उत्तर प्रदेश ( दैनिक कर्मभूमि) जौनपुर
पांच अगस्त को ऐतिहासिक दिन बनाने का जो विधान मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने रचा था ,वो पूर्ण हुआ । आखिर इस दिन भव्य ,दिव्य और परम आलौकिक अयोध्या धाम में भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण हेतु भूमि पूजन का कार्यक्रम संपन्न हुआ । वैसे भी तुलसीदास जी के रामायण के बालकाण्ड में लिखा है –
“कह मूनिस हिमवंत सूनू जो बिधि लिखा लिलार ।
देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मटेनिहार” ।। ६८ ।।
मुनीश्वर ने कहा – हे हिमवान ! सुनो, विधाताने ललाट पर जो कुछ लिख दिया है उसको देवता, दानव, मनुष्य, नाग और मुनि कोई भी नहीं मिटा सकते ।
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ।।
राम प्रत्येक भारतीय की आत्मा में विराजमान है या यूं कहें कि राम भारत की आत्मा हैं ।राम मर्यादा पुरुष कहलाये क्योंकि उन्होंने कभी भी अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया ।राम ने अपने प्रत्येक कर्म से समाज को एक श्रेष्ठ शिक्षा दी ।राम समाज के प्रत्येक वर्ग को साथ लेकर चले और विजय का श्रेय हमेशा दूसरों को दिया ।रामराज्य प्रत्येक भारतीय का एक सपना है जिसे वह साकार होते देखना चाहता है ।आज भी परस्पर अभिवादन में लोग राम-राम बोलते हैं । दिनाँक 5 अगस्त, 2020, बुधवार एवम भगवान राम के मंदिर के भूमिपूजन दिवस की पावन मंगलबेला में, राम जैसा मर्यादित बंनने से स्वयं को संकल्पित एवम आपको भी प्रेरित करते हुए, नित्य की भाँति, आपको मेरा “राम-राम” ।
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।
बेद पुरान बिदित जगु जाना॥
अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ। यह प्रसंग जानइ कोउ कोऊ॥
अति प्रिय मोहि इहाँ के बासी। मम धामदा पुरी सुख रासी॥
हरषे सब कपि सुनि प्रभु बानी। धन्य अवध जो राम बखानी॥
श्री राम अभिजात्य वर्ग के देव कभी नहीं रहे। चाहे क्षत्रिय हो, शुद्र, वैश्य या ब्राह्मण हो, राम जन-जन के हृदय में बसते रहे हैं। राम जितने तुलसीदास के हैं, उतने ही वाल्मीकि के। जितने वे विभीषण के है, उतने ही शबरी के। राम को केवट भी उतना ही प्यारा है, जितनी अहिल्या। जितने वे अयोध्या के है, उतने ही किष्किंधा के। राम के लिए मानव, वानर, रीछ, गिलहरी, जटायु सब एक समान प्रिय है। राम दलितों-शोषितों-वंचितों के उद्धारक हैं। युद्ध लड़ते हुए राम क्षत्रिय है, वेद पढ़ते ब्राह्मण, नंगे पांव वन वन डोलते राम आदिवासी है, जन जन का बेड़ा पार लगाते राम कीर-केवट है, शबरी के झूठे बेर खाते राम शबर है, हनुमान के साथ राम वानर है, जामवंत के साथ रीछ, जटायु के साथ वे नभ की बुलंदियों को छूते हुए पंछी है। राम कर्म आधारित सभी वर्णों के आराध्य हैं, वे मानव, दानव, देव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर किसी में भेद नहीं करते।राम प्रतिशोध के नहीं, क्षमा के प्रतीक है। दुष्ट रावण की मुक्ति का मार्ग भी श्री राम ही प्रशस्त करते हैं। वे घृणा नहीं, प्रेम के चितेरे है। सती के शिव की तरह विरह की अग्नि में जलते हुए भी वे तटस्थ संन्यासी है, महलों में रहते हुए भी वे मन से वनवासी है, दूर होकर भी सीता उनके हृदय में है और वे सीता के।वे मर्यादा पुरुषोत्तम है, बिना सिया के राम उतने ही अधूरे है, जितना गौरी बिना शिव। सिंहासन उनके लिए ,लोक-कल्याण का साधन भर है। वे राजा होकर भी रंक है, और रंक होकर भी राजा।उन्हीं श्री राम के आशीर्वाद से राम मंदिर, जातिगत बंधनों को तोड़ कर हिन्दू एकता की मिसाल बन सकता है (साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बने रहते हुए भी), जिनकी बीज पर जातिगत व धार्मिक बंधन टूटते दिख जाते हैं, सड़कों, चौराहों और गली गली के नुक्कड़ पर।हम सबके प्रभु राम के मंदिर का पहला नीव का पत्थर आज रखा जा रहा है कई हजारों सालों की तपस्या और बलिदानों के बाद यह शुभ समय आया है आज बहुत प्रसंन्नता का दिन है lहम सब बहुत सौभाग्यशाली हैं जो इस समय को अपनी आँखो से देख रहे हैं कई जन्म लग जाते हैं यह समय देखने के लिए प्रभु को धन्यवाद् करते हैं कि उन्होंने हम सबको इस शुभ समय को देखने के लिए चुना है l मुझे बहुत प्रसन्नता है ।मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र की जय रामराजा सरकार की जय,जय श्री राम ।
—- पंकज कुमार मिश्रा ( एडिटोरियल कॉलमिस्ट ,पत्रकार 8808113709)
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