय प्रजातंत्र की सबसे बड़ी आवश्यकता है अन्यथा राजनैतिक दल विषवमन कर जातीयता और धार्मिक अंधता के बीज बोते रहेंगें,जोकि कालांतर में भयावहता को जन्म देगा।

रिपोर्ट -विमलेश विश्वकर्मा ब्यूरो चीफ अंबेडकरनगर