जौनपुर का इतिहास क्रमशः लेखक- डॉ• परमानंद शुक्ल शिक्षक

उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि)जौनपुर

लेखक- डॉ• परमानंद शुक्ल शिक्षक। सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट नई दिल्ली भारत।
लगभग ढाई सौ साल पुराना सन 1750 के आसपास बना एक भगवान श्रीराम व हनुमान जी का सम्मिलित रूप से भव्य मंदिर जौनपुर की ऐतिहासिकता और धार्मिकता को बहुत ही नजदीक से प्रदर्शित करता है। यह मंदिर बाबा परमहंस मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस साधना स्थली में एक महान शक्ति है जो बाबा के रूप में सदैव शक्तिमान है, जिससे प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आशीर्वाद पाते हैं और अपनी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। इसी ऐतिहासिक मंदिर के बारे में कुछ जानकारियां आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ । यह मंदिर जौनपुर शहर के औंका गांव में लखेश्वरी नदी के किनारे बड़े ही रमणीक स्थळ पर बना हुआ है । आप सभी को एक ऐतिहासिक जानकारी बता रहा हूँ। जैसा कि नदी का नाम लखेश्वरी है और अवधी भाषा में लखना मतलब देखना होता है । एक प्रचलित कहानी के अनुसार तीन संत बाबा अंबर शम्भू (परमहंस), धीर दास बाबा, और राऊर बाबा वृंदावन से चलकर अयोध्या पहुंचे। अयोध्या से पीली नदी के रास्ते आगे बढ़ते हुए जौनपुर जिले में पहुँचे जौनपुर जिले के “औका” गांव में एक छोटा जंगल जिसमें छोटा सा प्राचीन मंदिर जिसका नाम “ओंकेश्वर नाथ” है, वहाँ पहुँचे। ( इसी मंदिर के नाम से इस गांव का नाम औका पड़ा) बाबा परमहंस नदी में डुबकी लगाकर कुछ देखा करते थे इस तरह से आधे घंटे की डुबकी लगाने के बाद जब बाहर निकले तो 12 वर्ष एक पेड़ की डाल को पकड़ कर खड़े रहकर साधना करने वाले तपस्वी व सिद्ध बाबा अंबर शंभु (परमहंस बाबा) ने इसी स्थल पर साधना करने का निश्चय कर लिया। बाबा धीर दास जौनपुर के सुजानगंज में अपनी साधना स्थली बनाए । सुजानगंज का नाम एक विशेष मिठाई (एटम बम ) रसगुल्ला के नाम से भी प्रसिद्ध है। सुजानगंज में बाबा अंबर शंभू भी आया जाया करते थे । धीर दास महाराज बहुत ही चमत्कारी संत थे ऐसा ग्रामीणों का मानना है। राऊर बाबा नौपेड़वा बाजार से सटे गांव मई (बरपुर) में अपनी साधना स्थली बनाएं , यहाँ पर भोलेनाथ का एक बहुत ही सुंदर मंदिर है । लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर पर साक्षात भगवान शिव की कृपा है और जो भी यहाँ पर दर्शन के लिए आता है, उसकी पूरी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं । यहाँ पर दशहरा के समय तीन दिन का मेला लगता है जो राऊर बाबा (भूत मेले) के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ पर जो भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और यदि भूत, प्रेत, किसी भी तरह की शारीरिक व मानसिक बीमारी जैसी समस्याएं होती हैं तो अपने आप ही यहाँ आने से समाप्त हो जाती हैं। इस तरह से तीनों संत अपने समय के बहुत ही चमत्कारी संत थे और आज भी उनकी तपस्थली पर जो भी कोई जाता है उसे अचूक लाभ मिलता है। हमें अपने भारतीय संतो के ऊपर विश्वास करना चाहिए आगे दोनों मंदिरों के बारे में अभी विस्तार से चर्चा करूंगा इसलिए आज संत परमहंस साधना कुटीर औका के बारे में लिख रहा हूँ। संत परमहंस महाराज की बहुत बड़ी कृपा ग्रामीणों और जौनपुर क्षेत्र के लोगों के ऊपर रही है फिर भी इनके भी चमत्कार कम नहीं थे। एक बार तो वार्षिक भंडारे के समय इन्होंने घी कम पड़ने पर लखेश्वरी नदी से पानी लेकर घी बना दिया था। ऐसे में बाबा परमहंस की समाधी जीती- जागती समाधी है। बाबा जी समाधिस्थ हैं । इस तरह से इस मंदिर की और भी महत्वता बढ़ जाती है। मंदिर में ऐतिहासिक मूर्तियां है तोरण द्वार हैं नदी के किनारे का मनोरम दृश्य बहुत ही सुंदर होता है। सामने की तरफ जंगल है। यहाँ पर एक पीछे की तरफ बहुत ही सुंदर उपवन है। प्रत्येक सप्ताह सोमवार से लेकर शुक्रवार तक मेला लगता है। श्रद्धालुओं की बढ़ती हुई भीड़ इस मंदिर को और भी भव्य बना रही है। आस्था और विश्वास का केंद्र यह मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है इस मंदिर में बाबा की समाधी के स्थान पर विशेष प्रकार के पत्थर की मूर्ति जिसे एक बाबा के ही शिष्य ने बनाया जो बहुत ही अद्भुत और चमत्कारिक है। अद्भुत कलाकृति की यह प्रतिमा पूरी तरह से सजीव प्रतिमा है, जिसका दर्शन करके सभी दर्शनार्थी व श्रद्धालु अटूट प्रेम और विश्वास रखते हुए लाभान्वित होते हैं।

