धार्मिक उन्माद फैलाते है ऐसे वेब सीरीज !

उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) जौनपुर

बिना कहानी के ये वाहियात वेब सिरीज़ देख – देखकर, दर्शक को अपना कीमती समय बर्बाद करने से, कम से कम ये तो पता चल गया होगा कि कुछ ‘खास’ लोगों का तांडव जैसी वेब सीरीज़ को बनने का मक़सद क्या था।शुरुआत ग्रेटर नोएडा में हुए भट्टा पारसौल के किसान आंदोलन से होती है। जिसमे जबरदस्ती 2 मुस्लिम लड़को की पुलिस द्वारा जानबूझकर ‘पाप’ मानकर हत्या करना दिखाया गया है। ये हत्या क्यों कि गई अंत तक पता नहीं चला, जेएनयू की वामपंथी राजनीति को विवेकानंद यूनिवर्सिटी के नाम से दिखाया गया है। बड़ी सफाई ये निर्देशक ने ये साबित करने की कोशिश की है कि कैसे वामपंथी विचारधारा के छात्र गरीबी, सामंतवाद और देश के अंदर मौजूद बुराईयो से आज़ादी चाहते है। इस देश में आज के दौर में कैसे भगवान के नाम पर हिंदुत्व की दुकान चलाई जा रही है। इसी घटिया सीरीज़ में निर्देशक ने ये भी साबित कर दिया कि जेएनयू का लापता हुआ छात्र नजीब कैसे गायब हुए था। हालांकि नजीब कहाँ है किसी को नहीं पता लेकिन इस सीरीज में बड़ी सफाई से दिखाया गया है कि उसके अपहरण और हत्या के पीछे केंद्र सरकार है और सरकार ने ही उसकी हत्या भी करवा दी है। अब सीरीज़ में दिखाई गई केंद्र सरकार किस पार्टी की है ये बताने की ज़रूरत नहीं है। मुझे लगता है इस सीरीज में दिल्ली दंगो के मास्टरमाइंड उमर खालिद को मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब को शिवा शेखर तौर पर एक देशभक्त और क्रांतिकारी छात्र दर्शाया गया है। जो अपनी पार्टी का नाम ‘तांडव’ रखता है. अब सवाल उठता है ‘तांडव’ ही क्यों ? शायद निर्देशक ये बताने की कोशिश करना चाहता है कि जैसे भगवान शिव क्रोधित होकर जब तांडव नृत्य करते थे तो प्रलय आ जाती थी । ठीक वैसे है अब विवेकानंद यूनिवर्सिटी उर्फ जेएनयू के वामपंथी छात्र ही देश मे बदलाव लेकर आएंगे ।’इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक है इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है’ इस तरह का डिसक्लेमर चलकर निर्देशक अपने अंदर की कुंठा को टीवी पर दिखाकर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकता। निर्देशक की नज़रों में देश का प्रधानमंत्री करप्ट और क़ातिल है ।पुलिस क़ातिल और घूसखोर है,सीबीआई झूठे सबूत प्लांट करती है । मीडिया बिकी हुई और सरकार से मिली हुई है ,देश का पूरा सिस्टम सरकार के हाथ की कठपुतली है ,सिर्फ और सिर्फ इस देश मे विवेकानंद यूनिवर्सिटी जेएनयू के छात्र- छात्राएं ही सिर्फ क्रांतिकारी और देशभक्त है ।

कभी, पद्मावत , कभी तांडव तो कभी लक्ष्मी बम आखिर ये क्या बात हुई कि जो भी उठता है हिन्दू संस्कृति पर कुठाराघात करता है । हमारे हिन्दू सभ्यता और सनातन संस्कृति को ही तोड़ा मरोड़ा जाता है ,आखिर क्यों ? क्या अन्य धर्म वाले फतवा जारी करते है इसलिए उन्हें फिल्मकार टारगेट करने से डरते है ! देखिए एक पत्रकार और बुद्धिजीवी शिक्षक होने के नाते मेरे मन में ये प्रश्न बार बार उठते है की दीवाली पर ध्वनि प्रदूषण और होली पर जल प्रदूषण का ज्ञान देने वाले बकरीद जैसे त्योहारों पर चुप्पी क्यों साध लेते है ! अनुभव कश्यम , शबाना आजमी, जैसे संजीदा लोग केवल हिन्दू धर्म के खिलाफ ही क्यों आवाज उठाते है ! हिन्दुओं ने सनातनी परम्परा में ये सीखा की विश्व बंधुत्व की भावना ही सर्वोपरि होती है किन्तु अन्य धर्म वाले कब ये सीखेंगे । ये धर्म के यूनिवर्सिटी कब बंद होंगे जहां रोहित वेमुला जैसे युवा आतंकी और देशद्रोही गतिविधियों में धकेल दिए जाते है ,जहां दिल्ली दंगो जैसे साजिश रची जाते है । कभी मकबूल हुसैन की पेंटिंग तो कभी इजराइल के एक बियर की बोतल पर गणेश जी की तस्वीर,माना कि ये एक अभिव्यक्ति का अधिकार हो सकता है लेकिन इस अभिव्यक्ति में सिर्फ एक ही धर्म टारगेट क्यों रहता है,क्या मकबूल साहब की ब्रश कभी पैगम्बर साहब को नंगा चित्रित कर सकती है या बियर की बोतल पे कभी ईसा मसीह की फ़ोटो आ सकती है,किसी का मूल अधिकार भी वही तक होता है जब तक कि वो औरो के मूल अधिकार का हनन ना करे ये बात सुप्रीम कोर्ट भी कहती है फिर ये फिल्मकार और आदाकर क्यों भूल जाते है ? लोग जिस दिन उग्र हो गए आपकी जड़े हिल जाएंगी ,अगर इतनी ही कला एवं अभिव्यक्ति का बुखार है तो इसमें भी सर्व धर्म समभाव दिखाए, क्या प्रगतिशील और सहिष्णुता का ठेका अकेले हिन्दू धर्म ने ही उठा रखा है । योगी सरकार ने जैसे धर्मांतरण पर कानून बनाया वैसे ही एक कानून और बनाना चाहिए जो लोगों को अभिव्यक्ति के अधिकार का दुरुपयोग करने से रोक सके नही तो जल्द ही हिन्दू धर्म सिर्फ एक मजाक का विषय हो के रह जायेगा ।

— पंकज कुमार मिश्रा (एडिटोरियल कॉलमिस्ट पत्रकार एवं शिक्षक) केराकत जौनपुर उत्तर प्रदेश 8808113709।

रिपोर्ट ‌अभिषेक शुक्ला