राष्ट्रीय दैनिक कर्मभूमि अंबेडकर नगर
कितना हास्यास्पद लगता है कि आयेदिन शिक्षकों की कमियों को ढूंढ ढूंढकर जाँच के नाम पर उनका दोहन करने वाले अधिकारीगण जहां अपनी काबिलियत का ढिंढोरा पीटते रहते हैं वहीं जब बात चुनावों या मतगणना या आपदा प्रबंधन याकि फिर शांति और सुरक्षा की आती है तो मास्टर ट्रेनर से लेकर सेक्टर और जोनल मजिस्ट्रेट तक की चुनौतीपूर्ण ड्यूटियां इन्हीं शिक्षकों के नाम बाकायदा कलक्टर के दस्तखत से जारी होती हैं।जिससे यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या वाकई जिलों में पदस्थ लोवर सबऑर्डिनेट व लोवर पीसीएस संवर्ग के अधिकारीगण जिम्मेदारी निर्वहन से भागते हैं अन्यथा जो जिम्मेदारियां उनको निभानी चाहिए उन्हें जबरन शिक्षकों पर क्यों थोपा जाता है?क्या शिक्षकों की निंदा करने के बावजूद अधिकारीवर्ग उनकी काबिलियत का लोहा मानता है?जो भी हो किन्तु इतना तो तय है की बात बात पर विभिन्न गैर शैक्षिक कार्यों में शिक्षकों को लगाये जाने से माध्यमिक शिक्षा अपने पुरसाहाल का रोने को विवश तो शिक्षक विवश हैं,जोकि शुभ संकेत नहीं है।
ध्यातव्य है कि शिक्षा को सभी उद्योगों की जननी तथा मानव निर्माण की प्रक्रिया कहा जाता है किंतु बीते कुछ सालों से जिलों के कलक्टर और मुख्य विकास अधिकारीगण शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में लगा लगाकर जहाँ शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं वहीं विद्यालयों का शैक्षणिक परिवेश भी दूषित होता जा रहा है।शिक्षक विहीन कक्षाओं व वादनों में अनुशासन स्थापना किसी चुनौती से कम नहीं होता।लिहाजा विद्यार्थियों में गुटबाजी और तनातनी तथा मारपीट की घटनाएं बढ़ने की आशंकाएं बलवती होती हैं।जिससे न केवल विद्यालय अपितु पूरा समाज भी प्रभावित होता है तथा अधिकारीवर्ग अपनी जिम्मेदारी शिक्षकों पर थोपकर सफलता की कहानियां सुनने और सुनाने में मशगूल रहा करता है।
संवैधानिक व्यवस्थाओं के अनुसार शिक्षकों की गैर शैक्षणिक ड्यूटियां केवल और केवल आमचुनावों व आपदा प्रबंधन में ही लगाई जा सकती हैं।किंतु इनके साथ ही साथ जनगणना,कांवर यात्रा,सड़क सुरक्षा सहित अन्यान्य कार्यों में बिल्कुल ही नहीं लगायी जा सकती।जबकि व्यवहार में इनसे इतर प्रकार की भी ड्यूटियां शिक्षकों को निभानी पड़ रही हैं।कदाचित शिक्षकों को इसप्रकार अन्य कार्यों में फंसाकर रखना विद्यार्थियों के साथ भीषण अत्याचार ही है।
शिक्षकों की गैर शैक्षणिक कार्यों में ड्यूटियों के बाबत यदि बात ताजा सुरतेहालों की की जाय तो जुलाई में विद्यालयों के खुलते ही महीने भर के लिए कांवर यात्रा में शांति व सुरक्षा व्यवस्था की स्थापना हेतु शिक्षकों को सेक्टर मजिस्ट्रेट बनाकर पठन-पाठन से दूर करना माध्यमिक शिक्षा के साथ अन्याय नहीं तो क्या कहा जायेगा।उदाहरणार्थ अम्बेडकर नगर जैसे छोटे जिले में भी 78 राजकीय व सहायताप्राप्त विद्यालयों के शिक्षकों को 14 जुलाई से 12 अगस्त तक सेक्टर मजिस्ट्रेट का दायित्व दिया जाना यह साफ साफ दर्शाता है कि जबकि जिला मुख्यालयों पर तकरीबन चार दर्जन अलाइड पीसीएस संवर्ग के अधिकारी उपलब्ध रहते हैं तो फिर प्रत्येक कार्यों में सिर्फ शिक्षकों को ही क्यों लगाया जाता है?