औंका गांव स्थित साधना कुटीर परमहंस आश्रम भक्तिमय वातावरण के कारण आकर्षण का केंद्र है।

धनियानऊँ बाजार के पश्चिम मुख्य सड़क से ठीक दक्षिण केवल एक किमी दूर स्थित यह स्थान बाबा परमहंस कुटी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस पवित्र स्थल पर दर्शन से हर मुरादें बाबा अवश्य पूरी करते हैं। प्रत्येक शुक्रवार व सोमवार को दर्शनार्थियों की भारी भीड़ मेला में तब्दील हो जाती है।

आश्रम में बाबा अम्बर शंभू दास का पवित्र समाधि स्थल है। बुजुर्गों की मानें तो बाबा का जन्म फैजाबाद जिले के एक शाकलदीप ब्राह्मण परिवार में हुआ था। गुरु के आदेश पर वे औंका गांव स्थित लखेश्वरी नदी किनारे पहुंचे। घने जंगल लेकिन रमणीक स्थल देख कुटी बनाकर साधना में लीन हो गए। कठिन साधना व हठी बाबा कार्तिक पंचमी को जीवित समाधि ले लिए। तभी से यहाँ मेला, दर्शन-पूजन की प्रक्रिया शुरू हो गई है।

बाबा अम्बर शंभू जी के कई चमत्कार ग्रामीण कहते नहीं थकते। समाधि लेते समय महराज ने बताया था कि कोई साधारण संत यहाँ का सेवक नहीं हो सकता है। बाबाजी हमारे घर भी आया जाया करते थे हमारी परदादी मां बाबा की देखभाल किया करती थी उन्हें स्वादिष्ट पकवान जो उनको रुचिकर होता था बना कर खिलाती थी । ऐसे महान संत का सानिध्य पाकर हम सभी भी अपने आप को धन्य मानते हैं । हमारा विश्वास बाबाजी में अटूट है जो सदैव रहेगा। हम ऐसे महान पूजनीय संत जिन का महामंत्र ‘राम’ नाम का मंत्र है, को दिल की अनंत गहराइयों से नमन करते हैं। महराज के बाद स्वामी शिवमूर्ति शाह जी यहां बहुत दिनों तक साधना किए। बाबा लक्ष्मण दास व स्वामी शिवमूर्ति शाह जी के वरिष्ठ शिष्य सतई शाह जी ने भी लंबे समय तक कुटी की देखभाल की। बाबा राम प्रसाद शाह जो एक संत सिद्ध बाबा थे जिन्होंने इस मंदिर की सेवा अपने युवा काल से लेकर जीवन के अंतिम समय तक किए । कहते हैं कि इस शक्तिपीठ पर जो भी सच्चे मन से मुरादें मांगता है बाबा उसे अवश्य पूरी करते हैं।