आज़म खान को परेशान करने के लिए भारतीय न्याय व्यवस्था लोगो ने धता बताये आलोक त्रिपाठी लकी

उत्तर प्रदेश ( राष्ट्रीय दैनिक कर्मभूमि)जौनपुर

 

जौनपुर।एमपी एमएलए कोर्ट के फैसले के बाद समाजवादी पार्टी के विधायक आज़म खान की सदस्यता को समाप्त करने और आनन फानन में वहां चुनाव घोषित करने में जो जल्दबाजी की गई है वह सन्देहास्पद है। शायद इसी लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को नोटिस भी जारी किया हैं। इसी जल्दबाजी में खतौली से भाजपा विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता मात्र एक ट्वीट( जयन्त चौधरी द्वारा) पर समाप्त कर देना सत्ता प्रतिष्ठान की जल्दबाजी दिखती है।
वैसे तो निर्णय लेने वाली सारी संस्थाएं स्वयं में स्वायत्त है फिर भी आज़म खान के ऊपर पिछले कुछ दिनों से इन संस्थाओं की ख़ासी नज़र बनी रही, और सर्वोच्च न्यायालय ने इनके मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट पर टिप्पणी की तथा जमानत और राहत दी। शायद इसी लिए आज़म खान हाई कोर्ट ना जाकर सीधे सुप्रीम कोर्ट गए( हाई कोर्ट में छुट्टियां थी) ।जनता के द्वारा चुने गए किसी भी प्रतिनिधि के प्रति चाहे आज़म खान हो या विक्रम सिंह सैनी यह जल्दबाजी कत्तई उचित नही थी। पर राजा को खुश करने की सभी मे होड़ सी मची है। भारतीय न्याय संहिता की सोच है कि भले ही कानून की कमजोरियों का लाभ उठाकर 10 अपराधी बच जाय पर कोई एक निर्दोष को सजा नही होनी चाहिए। शायद इसी लिए विभिन्न स्तरों पर अपीलीय अधिकारी( न्यायालय) नियुक्त किये गए है जिससे याची को अपनी बात रखने का उचित अवसर मिल सके। लेकिन यहाँ बचाव पक्ष के लिए कोई समय ही नही दिया गया आज़म खान 12 से 15 बार विधायक और सांसद चुने गए है। इसका अर्थ यह हुआ कि जनता का उनको विश्वास प्राप्त है तो उनके सम्बन्ध में यह जल्दबाजी कदापि उचित नही थी, और दिखावे के चक्कर मे विक्रम सिंह सैनी की सदस्यता नही समाप्त करनी चाहिए थी। हम समाजवादी कार्यकर्ता न्यायालय के निर्माण को शिरोधार्य करते है और करते रहेंगे। साथ ही अपने संबैधानिक अधिकारों के लिए लड़ते भी रहेंगे।