उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) अयोध्या। जन्माष्टमी पर मोरपंख लगाना इतना आवश्यक हो गया कि हमने स्रष्टि को स्वयं में आत्मसात करनेवाले कान्हा को प्रिय न जाने कितने ही मासूमों की हत्या करवा दी, जी हाँ हम माने य़ा ना माने परंतु दोषी हम सब हैं, बाजारों में प्रत्येक दुकान पर मोर पंख देखकर मन अकुलित हुआ जा रहा था कि आखिर इतने अधिक पंख …
मोर के पंख स्वतः झड़ते-उगते हैं परंतु इतने कम समय मे इतने अधिक…
समझ देर ना लगी कि क्या किया गया होगा…
इन्सानियत तो बची ही नहीं है हममे..
किभी पशु य़ा पक्षी को हानि पहुँचाना तो इंसानों के बायें हाथ का खेल है..
अब शायद मांसाहारी वर्ग सदैव की भांति ये भी तर्क दे सकता है कि मारा नहीं जाएगा तो इनकी संख्या बढ़ जाएगी|
बाकी रही बची कसर कुछ तथाकथित धर्म के नए नवेले ठेकेदारों की जड़-बुद्धिजीवी नई फसल बेवजह की दलीलों से पूरी कर देगी।
परंतु धर्म के नाम पर विलुप्ति की कगार पर पहुच चुके जीव-जन्तुओं की निर्दयता पूर्ण हत्या के बाद .. कटु शब्दों हेतु कोई क्षमा-प्रार्थना नहीं।
पवन कुमार चौरसिया ब्यूरो अयोध्या मंडल ।
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