दैनिक कर्म भूमि।कानपुर।स्काउटिंग का मूल मंत्र है सेवा और कोशिश करना।स्काउटिंग के जनक लॉर्ड रॉबर्ट स्टीफेंशन स्मिथ बेडेन पॉवेल सेना में अधिकारी थे।अपने बाल्यकाल में बेडेन पॉवेल अपने भाइयों के साथ टोली बनाकर बाहरी जीवन,नौका चालन,समुद्र में तैरना,शिविर लगाना,खाना पकाना व साहसिक क्रिया कलापों में भाग लेते थे उन्हें भ्रमण करने का बड़ा शौक था।वे जहां भी जाते वहां के रीति -रिवाजों,रहन – सहन का गहन अध्ययन करते।अफ्रीका देश में प्रवास के दौरान उन्होंने 19 जुलाई 1907 को ब्राउंसी द्वीप में पहला कैंप लगाकर स्काउटिंग की शुरुआत की। 24 दिसंबर 1909 को क्रिस्टल पैलेस लंदन में बॉयज स्काउट की रैली में 7 लड़कियां खाकी वर्दी में मार्च पास्ट करती हुई आ गई,जिसको देखकर 1910 में उनकी बहन मिस ऐग्निस बेडेन पॉवेल ने गर्ल गाइडिंग की स्थापना की।भारत में एक अक्टूबर 1916 को मद्रास(चेन्नई) विधिवत स्काउट रैली हुई।आज ये एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है।औरैया के रहने वाले एएलटी मनीष मिश्रा ने बताया कि स्काउट जीवन जीने की कला के लिए प्रेरित करती है जिसमे पूर्णतः अनुशासन के साथ समय से उठना व्यायाम करना,भोजन का समय,अनुमान लगाना,दक्षता पदक,पायनरिंग आदि है।कानपुर स्काउट और गाइड कानपुर के सहायक सचिव सर्वेश तिवारी ने बताया कि बच्चों के अंदर खेल खेल में वो गतिविधियां कराई जाती है जो उनके सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध होती है । ट्रूप मीटिंग,टोली निर्माण,उद्देश्यपूर्ण बाहरी गतिविधियां,टेंट लगाना,प्राथमिक चिकित्सा,कंपास एवं मानचित्र,बिना बर्तनों के भोजन,संकेत वार्ता,सेवा आदि के माध्यम से बच्चों को संस्कारवान और आत्मनिर्भर बनाने की एक सतत प्रक्रिया है।बच्चों का प्रशिक्षण प्रथम सोपान से प्रारंभ होकर राष्ट्रपति अवार्ड तक जाता है।बच्चे राष्ट्र के भावी कर्णधार है और स्काउटिंग उन्हें इस गुरूतर दायित्व के निर्वहन के लिए तैयार करने तथा अपेक्षित ज्ञान व कौशल से परिपूर्ण बनाने की शिक्षा देती है।
संवाददाता।आकाश चौधरी
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