उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) अंबेडकर नगर।
शनिवार से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो चुका है इस दौरान जगत जननी मां दुर्गा अपने भक्तों को विभिन्न नौ स्वरूपाें के दर्शन देती हैं तथा उनका कल्याण करती हैं नवरात्रि उत्सव के दौरान देवी दुर्गा के नौ विभिन्न रूपों का सम्मान किया जाता है,एवं पूजा जाता है, जिसे नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
माँ दुर्गा के ९ रूप ।
शैलपुत्री
ब्रह्मचारिणी
चन्द्रघंटा
कूष्माण्डा
स्कंदमाता
कात्यायनी
कालरात्रि
महागौरी
सिद्धिदात्री
1. शैल पुत्री- मां दुर्गा का प्रथम रूप है शैल पुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म होने से इन्हें शैल पुत्री कहा जाता है। नवरात्रि की प्रथम तिथि को शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनके पूजन से भक्त सदा धन-धान्य से परिपूर्ण पूर्ण रहते हैं।
माता शैलपुत्री को लगाया जाने वाला भोग-
नवरात्र के पहले दिन माता के प्रथम रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस दिन उपवास करने के बाद माता के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उपवास करने वाला निरोगी रहता है।
2. ब्रह्मचारिणी- मां दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। मां दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाली है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।
माता ब्रह्मचारिणी को लगाया जाने वाला भोग
नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता इस रूप में तपस्विनीस्वरूपा होती है। माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या-साधना की थी, उसी रूप के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इस दिन माता ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए उनको शकर का भोग लगाया जाता है। इस दिन माता को शकर का भोग लगाने से घर के सभी सदस्यों की आयु में बढ़ोतरी होती है।
3. चंद्रघंटा- मां दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वीरता के गुणों में वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश होता है व आकर्षण बढ़ता है।
माता चंद्रघंटा को लगाया जाने वाला भोग- माता के तीसरे रूप में चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। माता चंद्रघंटा के माथे पर चंद्र अर्द्ध स्वरूप में विद्यमान है। नवरात्र के तीसरे दिन इनका पूजन-अर्चन किया जाता है। माता चंद्रघंटा का पूजन करने से उपवासक की सभी मनोइच्छा स्वत: पूरी हो जाती है तथा वह सांसारिक कष्टों से मुक्ति पाता है। माता की पूजा करते समय उनको दूध या दूध से बनी मिठाई अथवा खीर का भोग लगाया जाता है। भोग लगाने के लिए एक थाल ब्राह्मण के लिए भी निकाली जाती है। ब्राह्मण को भोजन के साथ-साथ दक्षिणा आदि भी दान में दी जाती है। माता चंद्रघंटा को खीर का भोग लगाने से उपवासक को दु:खों से मुक्ति प्राप्त होती है और उसे परम आनंद की प्राप्ति होती है।
4. कुष्मांडा- चतुर्थी के दिन मांं कुष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों, निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु व यश में वृद्धि होती है।
माता कूष्मांडा को लगाया जाने वाला भोग-
नवरात्रे का चौथा दिन माता कूष्मांडा की पूजा-आराधना करने का है। यह माता कूष्मांडा का चौथा रूप है। एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति माता कूष्मांडा के उदर से हुई है। नवरात्रे के चौथे दिन इनकी पूजा-आराधना की जाती है। चौथे नवरात्रे को जो जन पूर्ण विधि-विधान से उपवास करता है, उसके समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। माता कूष्मांडा की पूजा करने के बाद इस दिन उनको मालपुओं का भोग लगाया जाता है। यह प्रसाद मंदिरों में बांटना भी इस दिन शुभ रहता है। इस दिन माता को मालपुए का भोग लगाने से माता प्रसन्न होकर उपवासक की बुद्धि का विकास करती हैं और साथ-साथ निर्णय करने की शक्ति भी बढ़ाती है।
5. स्कंदमाता- नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है।
माता स्कंदमाता को लगाया जाने वाला भोग-
नवरात्र के पांचवें दिन माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है। माता स्कंदमाता कुमार कार्तिकेय की माता है। पांचवें दिन माता के इस रूप की आराधना करने से उपवासक को स्वत: ही सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इस पूरे दिन उपवास करने के बाद माता को केले का भोग लगाया जाता है। इस दिन माता को केले का भोग लगाने से शरीर स्वस्थ रहता है।
6. कात्यायनी- मां का छठवां रूप कात्यायनी है। छठे दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है। कात्यायनी साधक को दुश्मनों का संहार करने में सक्षम बनाती है। इनका ध्यान गोधूली बेला में करना होता है।
माता कात्यायनी को लगाया जाने वाला भोग-
माता कात्यायनी माता दुर्गा का छठा रूप है। माता कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। माता को अपनी तपस्या से प्रसन्न करने के बाद उनके यहां माता ने पुत्री रूप में जन्म लिया, इसी कारण वे कात्यायनी कहलाईं। नवरात्र के छठे दिन इनकी पूजा-आराधना की जाती है। इस दिन माता को भोग में शहद दिया जाता है। माता कात्यायनी को शहद का भोग लगाने से उपवासक की आकर्षण शक्ति में वृद्धि होती है।
7. कालरात्रि- नवरात्रि की सप्तमी के दिन मांं काली रात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है। तेज बढ़ता है।
माता कालरात्रि को लगाया जाने वाला भोग-
सप्तमी तिथि में माता के कालरात्रि स्वरूप की पूजा-आराधना की जाती है। ये माता काल अर्थात बुरी शक्तियों का नाश करने वाली हैं इसलिए इन्हें कालरात्रि के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के सातवें दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को पूरे दिन का उपवास करने के बाद माता को गुड़ का भोग लगाया जाता है। इसी भोग की एक थाली भोजन सहित ब्राह्मण को दान-दक्षिणा दी जाती है। इस प्रकार माता की पूजा करने से व्यक्ति पर आने वाले शोक से मुक्ति मिलती है व उपवासक पर आकस्मिक रूप से आने वाले संकट भी कम होते हैं।
9. सिद्धिदात्री- मां सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्रि की नवमी के दिन किया जाता है। इनकी आराधना से जातक अणिमा, लघिमा, प्राप्ति,प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसांयिता, दूर श्रवण, परकाया प्रवेश, वाक् सिद्धि, अमरत्व, भावना सिद्धि आदि समस्तनव-निधियों की प्राप्ति होती है।
माता सिद्धिदात्री को लगाया जाने वाला भोग- नवरात्र के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना का होता है। माता सिद्धिदात्री को सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली कहा गया है। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इन्हें सिद्धियों की स्वामिनी भी कहा जाता है। नवमी तिथि का व्रत कर, माता की पूजा-आराधना करने के बाद माता को तिल का भोग लगाना इस दिन कल्याणकारी रहता है। यह उपवास व्यक्ति को मृत्यु के भय से राहत देता है और अनहोनी घटनाओं से बचाता है।
- ज्योतिषाचार्य
सुनील चंद शुक्ला
6392776124 अंबेडकरर नगर।
रिपोर्ट- विमलेश विश्वकर्मा अंबेडकरनगर।
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