बेटियों को लेकर सोच बदले : जिलाध्यक्ष

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) कानपुर।देश प्रगति कर रहा है। लड़कियों की शिक्षा के प्रति अभिभावक सचेत भी हुए हैं, किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बेटी का पैदा होना अभिशाप माना जाता है। अभिभावक उनकी शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान नहीं देते। बेटे को वंश चलाने वाला मान कर उसके जन्म पर ज्यादा खुशी व्यक्त की जाती है।यह बातें डॉटर्स डे पर योगेन्द्र कुमार सिंह जिलाध्यक्ष उत्तर प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ कानपुर ने कही उन्होंने कहा कि जब तक समाज शिक्षित नहीं होगा, बेटी के प्रति परिवारों में सम्मान का भाव कम ही रहेगा।

*पुत्री से होता है दूसरे दर्जे का व्यवहार*

श्री सिंह ने कहा कि मैं ऐसे अनेक परिवारों को जानता हूं, जहां बेटी को सरकारी स्कूल में और बेटे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया जाता है। उसके रहन-सहन पर भी ज्यादा खर्च होता है। दोनों के बीच इस असमान व्यवहार के लिए परिवार के लोग ही दोषी होते हैं। हमें इस सोच को बदलना होगा।

*बेटे की चाहत है बरकरार*

श्री सिंह ने देश में यौन अपराध की बहुतायत के चलते हर मां-बाप अपनी बच्चियों के सुरक्षित भविष्य को लेकर चिंतित रहता है। यही कारण है कि बेटी पैदा होते ही उसकी पढ़ाई,जीवन की सुरक्षा और विवाह में दिए जाने वाले दहेज के प्रति पिता जीवन भर चिंता में डूबा रहता है, इसलिए बेटे की चाहत समाज में बरकरार है।

*सुरक्षा को लेकर लगता है डर*

जिलाध्यक्ष ने कहा कि लड़की के घर में पैदा होने पर परिवार को पहला डर उसकी सुरक्षा को लेकर होता है। समाज में दुष्कर्म जैसे अपराध पर कानून तो बना हुआ है, लेकिन उसमें खामियां होने के कारण अपराधी विशेष कर नाबालिग दंड से बच जाते हैं। इसमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

*गांवों में नहीं आया बदलाव*

शहर का पढ़ा-लिखा परिवार अब बेटी के महत्व को समझने लगा है। जिलाध्यक्ष ने कहा कि बेटे के साथ समान व्यवहार भी होता है, किंतु गांवों में यह परिवर्तन नहीं दिखता। उसका कारण शिक्षा की कमी है। विशेषकर महिलाओं के अनपढ़ होने के कारण बेटी के पैदा होने पर उसे बोझ समझा जाता है।

*बेटी शिक्षा पर दें जोर*

जिलाध्यक्ष ने कहा कि बेटी में असमानता का कारण परिवार में लड़कियों की शिक्षा के प्रति अभिभावकों का उतना अधिक जागरूक न होना है, जितना वे लड़कों के प्रति रहते हैं। भय रहता है कि अगर लड़की ज्यादा पढ़ गई तो उसके लिए अच्छा घर व वर ढंूढना होगा। उसमें दहेज ज्यादा देना पड़ेगा,बेटियों की शिक्षा के प्रति जागरुकता कम है।

*सक्षम होती हैं बेटियां*

परिवार में यह धारणा है कि जो काम बेटा कर सकता है, वह बेटी नहीं कर सकती। जबकि हकीकत यह है कि बेटा केवल नौकरी या कारोबार ही करता है। बेटियां दो घरों को जोडऩे का काम करती हैं, इसलिए उनकी सबलता को कम नहीं आंकना चाहिए।

*दहेज बनाता है बेटी को बोझ*

श्री सिंह ने कहा कि पुत्री के जन्म लेने पर लोगों में जो निराशा का भाव दिखता था, वह अब कम हो गया है। फिर भी बेटी के विवाह में दहेज देने जैसी कुरीति के कारण उसे अभी भी बोझ समझा जाता है। इसके लिए सामाजिक सोच बदलनी होगी। पुरुष जब नारी को हेय नहीं समझेगा, बदलाव आ जाएगा।

*बदलाव आना बाकी है*

श्री सिंह ने कहा कि समाज में बेटी के जन्म पर अब कुछ जगहों पर खुशियां तो मनाई जाने लगी हैं, लेकिन पूरी तरह बदलाव अभी नहीं आया है। समाज में अभी भी लड़के के जन्म पर ज्यादा खुशियां मनाई जाती हंै।

संवाददाता आकाश चौधरी कानपुर