उत्तर प्रदेश ( दैनिक कर्मभूमि)जौनपुर
गणपति गणेश जी हरेंगे सभी विघ्न !
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श्री गणेश चतुर्थी के साथ ही शनिवार 22 अगस्त से पूरे देश में ,विशेषतः मुंबई और उत्तर प्रदेश में गणेश उत्सव की शुरुआत हो रही । भगवान विघ्नहर्ता गणेश का पंडाल बनाते भक्तगण और लालबाग में होता दिव्य गणेश आरती सबको आकर्षित करती है । मंत्रोच्चार हेतु –
विघ्नेश वीर्याणि विचित्रकाणि वन्दीजनैर्मागधकै:स्मृतानि।
श्रुत्वा समुत्तिष्ठ गजानन त्वं ब्राह्मे जगन्मङ्गलकं कुरुष्व ।।
(भावार्थः-हे विघ्नेश ! हे गजानन ! मागध और वन्दीजनों के मुख से गाये जाते हुए अपने विचित्र पराक्रमों को सुनकर ब्राह्म मुहूर्त में उठो और जगत का कल्याण करो।) भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता उपदेश दिया था, यह बात तो सब जानते हैं लेकिन क्या विघ्न विनाशक गणपति ने भी गीता का उपदेश दिया था, ये कम लोगों को पता है। आइए आज आपको कुछ नया बताते है जो वेद व्यास जी ने अपनी संहिता में लिखा है ,श्रीकृष्ण गीता और गणेश गीता में लगभग सारे विषय समान हैं। बस दोनों में उपदेश देने की मन: स्थिति में अंतर है।भगवत गीता का उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में, मोह और अपना कर्तव्य भूल चुके अर्जुन को दिया गया था। लेकिन गणेश गीता में विघ्नविनाशक गणपति, यह उपदेश युद्ध के बाद , राजा वरेण्य को देते हैं। दोनों ही गीता में गीता सुनने वाले श्रोताओं अर्जुन और राजा वरेण्य की स्थिति और परिस्थिति में अंतर है। भगवत गीता के पहले अध्याय अर्जुन विषाद योग से यह बात स्पष्ट होती है कि अर्जुन मोह के कारण मूढ़ावस्था में चले गये थे। लेकिन राजा वरेण्य मुमुक्षु स्थिति में थे। वह अपने धर्म और कर्तव्य को जानते थे।
श्रीगणेश गीता के अन्तर्गत जो कथा प्रचलित है उसमे ,देवराज इंद्र समेत सारे देवी देवता, सिंदूरा दैत्य के अत्याचार से परेशान थे। जब ब्रह्मा जी से सिंदूरा से मुक्ति का उपाय पूछा गया तो उन्होने गणपति के पास जाने को कहा। सभी देवताओं ने गणपति से प्रार्थना की कि वह दैत्य सिंदूरा के अत्याचार से मुक्ति दिलायें। देवताओं और ऋषियों की आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उन्होंने मां जगदंबा के घर गजानन रुप में अवतार लिया। इधर राजा वरेण्य की पत्नी पुष्पिका के घर भी एक बालक ने जन्म लिया। लेकिन प्रसव की पीड़ा से रानी मूर्छित हो गईं और उनके पुत्र को राक्षसी उठा ले गई। ठीक इसी समय भगवान शिव के गणों ने गजानन को रानी पुष्पिका के पास पहुंचा दिया। क्योंकि गणपति भगवान ने कभी राजा वरेण्य की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वह उनके यहां पुत्र रूप में जन्म लेंगे।
लेकिन जब रानी पुष्पिका की मूर्छा टूटी तो वो चतुर्भुज गजमुख गणपति के इस रूप को देखकर डर गईं। राजा वरेण्य के पास यह सूचना पहुंचाई गई कि ऐसा बालक पैदा होना राज्य के लिये अशुभ होगा।बस राजा वरेण्य ने उस बालक यानि गणपति को जंगल में छोड़ दिया। जंगल में इस शिशु के शरीर पर मिले शुभ लक्षणों को देखकर महर्षि पराशर उस बालक को आश्रम लाये।
यहीं पर पत्नी वत्सला और पराशर ऋषि ने गणपति का पालन पोषण किया। बाद में राजा वरेण्य को यह पता चला कि जिस बालक को उन्होने जंगल में छोड़ा था, वह कोई और नहीं बल्कि गणपति हैं।अपनी इसी गलती से हुए पश्चाताप के कारण वह भगवान गणपति से प्रार्थना करते हैं कि मैं अज्ञान के कारण आपके स्वरूप को पहचान नहीं सका इसलिये मुझे क्षमा करें। करुणामूर्ति गजानन पिता वरेण्य की प्रार्थना सुनकर बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने राजा को कृपापूर्वक अपने पूर्वजन्म के वरदान का स्मरण कराया|
भगवान् गजानन पिता वरेण्य से अपने स्वधाम-यात्रा की आज्ञा माँगी| स्वधाम-गमन की बात सुनकर राजा वरेण्य व्याकुल हो उठे अश्रुपूर्ण नेत्र और अत्यंत दीनता से प्रार्थना करते हुए बोले- ‘कृपामय! मेरा अज्ञान दूरकर मुझे मुक्ति का मार्ग प्रदान करे|’
राजा वरेण्य की दीनता से प्रसन्न होकर भगवान् गजानन ने उन्हें ज्ञानोपदेश प्रदान किया| यही अमृतोपदेश गणेश-गीता के नाम से विख्यात है| ‘गणेशगीता’ के 11 अध्यायों में 414 श्लोक हैं।श्रीमद्भगवद्गीता और गणेशगीता का आरंभ भिन्न-भिन्न स्थितियों में हुआ था, उसी तरह इन दोनों गीताओं को सुनने के परिणाम भी अलग-अलग हुए। अर्जुन अपने क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने के लिए तैयार हो गया, जबकि राजा वरेण्य राजगद्दी त्यागकर वन में चले गए। वहां उन्होंने गणेशगीता में कथित योग का आश्रय लेकर मोक्ष पा लिया।गणेशगीता में लिखा है, ‘जिस प्रकार जल जल में मिलने पर जल ही हो जाता है, उसी तरह श्रीगणेश का चिंतन करते हुए राजा वरेण्य भी ब्रह्मालीन हो गए।’ गणेशगीता आध्यात्मिक जगत् का दुर्लभ रत्न है।
– पंकज कुमार मिश्रा (अस्सिटेंट प्रोफेसर एवं पत्रकार ) 8808113709
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