उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) वैश्वीकरण के दौर में बौद्धिक संपदा अधिकार बहुत महत्वपूर्ण विषय है। इससे वह हर व्यक्ति या संस्थान जो किसी प्रकार का रचनात्मक कार्य उत्पादन करते हैं। वह अपनी बुद्धि से कई तरह के आविष्कार और नई रचनाओं को जन्म देते है। उन विशेष आविष्कारों पर उसका पूरा अधिकार भी है लेकिन उसके इस अधिकार का संरक्षण हमेशा से चिंता का विषय भी रहा है। यहीं से बौद्धिक संपदा और बौद्धिक संपदा अधिकारों की बहस प्रारंभ होती है। यदि हम मौलिक रूप से कोई रचना करते हैं और इस रचना का किसी अन्य व्यक्ति द्वारा गैर कानूनी तरीके से अपने लाभ के लिये प्रयोग किया जाता है तो यह रचनाकार के अधिकारों का स्पष्ट हनन है।
कहने का मतलब किसी भी दिवस को मनाने के का प्रमुख उद्देश्य होता है कि उस दिवस के उद्देश्य और मकसद को आम लोगों तक पहुंचाना और उसकी खूबियों से लोगों को जागरूक करना। बौद्धिक संपदा दिवस भी बहुत महत्वपूर्ण दिवस है। इसका मुख्य मकसद अपने अंदर की बौद्धिक संपदा को अपना बनाने के लिए पेटेंट कराना ताकि कोई दूसरा उस पर हक न जता सके। बौद्धिक संपदा का मतलब एक अधिकार जो मस्तिष्क की सृजनात्मकता और एक निश्चित समयावधि तक इसके विशिष्ट दोहन के लिए है। बौद्धिक संपदा अधिकार अन्य व्यक्तियों को सृजित सूचना का प्रयोग करने से रोकने अथवा उन शर्तों जिन पर इसे प्रयोग किया जा सकता है, को तय करने का वैधानिक मान्यता है।
यूएस पेटेंट एंड ट्रेडमार्क ऑफिस (PTO) ने 1994 में मिसीसिपी यूनिवर्सिटी के दो रिसर्चर्स सुमन दास और हरिहर कोहली को हल्दी के एंटीसेप्टिक गुणों के लिए पेटेंट दे दिया था. इस पर भारत में खूब बवाल मचा था. भारत की काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) ने केस मुकदमा लड़ा था. भारत ने दावा किया था कि हल्दी के एंटीसेप्टिक गुण भारत के पारंपरिक ज्ञान में आते हैं और इनका जिक्र तो भारत के आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी है. इसके बाद पीटीओ ने अगस्त 1997 में दोनों रिसर्चर्स का पेटेंट रद्द किया। यही विवाद में नीम पर भी हुआ था।
जब दुनिया में बहस तेज हुई कि कैसे बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा की जाए तब संयुक्त राष्ट्र के एक अभिकरण विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization-WIPO) की स्थापना की गई।
बौद्धिक संपदा अधिकार कई प्रकार के होते हैं।
कॉपीराइट : कॉपीराइट अधिकार के अंतर्गत किताबें, चित्रकला, मूर्तिकला, सिनेमा, संगीत, कंप्यूटर प्रोग्राम, डाटाबेस, विज्ञापन, मानचित्र और तकनीकी चित्रांकन को सम्मिलित किया जाता है।
कॉपीराइट के अंतर्गत दो प्रकार के अधिकार दिये जाते हैं: (क) आर्थिक अधिकार: इसके तहत व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा उसकी कृति का उपयोग करने के बदले वित्तीय पारितोषिक दिया जाता है। (ख) नैतिक अधिकार: इसके तहत लेखक/रचनाकार के गैर-आर्थिक हितों का संरक्षण किया जाता है।
कॉपीलेफ्ट: इसके अंतर्गत कृतित्व की पुनः रचना करने, उसे अपनाने या वितरित करने की अनुमति दी जाती है तथा इस कार्य के लिये लेखक/रचनाकार द्वारा लाइसेंस दिया जाता है।
पेटेंट : जब कोई आविष्कार होता है तब आविष्कारकर्त्ता को उसके लिये दिया जाने वाला अनन्य अधिकार पेटेंट कहलाता है। एक बार पेटेंट अधिकार मिलने पर इसकी अवधि पेटेंट दर्ज़ की तिथि से 20 वर्षों के लिये होती है।
आविष्कार पूरे विश्व में कहीं भी सार्वजनिक न हुआ हो, आविष्कार ऐसा हो जो पहले से ही उपलब्ध किसी उत्पाद या प्रक्रिया में प्रगति को इंगित न कर रहा हो तथा वह आविष्कार व्यावहारिक अनुप्रयोग के योग्य होना चाहिये, ये सभी मानदंड पेटेंट करवाने हेतु आवश्यक हैं।
