उत्तर प्रदेश(दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट-रामायण मेले के तृतीय दिवस संपन्न हुई विद्वत गोष्ठी को देश के विभिन्न प्रांतों के प्रख्यात विद्वानों ने सम्बोधित करते हुए अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए। तीसरे दिन की विद्वत गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रयागराज से पधारे रामकथा के तत्वान्वेषी विद्वान डा0 सभापति मिश्र ने राम की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राम जितने अपने युग त्रेता में प्रांसगिक थे उतने ही आज भी प्रासंगिक हैं। भगवान शिव से पार्वती का पहला प्रश्न ही था कि राम कौन हैं? यही प्रश्न प्रयागराज में भरद्वाज मुनि ने महर्षि याज्ञवल्क्य जी से पूछा था, यही प्रश्न नीलगिरि पर्वत पर गरुण जी ने कागभ्ुशुंडि जी से पूछा था, इसी प्रश्न का समाधान वाल्मीकि जी ने अपनी सौ करोड़ रामायणों में किया है। इस प्रकार राम के बारे में जिज्ञासा भारतीय मनीषा की प्रथम आवश्यकता है। राम ने अपने जीवन और विविध कार्यां के द्वारा जिस समता मूलक समाज की स्थापना की थी उसमें उन्होंने समता, समानता और बन्धुत्व का आदर्श प्रस्तुत किया था। यही कारण है कि आज सम्पूर्ण विश्व भगवान राम को अपना पूर्वज मानता है। भगवान राम सप्तसागर पर्यन्त सम्पूर्ण भूमण्डल के एकमात्र चक्रवर्ती सम्राट थे। ‘भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला।’ भगवान राम ने जाति विहीन, वर्ण विहीन, सर्व सुखदाई समाज की स्थापना की। जहां न कोई दुखी है, न दीन है सब आमोद प्रमोद से विचरण करते हैं। भगवान राम ने शबरी का आतिथ्य ग्रहण किया। निषादराज को गले लगाया, बंदर-भालुओं से बंधुता स्थापित की, कोल-भीलों के साथ रहकर समतामूलक समाज की स्थापना की। इस प्रकार राम का संपूर्ण जीवन लोक कल्याण और लोक मंगल से प्रभावित रहा। यही कारण है कि विश्व के तमाम देश जो अन्य धर्मों को मानने वाले हैं वे भी राम को आदर्श राजा मानते हैं। लंका के युद्ध में रथारुढ़ रावण तथा पैदल चलने वाले राम को देखकर विभीषण चिंतित हो जाता है जिसका समाधान करते हुए भगवान राम ने विभीषण से कहा था कि जिस रथ से विजय प्राप्त होती है वह सत्य, शील, कृपा, क्षमा, करुणा आदि गुणों से युक्त होता है। भगवान राम ने अपनी जो सेना बनाई थी वह राम के प्रति समर्पित थी जिसे न भोजन की आवश्यकता थी, न वस्त्र की आवश्यकता थी और न आवास की आवश्यकता थी। इस प्रकार राम ने जिस समाज की परिकल्पना की थी वह चरित्र प्रधान था और सारा जीवन संघर्ष करके जिस सत्य की साधना की वह भारतीय संस्कृति का प्रमुख जीवन मूल्य हो गया। यही कारण है कि राम आज भी हमारे लिए आदर्श राजा, प्रजापालक तथा आदर्श सम्राट के रुप में अनुकरणीय हैं। रामचरितमानस मानव जीवन की आचार संहिता है। वर्तमान समय में यह पंचम वेद के रुप में स्वीकार किया जाता है। इसी क्रम में डबरा से पधारे श्रीलाल पचौरी की पुस्तक ‘अचूक अमोघ शक्ति’ का विमोचन डा0 सभापति मिश्र तथा तिरुपति स्वामी ने किया तथा उस ग्रंथ के महत्व पर प्रकाश भी डाला। भदोही से पधारे रामचरितमानस की हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के विशेषज्ञ डा0 उदयशंकर दुबे ने बुंदेलखण्ड में उपलब्ध साढ़े पांच सौ प्रतियां का उल्लेख किया। जिसका विवरण उनके पास उपलब्ध है। यहां के पत्थरों में रामकथा के अनेक विवरण उत्कीर्ण हैं जो प्राचीनता के कारण आज स्पष्ट रुप से पढ़े नहीं जा सकते। गुप्त गोदावरी, देवांगना, पंपापुर, ऋषियन, कालिंजर आदि स्थानों में उपलब्ध पत्थरों में रामकथा के साक्ष्य बिखरे पड़े हुए हैं। बुंदेलखण्ड के विद्यापति डा0 चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ‘ललित’ ने बुंदेलखण्ड में प्राप्त रामचरितमानस के अनेक पाठों