क्या अधिकारीवर्ग दायित्वों के निर्वहन में असमर्थ या फिर उन्हें निभाने में अनिच्छुक है,जो भी हो,यह कार्य शिक्षकों का नहीं है।गौरतलब है कि अम्बेडकर में जिले को 78 सेक्टरों में विभाजित कर प्रत्येक सेक्टर का प्रभार किसी माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों को देकर जिला प्रशासन ने चाहे जो भी पुख्ता इंतजाम किया हो किन्तु माध्यमिक विद्यलयों के अध्ययनरत विद्यार्थियों के साथ तो अन्याय ही हो रहा है।जिसका जबाब भी बाद में यही जिला प्रशासन इन्हीं शिक्षकों से मांगेगा और तब सारा इल्जाम भी इन्हीं शिक्षकों का आएगा।
प्रश्न यदि राष्ट्रीय महत्त्व के आम चुनावों व राष्ट्रीय आपदा का हो तो शिक्षक समुदाय सदैव अपना सर्वोत्तम योगदान देता रहा है किंतु अब जनगणना,मतगणना,बाल गणना, पशु गणना, कांवर यात्रा जैसे कार्यों में भी इन्हें जबरिया लगाया जाना कत्तई उचित नहीं है।दिलचस्प बात तो यह है कि कांवर यात्रा में शिक्षकों को लगाये जाने की जो वजह प्रशासन की ओर से नियुक्तिपत्रों में दर्शायी गयी है,वह शांति और सुरक्षा व्यवस्था की स्थापना है।अर्थात प्रशासन इतना मानता है कि शांति सुरक्षा की स्थापना में वर्दीधारी सशस्त्र बल तब ज्यादा कामगर साबित होते हैं जब उनको शिक्षकों का निर्देशन प्राप्त होता है।इसप्रकार इतना तो स्वयमसिद्ध ही होता है कि शिक्षकों की बुद्धि का लोहा प्रशासन मानता है किंतु निरीक्षण के अधिकार मिलने के कारण केवल रुआब गांठकर स्वयम को काबिल साबित करने का महज प्रयास करता है,होता नहीं है।
शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाये जाने के मुख्य जिम्मेदार जिलों के जिला विद्यालय निरीक्षक व बेसिक शिक्षा अधिकारी भी होते हैं।कहने को तो ये दोनों अधिकारी शिक्षकों पर खूब रौब जमाते हैं किंतु इनके अंदर किसी उप जिलाधिकारी या सीडीओ या फिर जिलाधिकारी के समक्ष बोलने की हिम्मत नहीं होती।अन्यथा यदि ये विद्यार्थियों को होने वाली क्षति इत्यादि का मामला उठाते तो शिक्षकों को कभी भी गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं प्रवृत्त किया जाता।अलबत्ता ये अधिकारीगण स्वयम शिक्षकों की सूचियां विकास भवनों में पहुंचाकर अपने को बड़ा काबिल तक समझने लगते हैं।कहना गलत नहीं होगा कि विद्यालयों की दीन दशा हेतु यही सबसे बड़े जिम्मेदार कारक हैं।
अंततः सारसंक्षेप में इतना कहना ही समीचीन होगा कि शिक्षकों को केवल शिक्षक ही बने रहने दिया जाय तो कोई भी लक्ष्य हासिल करना मुश्किल नहीं होगा।किन्तु जब शिक्षकों से सालभर ग़ैरशैक्षिक कार्य लिए जायेंगें तो शिक्षा व्यवस्था बेपटरी होगी ही।यह वह नुकसान होगा जिसकी भरपाई सदियों तक में नहीं हो पायेगी।
रिपोर्ट-विमलेश विश्वकर्मा ब्यूरो चीफ अंबेडकरनगर
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