होली पर सच्चाई के रंग भरे और सब एक हो जायें : साहित्यकार बृजभूषण परिहार अकेला

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) कानपुर होली का पर्व आने वाला है और रंगों से भरे त्योहार को लेकर जोरशोर से तैयारियां जारी है।साहित्यकार बृजभूषण सिंह परिहार अकेला ने बताया कि रंगों का त्योहार सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है। दुनिया के कई देशों में भी रंगों से जुड़े पर्व विभिन्न नाम और परंपराओं के साथ मनाए जाते हैं। ये त्योहार जीवन, उत्सव और सांस्कृतिक विविधता के प्रतीक हैं।रंगों यानी खुशियां..रंग यानी उल्लास..रंग यानी जीवन। रंगों को जीवन की ऊर्जा, भावनाओं और विभिन्न अनुभवों का प्रतीक माना जाता है।उन्होंने बताया कि हर रंग की अपनी एक विशेषता होती है और जब इन रंगों को एक साथ मिलाया जाए ये जीवन को सौंदर्य से भर देते हैं। यही कारण है कि भारत सहित दुनिया के कई हि्सों में रंगों से जुड़े त्योहार मनाए जाते हैं।

होलिका दहन क्यों मनाया जाता है साहित्यकार बृजभूषण सिंह परिहार अकेला ने बताया कि इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन विशेष रूप से होलिका दहन किया जाता है, जिसमें लकड़ी और उपले जलाकर पौराणिक परंपराओं का पालन किया जाता है। इस आयोजन के बाद रंगों की होली खेली जाती है, जो प्रेम, उल्लास और भाईचारे का संदेश देती है।

होलिका दहन का महत्व होलिका दहन भारतीय संस्कृति में अति महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं,बल्कि जीवन के गहरे संदेश देने वाला पर्व भी है। होलिका दहन का महत्व कई संदर्भ में देखा जा सकता है ।

बुराई पर अच्छाई की जीत साहित्यकार बृजभूषण सिंह परिहार अकेला ने बताया कि इस पर्व की सबसे प्रमुख कथा भक्त प्रह्लाद, उनके दुष्ट पिता हिरण्यकश्यप और उनकी बुरी बुआ होलिका से जुड़ी है।हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का कट्टर विरोधी था और चाहता था कि पूरा संसार उसकी पूजा करे। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन हर बार वह असफल रहा। अंततः उसने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने का आदेश दिया। उन्होंने बताया कि होलिका को वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती,लेकिन विष्णु-कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच गए और होलिका जलकर भस्म हो गई। इस घटना के स्मरण में होलिका दहन किया जाता है, जो यह संदेश देता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और भक्ति की जीत होती है।

नकारात्मकता से मुक्ति का प्रतीक श्री बृजभूषण परिहार ने बताया कि होलिका दहन केवल एक पौराणिक कथा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें नकारात्मकता, ईर्ष्या, द्वेष और अहंकार से मुक्ति पाने की सीख भी देता है। होली के इस पर्व पर लोग अपने भीतर की बुराइयों को त्यागने और प्रेमभाव से जीवन जीने का संकल्प लेते हैं।

रोग-निवारण और प्राकृतिक शुद्धिकरण बृजभूषण परिहार ने कहा कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, होलिका दहन के दौरान जलने वाली लकड़ियों और उपलों से निकलने वाली ऊर्जा वातावरण को शुद्ध करती है। यह संक्रमण और बीमारियों से बचाव में सहायक होती है, क्योंकि इस समय मौसम परिवर्तनशील होता है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

होलिका की राख का महत्व होलिका दहन के अगले दिन लोग उसकी राख को अपने शरीर पर लगाते हैं। श्री बृजभूषण परिहार ने बताया कि मान्यता है कि यह राख नकारात्मक शक्तियों को दूर करने के साथ-साथ रोगों से भी रक्षा करती है। इसे घर में लाकर शुभ स्थानों पर छिड़कने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।

समाज में होली का संदेश साहित्यकार बृजभूषण सिंह परिहार अकेला ने बताया कि यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, समाज में प्रेम और भाईचारे की भावना और नकारात्मकता से मुक्ति का प्रतीक है। इसकी परंपराएं हमें भारतीय संस्कृति की समृद्धि और आध्यात्मिकता का एहसास कराती हैं। धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टि से भी यह पर्व महत्वपूर्ण है। इस होली पर आइए हम भी अपनी नकारात्मक भावनाओं को जलाकर एक नए उत्साह और प्रेम के साथ जीवन में आगे बढ़ने का संकल्प लें।

संवाददाता आकाश चौधरी कानपुर

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