*मानकविहीन व बिना फार्मासिस्ट के संचालित हो रहे मेडिकल स्टोर*

उत्तर प्रदेश/राष्ट्रीय दैनिक कर्म भूमि/सरेनी रायबरेली – सरेनी क्षेत्र के अंतर्गत ग्रामीण इलाको के अधिकांश मेडिकल स्टोर बगैर फार्मासिस्ट के ही संचालित किए जा रहे हैं जिसमे रालपुर ,बेनीमाधवगंज,क्रासिंग व भूपगंज मे कई मेडिकल स्टोर तो ऐसे हैं, जिन्होंने अपने यहां फार्मासिस्ट की नियुक्ति तो दिखा रखी है, लेकिन वह कभी मौजूद नहीं मिलते हैं। इस प्रकार कई मेडिकल स्टोर पर अप्रशिक्षित लोग ही दवाएं देते हैं। ऐसे में डाक्टर के द्वारा पर्चे पर लिखित दवा मरीज को सही दवा नहीं मिल पाती। वही कई ऐसे हैं जो मेडिकल स्टोर को ही अपना क्लीनिक बना रखा है। ऐसे मेडिकल स्टोर मरीज की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं,बिना फार्मासिस्ट के ही मेडिकल स्टोर संचालन की जानकारी स्वास्थ्य विभाग को लंबे समय से है, फिर भी सब जानते हुए भी उदासीन रवैया अपनाए हुए हैं ग्रामीण इलाके में दर्जन भर से अधिक मेडिकल स्टोर्स हैं। कहने को तो मेडिकल स्टोर्स के संचालन के लिए डिग्री, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट के आधार पर लाइसेंस जारी किए जाते हैं, लेकिन हकीकत इससे परे है। ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ मेडिकल व्यवसायी नियमों को ताक में रखते हुए मेडिकल दुकानों का संचालन कर रहे हैं। बिना फार्मासिस्ट व जरुरी दस्तावेज के मेडिकल दुकान का व्यवसाय किया जा रहा है मेडिकल की आड़ में यहां अवैध रूप से लोगों का इलाज किया जा रहा है। वही कई मेडिकलों में अपात्र व्यक्तियों को मेडिकल दुकान संभालने की जिम्मेदारी दे दी गई है, जिसे दवाइयों की जानकारी तक नहीं रहती है। इन मेडिकल स्टोर्स के खिलाफ न तो ड्रग इंस्पेक्टर कोई कार्रवाई करते हैं और ना ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी,आपको जानकर हैरानी होगी कि आलम यह है कि जिन फार्मासिस्टों के नाम लाइसेंस जारी किए गए हैं, उनमें अधिकाश बाहरी जिले के हैं, जो दुकानों पर झाकने तक नहीं आते। अयोग्य व्यक्ति दुकान संचालित कर रहे हैं। वहीं तमाम मेडिकल स्टोर मानक विहीन संचालित हो रहे हैं, जिनका लाइसेंस तक नवीनीकृत नहीं हुआ अधिकारी किस प्रकाश शासनादेशों की धज्जियां उड़ाते हैं नए शासनादेश पर गौर करें, तो फुटकर दवा दुकानों पर एक फार्मासिस्ट की तैनाती होनी चाहिए। 1413 का पक्का कमरा, फ्रीज व कंप्यूटर होना चाहिए। संचालक इंटर पास हो। पेटेंट के लिए कुछ प्रचारक दवाएं ही बेचे जाने का प्रावधान है। इन दुकानों पर बायोलोजीकल, नान बायोलोजीकल दवाएं व वैक्सीन नहीं बेच सकते हैं।

दुर्भाग्य यह है कि थोक दुकानों को छोड़ दें, तो यह पता नहीं चलता कि कौन सी दुकान फुटकर है और कौन सी पेटेंट। बड़ी संख्या में फुटकर दुकानों के लाइसेंस का नवीनीकरण तक नहीं हुआ है। इससे एक बात तय हो जाती है, कि लाइसेंस नवीनीकरण न कराने वाली सभी दुकानें अवैध रूप से संचालित हैं। इसके बावजूद विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की। कारण क्या है? सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। दुकानों पर फार्मासिस्ट की तैनाती के आदेश पर गौर करें, तो एक फार्मासिस्ट एक ही दुकान पर अपना प्रमाण पत्र दे सकता है।
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रिपोर्ट दैनिक कर्मभूमि अनुज अग्निहोत्री रायबरेली*