*मध्यप्रदेश और राजस्थान को अलग करने,जोड़ने वाली सड़क पर पार्वती नदी पर पुलिया को बननें का है लम्बे समय से इंतजार।*

राजस्थान (दैनिक कर्मभूमि) बारां छबड़ा:-मुख्यालय से मात्र कुछ ही दूरी पर बहती है गुगोर ग्राम के निकट पार्वती नदी जहां राजस्थान की सीमा दूसरी ओर से मध्यप्रदेश से मिलती है।दोनों राज्यों को अलग करनें में पार्वती नदी बनाती है सीमा रेखा।देश में राजाओं और रजवाड़ो के राज्य के क्रम में टोक नबाब का भी राज रहा बाद में अंग्रेजों की रही शासन व्यवस्था।लम्बे संघर्ष और शहीदों की कुर्बानियों के बाद 1947 में भारत हुआ आजाद ओर 1950 में लागू हुआ संविधान का राज।मध्यप्रदेश की सीमा से लगा यह क्षेत्र और गुगोर सहित आसपास के इलाके पर कभी खींची राजाओं की छत्र-छाया में विकसित हुयीं यहां की पुरातात्विक ऐतिहासिक पुरा सम्पदा स्थानीय प्रशासन की उदासीनता ओर स्थानीय निवासियों की उदासीनता ओर लोभ-लालच के कारण नष्ट हो गयीं।आजादी के 70 सालों से दोनों ओर की जनता पार्वती पर सुगम मार्ग के लिए पुल निर्माण की आवाज यदाकदा उठाती रही है।पुल नही होनें से ज्यादा परेशानी तब होती है जब चार महीनें का चौमासा आता है ओर दोनों ओर की जनता के मिलन का सहारा जलतुंबी,मटके,पीपे, ट्यूब ओर स्थानीय लोगों की संचालित नावें बनती है रिश्तों के तीज-त्योहारों पर मिलन का सहारा ओर साधन जिनसे यदा कदा जन हानि भी हो जाती है जब कोई बीमार हो जावें या डिलेवरी होनें को हो तो इलाज की सुविधा के लिए मध्यप्रदेश के गांवों से राजस्थान की ओर रुख करनें वाले लोगों को ज्यादा परेशानी होती है।वर्ष के शुरुआती दिनों में राज्य के दोनों ओर से उठी आवाज तो पुल निर्माण को लेकर आनन-फानन में उदघाटन भी हुआ ओर अखबारों में श्रेय लेनें दोनों ओर से आगे आये आम जन नेता उदघाटन, भाषण ओर चाटन के बाद काम भी शुरू हुआ परन्तु कुछ गड्ढे हुये ही थे कि भ्रष्टाचार से कार्य ऐसा बन्द हुआ कि आज तक वर्षा विगद शरद ऋतु आ गयीं परन्तु दोनों राज्यों के जिम्मेदार लोगों के मन में पुल निर्माण की बात अभी तक नही सुहाही।प्रतिदिन राजस्थान के छबड़ा कस्बे से मध्यप्रदेश के फतेहगढ़ क़स्बे की ओर जानें वाले सैकडों वाहनों की आवाजाही होती है जिससें सभी लोगों को परेशानियों से होकर गुजरना पड़ता है अब देखना यह है कि आम जन को इसी वर्ष राहत मिलती है या फिर दूसरी सरकार बननें का इंतजार होगा भगवान ही जानें इस देश के कर्ण धारों का की यह देश विकास कर रहे या स्वविकास।

*रिपोर्टर कुलदीप सिंह सिरोहीया बारां छबड़ा*