उत्तर प्रदेश ( राष्टीय दैनिक कर्मभूमि)जौनपुर
जौनपुर।कोई भी भाषा चाहे जैसी हो लेकिन हिंदी से मीठी नहीं हो सकती। कठिन लिखना बहुत आसान है लेकिन आसान लिखना बहुत कठिन है। ऊर्दू और हिंदी में फर्क है इतना कि वह ख्वाब देखते हैं और हम देखते हैं सपना। हिंदी सिर्फ एक संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी जड़ों से जुड़ी एक ताकतवर सांस्कृतिक विरासत भी है। हिंदी का विकास उसके साहित्य, कविताओं, गीतों और रोज़मर्रा की बोलचाल में हुआ है, जिससे यह भाषा जनमानस के करीब बनी रहती है। हिंदी को आज के युवा पीढ़ी के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए इसे इंटरनेट, सोशल मीडिया और मनोरंजन के माध्यमों में अधिक स्थान देना चाहिए। भाषा का सम्मान तब होता है जब उसे रोज़मर्रा के जीवन में अपनाया जाता है, न कि केवल समारोहों में।
भारत विविधताओं का देश है, जहां अनेक भाषाएं और बोलियाँ बोली जाती हैं। इस विशाल सांस्कृतिक धरोहर के बीच हिंदी न केवल संवाद का एक प्रमुख माध्यम है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान और एकता का प्रतीक भी है। हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, जो हमारे जीवन में हिंदी के महत्व और उसकी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का अवसर है। 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि हिंदी, जो उस समय देश के बड़े हिस्से में बोली और समझी जाती थी, देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में सहायक हो सके। महात्मा गांधी और कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने पर जोर दिया था। इसके बाद से, हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि लोगों को हिंदी के महत्व और उसकी उन्नति के प्रति जागरूक किया जा सके। हालांकि हिंदी को संविधान में आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है, लेकिन इसके बावजूद आज भी हिंदी को अपने अस्तित्व के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वैश्वीकरण और अंग्रेजी भाषा के प्रभाव के कारण हिंदी बोलने और लिखने की परंपरा में धीरे-धीरे कमी आ रही है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाई की बढ़ती प्रवृत्ति और युवाओं में अंग्रेजी बोलने की बढ़ती रुचि के चलते हिंदी का प्रयोग सिमटता जा रहा है। हिंदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आज के समय में इसे पढ़ने और लिखने की अपेक्षा केवल बोलचाल की भाषा तक सीमित कर दिया गया है। हिंदी साहित्य, पत्रकारिता और अन्य सृजनात्मक क्षेत्रों में भी हिंदी का प्रभाव कम होता जा रहा है।
हिंदी न केवल भारत में, बल्कि दुनियाभर में बोली और समझी जाती है। इसे बोलने वालों की संख्या के आधार पर हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। भारत के अलावा नेपाल, मॉरिशस, फिजी, गुयाना, और कई अन्य देशों में हिंदी बोली जाती है। प्रवासी भारतीयों के माध्यम से भी हिंदी ने कई देशों में अपनी पहचान बनाई है।
वर्तमान समय में सोशल मीडिया और इंटरनेट के विस्तार के साथ हिंदी का प्रसार और बढ़ा है। हिंदी में कंटेंट निर्माण, ब्लॉगिंग, यूट्यूब चैनल्स, और अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों पर हिंदी का तेजी से विकास हो रहा है। यह हिंदी के भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत है। हिंदी को केवल एक भाषा के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर के रूप में देखने की आवश्यकता है। आज की युवा पीढ़ी को यह समझना होगा कि अंग्रेजी का ज्ञान और हिंदी का सम्मान एक साथ किया जा सकता है। हिंदी का महत्व और उसकी समृद्धता को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और समाज में इसे प्रोत्साहित करना जरूरी है। हिंदी के प्रति लोगों की बदलती मानसिकता को बदलने के लिए सरकार और समाज दोनों को मिलकर प्रयास करना होगा। हिंदी साहित्य, पत्रकारिता, सिनेमा और कला में हिंदी को फिर से मुख्य धारा में लाने की जरूरत है। शिक्षण संस्थानों में हिंदी के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए भाषा को सरल और रुचिकर तरीके से सिखाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। नई तकनीकों के साथ हिंदी का समायोजन जरूरी है, ताकि युवा पीढ़ी इसे आधुनिक दृष्टिकोण से अपना सके। हिंदी दिवस सिर्फ एक दिन नहीं है, बल्कि यह हमें यह याद दिलाने का अवसर है कि हमारी भाषा हमारी पहचान है। हिंदी की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और इसकी व्यापकता को संजोना और बढ़ावा देना हम सभी का कर्तव्य है। हिंदी दिवस हमें इस दिशा में प्रेरित करता है कि हम अपनी भाषा को केवल बोलचाल तक सीमित न रखें, बल्कि इसे साहित्य, विज्ञान, तकनीक और जीवन के हर क्षेत्र में फैलाएं। अतः हमें गर्व होना चाहिए कि हम हिंदी भाषा के ध्वजवाहक हैं और इस परंपरा को आगे ले जाने की जिम्मेदारी हमारी है। हिंदी दिवस हम सबको यह संकल्प लेने का अवसर देता है कि हम अपनी भाषा, अपनी संस्कृति और अपनी पहचान का आदर करें और उसे आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुंचाएं।
डॉ. सुनील कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर जनसंचार विभाग
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर।
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