की चर्चा करते हुए कहा कि रामकथा अनंत है। इनकी चौपाईयों का अध्ययन, मनन एक ओर रसात्मक आनंद देता है तो वहीं दूसरी ओर इसकी गूढ़ पंक्तियों में भारतीय आध्यात्म तथा दर्शन को सुलझाने की एक अनूठी शक्ति है। गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस विश्व की बहुमूल्य कृति है जिसमें जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान निहित है। जिस कारण यह भारत के बाहर चीन, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरीशस आदि देशों में पवित्र ग्रंथ के रुप में पूज्य है और इस ग्रंथ में जीवन की प्रत्येक समस्याओं का समाधान निहित है। वर्तमान समय में जब विश्व आतंकवाद, असुरक्षा, पर्यावरण प्रदूषण आदि समस्याओं से ग्रस्त है उसके निराकरण का एकमात्र समाधान रामचरिमानस है। डा0 दीक्षित ने अपने व्याख्यान के माध्यम से रामचरितमानस को राष्ट्रीय गं्रथ घोषित करने का भी आह्वान किया। जनपद रामपुर के वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन आफ रिलीजन्स एण्ड नॉलिज के जुनैद अथर ने वेद-पुराण, कुरान, बाइबिल आदि ग्रंथों पर कहा कि मानव जाति की शुरुआत धरती पर आदम व शतरुपा के रुप में भेजकर हिन्दुस्तान विश्व की माता बनी। उन्होंने बताया कि विश्व की मानव जाति भारत के गर्भ से निकली हुई है। संपूर्ण विश्व का मानस परस्पर आपस में खूनी रिश्ते से भाई-भाई है। श्री अथर ने बताया कि ईश्वर ने सबसे पहले अपनी वाणी वेद के रुप में हमारे ही देश में अवतरित की। मानव ने वर्तमान समय में अज्ञानता, अहं और दंभ को अपना लिया है। वेद की वाणी में ‘अपक्रामन् पौरूयेयाद वृणानो दैव्यं वचः। प्राणिŸार आवर्तस्व विश्वेभिः सरिवभि सहः।।’ मगर आज हमने वेद की आशा को धूमिल कर दिया और हर तरह की कल्पनाओं को अपनाकर धर्म का रास्ता त्याग दिया। उन्होंने कहा कि ईश्वर ने महाजलप्लावन वाले मनु जिन्हें हिंदू धर्मशास्त्रों न्यूह या कुरान नूह के नाम से पुकारा है। इनको भेजकर याद दिलाया कि मैं तुम्हारी तरफ ईश्वर का दूत बनकर भेजा गया हूं सभी लोग ईश्वर की उपासना करो। वेदों में जिस सत्य, धर्म की पा्ररंभिक रुपरेखा मिलती है उसी तरह गीता में धर्म के पालन का जो संदेश दिया है श्रीराम और श्रीकृष्ण व लाखों ऋषि मुनियों ने मानव को जिस आध्यात्म की प्रेरणा दी वह कुरान, वेदों को प्रमाणित करती है। कुरान अरबवासियां या मुसलमानों की जागीर नहीं है। प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों के नाते भारत की पहचान पावन धरोहर भी है जो ईश्वर के सनातन, शाश्वत धर्म को स्थापित कर देगी। वेदों का कुरआन के प्रकाश में अध्ययन कर एक बार फिर उसी आध्यात्म का अभ्युदय होगा जिसने प्राचीन काल में भारत को विश्व का धर्मगुरु बनाया था। उन्होंने बताया कि वेद, पुराण, बाइबिल और कुरआन सब का एक ही भाव ईश्वर प्राप्ति व मानव की सेवा है। बंबई से पधारे वीरेन्द्र प्रसाद शास्त्री ने कहा कि जीवन में जब तक परमात्मा के प्रति समर्पण का भाव नहीं होगा तब तक जीवन में अशांति, दुख और चिंता बनी रहेगी। जब मानव अपने आप को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देता है तो वहां प्रभु की जिम्मेदारी हो जाती है। ‘सनमुख होई जीव मोहि जबहिं, जन्म कोटि अघनासौ तबहिं’। इसी प्रकार वाल्मीकि रामायण में भी इस बात की पुष्टि है ‘सकृदेव प्रपान्ताय तवास्मित च याचते। अभयं सर्वभुवेभ्यो ददामि येतत वृतं मम्।।’ अर्थात् प्रभु का भक्ति के प्रति विरद है कि जो हाथ उठाकर एक बार कह देता है कि प्रभु मैं तेरा हूं उस भक्त को सभी भौतिक प्रपंचों से अभय कर देता हूं इसलिये हमें प्रभु की शरण में जाना चाहिये।
*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव चित्रकूट
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