ग्रामोदय विश्वविद्यालय में पर्वतों के संरक्षण का लिया संकल्प

राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट। अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के अवसर पर महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में पर्वतों के संरक्षण का संकल्प लिया गया। विज्ञान संकाय अन्तर्गत ऊर्जा एवं पर्यावरण विभाग में प्राध्यापक प्रो घनश्याम गुप्ता एवं भौतिक विज्ञान विभाग में प्राध्यापक डॉ वीरेंद्र उपाध्याय की अगुवाई में एमएससी पर्यावरण विज्ञान सहित विभिन्न पाठ्यक्रमों के छात्रों के साथ अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रो घनश्याम गुप्ता व डॉ वीरेंद्र उपाध्याय ने पर्वतों को वृक्षों से आच्छादित कर उनका श्रंगार करने, उनको अधिक से अधिक विकसित करने, उनका संरक्षण करने, उनके प्रति लोगों में जन जागरूकता फैलाने, उनका खनन रोकने एवं पर्वतों के सर्वांगीण विकास के लिए आवाहन किया।

प्रो गुप्ता ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य पहाड़ों का संरक्षण करते हुए सतत विकास को प्रोत्साहित करना है ।पहाड़ों के संरक्षण को लेकर विश्व का ध्यान वर्ष 1992 में गया जब पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में एजेंडा 21 के अध्याय 13 नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र का प्रबंधन एवं सतत पर्वती विकास पर जोर दिया गया। इस तरह के व्यापक समर्थन के साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2002 को अंतरराष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया। इस घोषणा के बाद पहली बार 11 दिसंबर 2003 को पहला अंतरराष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाया गया ।इसके बाद से इस खास दिवस को मनाने की परंपरा चली आ रही है अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस ने पहाड़ों की पारिस्थितिकी के मुद्दे को गंभीरता से लेने में अहम भूमिका निभाई है ।इसका असर पर्वतीय पर्यटन पर भी पड़ता है उसी का परिणाम है कि पिछले कुछ वर्षों में पर्वती पर्यटन की लोकप्रियता में बढ़ोतरी हुई है एवं वहां रहने वाले लोगों में आर्थिक संपन्नता आई है। पहाड़ पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जानवरों और पौधों की एक चैथाई आबादी का घर है। यह दुनिया की आधी आबादी को मीठे पानी के साथ-साथ भोजन भी प्रदान करते हैं। इसलिए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने के लिए इनका महत्व बहुत ज्यादा है। पहाड़ दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसलों के घर है। यह पारिस्थितिकी तंत्र में संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पृथ्वी के जलवायु सुधार के लिए पर्वतों का संरक्षण बेहद जरूरी है।

डॉ उपाध्याय ने कहा कि नदियों काअस्तित्व पर्वतों के अस्तित्व पर निर्भर है क्योंकि नदियों को पर्वतों की बेटी माना जाता है। अतः यदि हमारे पर्वत ज्यादा विकसित होंगे तो निश्चय ही हमको जल की आपूर्ति करने वाली नदियां भी अविरल रहेगीं। रामचरित मानस में आया है कि रामदीख मुनि बसु सुहावन द्य सुंदर गिरि काननु जलु पावन द्यद्य चित्रकूट में पर्वतों की संपन्नता को देखते हुए महर्षि बाल्मीकि ने प्रभु राम को चित्रकूट में निवास करने के लिए कहा, चित्रकूट गिरि करहु निवासूद्य तहं तुम्हार सब भांति सुपासू द्यद्य चित्रकूट जैसा कि नाम से परलक्षित होता है कि यह पर्वतों का चित्र अर्थात पर्वतों का घर है अतः यहां पर पर्वतों के प्रति जागरूकता फैलाना अति आवश्यक है। यदि कूट नहीं रहेंगे तो फिर चित्रकूट कैसे रह पाएगा। इसी को लेकर यह दिवस विश्वविद्यालय में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। इस वर्ष इसका विषय है विमेन मूव माउंटेंस अर्थात पर्वतीय महिलाओं को सशक्त बनाने की जरूरत पर जोर देना है। अतः पहाड़ों में अवसरों और क्षमता विकास को साझा करके यह दिवस लैंगिक समानता को बढ़ाने देने में मदद कर सकता है। इससे सामाजिक न्याय को और बढ़ावा देने की उम्मीद बढ़ेगी।

पर्वतों के संरक्षण का संकल्प लेने वालों में अमन शुक्ला, भरत किशोर चतुर्वेदी, कामद गुप्ता, शिवम गुप्ता,संगम, अतुल,सत्यजीत, आशीष, प्रांशु सिंह, सौरभ, अपूर्व मिश्रा, चंद्रशेखर यादव इत्यादि प्रमुख रहे।

 

 

*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

*जनपद* चित्रकूट