बच्चों के साथ अधिक से अधिक सकारात्मक रवैय्या रखा जाए : शिक्षक राजा सिंह

राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) उत्तर प्रदेश ।कानपुर।बच्चे हाई स्कूल तक पहुंचते पहुंचते बहुत ज्यादा परिपक्व और सम्वेदनशील हो जाते है इसलिए उन पर पाबंदी लगाना या उन पर कुछ थोपने से पहले माता पिता भाई या शिक्षकों या शिक्षिकाओं को बहुत ही सूझ-बूझ के साथ कोई बात कहनी चाहिए क्योंकि ये ऐसी उम्र होती है जिसमें बच्चे को आप की बात अच्छी भी लग सकती है और खराब भी बच्चों को भी चाहिए कि उन्हें अपने भविष्य को सुन्दर बनाए रखने के लिए सदैव प्रयासरत रहना चाहिए कोई बात है तो वे पहले अपने माता-पिता को बताए यह कहना है सैंट जॉन इंटर कॉलेज के शिक्षक राजा सिंह का उन्होंने कहा कि बच्चों का गलत कदम उठाना कोई हल नहीं होता जीवन बहुत अनमोल होता है इसे बहुत ही शानदार तरीके से जिए जिससे सामाज मे एक अच्छा संदेश जाए।शिक्षक राजा सिंह ने कहा कि किसी भी व्यक्तित्व को संवारने के लिए पनिशमेंट और प्रोत्साहन दोनों की आवश्यकता होती है प्रोत्साहन लुब्रिकेटिंग ऑयल की तरह किसी की अंतर्निहित ऊर्जा शक्ति को नए पंख प्रदान कर देता है.राष्ट्र के विकसित होने का शिक्षा एक प्रमुख अवयव है.बिना शिक्षा के राष्ट्र पूर्ण विकसित नहीं हो सकता.विगत एक सप्ताह से स्कूली बच्चों को दंड देने के अमानवीय तरीके चर्चा का विषय बने हुए हैं शिक्षक बच्चों के साथ तालिबानी संस्कृति का व्यवहार क्यों करता है ? यह सोच से परे है।शिक्षक का गुरुतर दायित्व उस माली की तरह है जो अपने उपवन के किसी भी पुष्प को मुरझाने नहीं देता।शिक्षा के मन्दिर में तालिबानी सजा देना कहां तक जायज है,इसका सवाल कोई शायद ही दे पाए ,क्योंकि जिसे शिक्षा का मन्दिर कहा जाता है.वहां का संबन्ध तालिबान से जोड़ना अपने आपमें एक अपवाद है।लेकिन शिक्षकों की काली करतूतों से शिक्षा का मन्दिर दागदार होता है।उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में बच्चों को मोरल सपोर्ट की आवश्यकता है वैसे भी उनके हिस्से का समय सूचना क्रांति घटते खेल के मैदान गला काट प्रतिस्पर्धा और माता-पिता की अपेक्षाओं ने छीन लिया है।इसमें कोई शक नहीं है कि बच्चों का व्यवहार असामान्य हो रहा है लेकिन विचारणीय प्रश्न यह है कि उनके इस असामान्य व्यवहार के लिए जिम्मेदार कौन है । निश्चित रूप से आज का समाज उनकी सही ढंग से परवरिश नहीं कर पा रहा है.जिससे वे मानसिक विकार का शिकार हो रहे हैं इसलिए उनके मानसिक विकार को दूर करने के लिए किसी मानसिक विकारी शिक्षकों की आवश्यकता नहीं है,क्योंकि मानसिक विकारी शिक्षक उन्हें जीवनभर के लिए मानसिक रूप से विकलांग कर देता है।शिक्षकों के चयन में अब शिक्षक के अंदर बैठे हुए अध्यापक को पहचानना होगा।प्रशिक्षण के मॉड्यूल को भी परिवर्तित करना होगा.कोई भी प्रशिक्षण या योग्यता एक समय के साथ अपनी प्रासंगिकता खो देती है वर्तमान समय चुनौतियों का समय है समय बड़ी तेजी से बदल रहा है बदलते समय के परिवेश को मद्देनजर रखते हुए हमारे जीवन में नई नई चुनौतियां भी आ रही है इसलिए इन चुनौतियों और इनकी समाधान को पहचानना होगा.बच्चे बेचारे कहां जाएंगे और किससे शिकायत कर पाएंगे।हमें अपने समय का कृष्ण बनना होगा।संवाददाता।आकाश चौधरी