उत्तर प्रदेश(दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट-मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की साधना स्थली चित्रकूट में 47वां राष्ट्रीय रामायण मेला सम्पन्न हो रहा है। द्वितीय दिवस की प्रथम व्याख्यान सभा का अध्यक्ष संकटमोचन हनुमान को स्वीकार करते हुए रामकथा मर्मज्ञों ने विभिन्न प्रसंगों को प्रस्तुत किया। छिंदवाड़ा के सीताराम रामयणी ने राम नाम की महिमा पर चर्चा करते हुए कहा राम नाम लेत भव सिंधु सुखाहीं, भगवान राम के नाम में इतनी अपार ऊर्जा है कि बड़े से बड़े संकट का स्वतः निदान होता है। उन्होंने कहा कि तुलसी ने सर्वप्रथम भवानी संकर बंदौं श्रद्धा विष्वास रुपिणौ। जो श्रद्धा और विश्वास के साक्षात स्वरुप हैं। मानस की रचना सर्वप्रथम इन्हीं की वंदना कर प्रारंभ की। भगवान शंकर की कृपा के बगैर भगवान श्रीराम के दर्शन नहीं हा पाते। उन्होंने राम नाम के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि उनका नाम प्रेम से किसी समय लेने से भी जीव भवसागर से पार हो जाता है। झांसी से पधारे लोक गायक रघुबीर यादव ने भगवान राम की महिमा का वर्णन भजनों के माध्यम से करते हुए कहा कि ‘हे कामदगिरि हमें शक्ति दो, तुमको राम दुहाई, लंका जाने से पहले राम यही पर आये थे, ऋषि संस्कृति को उन्होंने दिया बढ़ावा’ आदि गीतों को सुनाकर दर्शकों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। झांसी से ही आई लोकगायिका सुशीला ने हनुमान द्वारा सीता को अंगूठी देने का प्रसंग ‘ये अंगूठी नहीं मेरे पति की निशानी है’ भजन के माध्यम से सुनाकर दर्शकों को आनंदित किया। डा0 तीरथदीन पटेल ने ‘राम नाम गंगा अगम गहरी’ भजन द्वारा राम की महिमा का बखान किया। जिसे दर्शकों ने भूरि-भूरि सराहा। रामभरोसे तिवारी रामकथा व्यास ने श्रद्धा और विश्वास को जीवन की सफलता के लिए आवश्यक बताया। ईश्वर सर्वत्र विराजमान है। कहा कि ईश्वर में जिसे सच्चा विश्वास है वह कभी भी किसी का अहित नहीं कर सकता। डबरा ग्वालियर से पधारे श्रीलाल पचौरी ने गीत के माध्यम से बताया कि लेखनी तुलसी की कथा कमाल कर गई, मुरझाती धर्म बेल को रसमाल कर गई। प्रथम सत्र का संचालन करते हुए प्रयागराज के डा0 सीताराम सिंह ‘विश्वबंधु’ ने रामचरितमानस के संदेशों को जीवन में उतारने का आह्वान किया। विश्वबंधु ने सनातन संस्कृति को शिक्षा में अनिवार्य करने की आवश्यकता बताई। मानस के आदर्श परिवार और समाज तथा मानवता के लिए मंत्र की तरह उपयोगी हैं। बम्बई महाराष्ट्र से पधारे पं. वीरेन्द्र प्रसाद रामायणी ने बताया कि मानस में सुखी मीन जहं नीर अगाधा, जिमि हरि सरण न एकौ बाधा’ प्रमाण देते हुए कहा कि जिस प्रकार जल पर मीन (मछली) आनंदित रहती है उसी प्रकार भगवान के चरणों का आश्रय मिल जाने पर उनका भक्त सुखी और प्रफुल्लित रहता है। संचालन सीताराम सिंह ‘विश्वबंधु’ ने किया।
*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव चित्रकूट
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