ट्रेडमार्क : एक ऐसा चिन्ह जिससे किसी एक उद्यम की वस्तुओं और सेवाओं को दूसरे उद्यम की वस्तुओं और सेवाओं से पृथक किया जा सके, ट्रेडमार्क कहलाता है।
ट्रेडमार्क एक शब्द या शब्दों के समूह, अक्षरों या संख्याओं के समूह के रूप में हो सकता है। यह चित्र, चिन्ह, त्रिविमीय चिन्ह जैसे संगीतमय ध्वनि या विशिष्ट प्रकार के रंग के रूप में हो सकता है।
औद्योगिक डिज़ाइन
भारत में डिज़ाइन अधिनियम, 2000 के अनुसार, ‘डिज़ाइन’ से अभिप्राय है- आकार, अनुक्रम, विन्यास, प्रारूप या अलंकरण, रेखाओं या वर्णों का संघटन जिसे किसी ऐसी वस्तु पर प्रयुक्त किया जाए जो या तो द्वितीय रूप में या त्रिविमीय रूप में अथवा दोनों में हो। भौगोलिक संकेतक : भौगोलिक संकेतक से अभिप्राय उत्पादों पर प्रयुक्त चिह्न से है। इन उत्पादों का विशिष्ट भौगोलिक मूल स्थान होता है और उस मूल स्थान से संबद्ध होने के कारण ही इनमें विशिष्ट गुणवत्ता पाई जाती है।
विभिन्न कृषि उत्पादों, खाद्य पदार्थों, मदिरापेय, हस्तशिल्प को भौगोलिक संकेतक का दर्जा दिया जाता है। तिरुपति के लड्डू, कश्मीरी केसर, कश्मीरी पश्मीना आदि भौगोलिक संकेतक के कुछ उदाहरण हैं।
भारत में वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक अधिनियम, 1999 बनाया गया है। यह अधिनियम वर्ष 2003 से लागू हुआ। इस अधिनियम के आधार पर भौगोलिक संकेतक टैग यह सुनिश्चित करता है कि पंजीकृत उपयोगकर्त्ता के अतिरिक्त अन्य कोई भी उस प्रचलित उत्पाद के नाम का उपयोग नहीं कर सकता है।
कॉपीराइट: लेखकों, कलाकारों के कार्य, औद्योगिक संपदा अधिकार, विशेष चिह्नों की संरक्षा, उत्पादन प्रेरणा से संरक्षा शामिल हैं।
औद्योगिक पेटेंट पर पेरिस समझौता, कॉपीराइट पर बर्न समझौता, इंटिग्रेटिड सर्किट से संबंधित बौद्धिक अधिकारों पर रोम समझौता और संधि।
न्यायिक क्षेत्र की अवधारणा। विवाद का समाधान बीच में नहीं आता बशर्ते कि सर्वाधिक वरीयताप्राप्त राष्ट्र और राष्ट्रीय व्यवहार इसमें शामिल हैं।
बौद्धिक संपदा अधिकारों का प्रवर्तन में घरेलू प्रवर्तन प्रावधानों को लागू करने के लिए ट्रिप्स पहला विश्व व्यापार संगठन समझौता है।
हालांकि एक जनवरी.2000 तक अनुच्छेद XXIII केवल वहीं लागू होता है जहां सदस्य अपने दायित्वों को पूरा करने में असफल रहा है।
सूचना के प्रकाशन को प्रोत्साहन देता है। जब प्रयोगकर्ता जायज वाणिज्यिक शर्तों पर स्वामी से प्राधिकरण प्राप्त करने में काफी प्रयासों के बाद भी असफल रहे।
समयावधि : बीस वर्ष एक जनवरी 2005 से लागू की गई हैं।
पेटेंट के लिए आवेदन : 54000 (1997), औद्योगिक देश 97 प्रतिशत, विकासशील देशों में पेटेंट विकसित देशों के निवासियों का 80 प्रतिशत। इससे जिन चीजों को फायदा हुआ उसमें
मलेरिया के टीके/बेहतर फसलों की तुलना में कॉस्मेटिक ड्रग्स और धीमे पकने वाले टमाटर को उच्च प्राथमिकता।
ट्रेडमार्क कोई चिह्न जो एक उपक्रम की वस्तुओं अथवा सेवाओं को दूसरों की वस्तुओं अथवा सेवाओं से भिन्न करने में सक्षम हो, एक ट्रेड मार्क बन सकता है। इसकी अवधि सात वर्ष की होगी। यदि पंजीकरण के लिए प्रयोग की शर्त हो तो तीन वर्ष तक प्रयोग न करने पर रद्द कर दिया जाएगा।
भूभौतिकीय सूचक जो एक विशेष क्षेत्र में पैदा होने वाले एक उत्पाद को चिह्नित करते हों और जहां गुणवत्ता अथवा प्रतिष्ठा इसके विशेष स्थान में निहित हो।
इसके संरक्षण की अवधि दस वर्ष। इंटिग्रेटिड सर्किट के लेआउट डिज़ाइन इसके संदर्भ में बौद्धिक संपदा पर संधि का पुनर्स्वीकरण। अमेरिकी हार्डवेयर/सॉफ्टवेयर उद्योग द्वारा लॉबिंग की गई।
एक संरक्षित लेआउट का पुनरोत्पादन, अधिकारधारक की अनुमति के बिना एक लेआउट डिज़ाइन अथवा एक इंटिग्रेटिड सर्किट जिसमें एक संरक्षित लेआउट शामिल हो।
एडिटर अभिषेक शुक्ला जौनपुर
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