उत्तर प्रदेश(दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट-भगवान राम और ऋषियों, मुनियों की सत्संग स्थली चित्रकूट के राष्ट्रीय रामायण मेले में रामचरितमानस व विभिन्न रामायणों के शोधपरक विभिन्न भाषा भाषी विद्वानों के बौद्धिक व्याख्यानों, ख्यातिलब्ध कथावाचकों के पारंपरिक प्रवचन, रामलीला, रासलीला तथा भगवान श्रीराम एवं कृष्ण काव्यों के आधार पर जैसे शास्त्रीय नृत्यों, रामकथा प्रदर्शनी आदि विविध रसोत्पादक एवं ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों का आयोजन सम्पन्न हो रहा है। इसी क्रम में ही राष्ट्रीय रामायण मेले के तृतीय दिवस रामायण के विभिन्न प्रख्यात विद्वानों में छिंदवाडा म0प्र0 के सीताराम शरण रामायणी ने श्रीराम और रामायण के बारे में कहा कि मानस की चौपाईयां मंत्र हैं। श्रीरामचरितमानस आदर्श जीवन के लिये आचार संहिता के समान है। मनुष्य यदि मानस की एक चौपाई को भी जीवन में उतार ले तो उसका जीवन भवसागर पार हो जायेगा। उन्होंने कहा कि ‘परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई’ अर्थात् दूसरों की भलाई के समान कोई दूसरा धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाने के समान कोई अधर्म नहीं है। वहीं छिंदवाड़ा से ही पधारीं सुश्री वसुंधरा रामायणी ने कहा कि जीवन में और समाज की प्रगति में नारी की विशेष भूमिका है। वनवास प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि वनवास तो रामजी का हुआ था परंतु अपने पति के सुख दुख में साथ रहने वाली माता जानकी ने भी पति के साथ अपने महलों का सुख त्याग करके वन जाना स्वीकार किया और वन के अनेक कष्टों को प्रसन्नतापूर्वक सहन किया। झांसी की मानस मंदाकिनी ने कहा कि प्रभु श्रीराम से लगन लग जाने पर मानो जीवन का सुधार हो जाता है तो श्रीराम के प्रति समर्पित होकर जीवन जीने की आवश्यकता है। सभा का संचालन करते हुए प्रयागराज से पधारे डा0 सीताराम सिंह ‘विश्वबंधु’ ने रामचरितमानस से शिक्षा ग्रहण कर मर्यादा पूर्ण जीवन जीना चाहिये। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम है और वर्तमान समय मर्यादा का हनन हो रहा है। विद्यालयों में नैतिक शिक्षा दिये जाने की नितांत आवश्यकता है। महोबा के व्यास जगजीवन प्रसाद तिवारी ने ‘बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।’ चौपाई के माध्यम से सत्संग की महिमा का वर्णन किया। रामकथा व्यास मानस किंकर सनत कुमार मिश्र ने हनुमान जी की पूंछ को प्रतिष्ठा वाली बताते हुए हनुमान को विद्या, बल और करुणा का सागर बताया। मानस मर्मज्ञ चित्रकूट के बरद्वारा के माताबदल यादव ने हनुमान जी की पूंछ के बारे में बताया कि जब भगवान शंकर अपना रुप बदलकर हनुमान जी के रुप में आये तो उस समय माता पार्वती शंकर जी के साथ में आने के लिए तैयार हुईं। शंकर जी ने पूछा कि तुम किस रुप में और क्यों चलोगी तो प्रतिउत्तर में मां पार्वती ने कहा कि तुम्हारी पूंछ मेरे चलने पर ही संभव है क्योंकि बिना शक्ति के किसी की पूछ नहीं होती। उस समय भगवान शंकर हनुमान जी का रुप धारण कर पूंछ के रुप में माता पार्वती को संहारकारिणी शक्ति के नाम पर धारण कर पृथ्वी में आये और जब लंका में रावण ने कहा कि इस बंदर की पूंछ को जला दो क्योंकि जब वानर पूंछहीन हो जायेगा तो यह शक्तिहीन हो जायेगा। लेकिन पूंछ संहारकारिणी शक्ति थी इसीलिये हनुमान जी ने अपनी पूंछ इतनी बढ़ा दी कि गोस्वामी जी ने स्पष्ट किया ‘बाढ़ी पूंछ कीन्हि कपि खेला, रहा न नगर बसन घृत तेला’ इस प्रकार से हनुमान जी की पूंछ लंका की गली-गली में फैल गई। उस समय रावण ने लंकावासियों को कहा कि इस फैली हुई पूंछ पर सभी लोग अपने-अपने दरवाजे पर आग लगा दें। फलस्वरुप एक ही साथ सारी लंका जल गई। यह शक्ति माता पार्वती की पूंछ के रुप में संहारकारिणी बनकर काम कर रही थी। ग्वालियर मध्य प्रदेश से पधारे श्रीलाल पचौरी ने आज के समाज में विशेषकर गांवों की संस्कृति का वर्णन करते हुए रामकथा के माध्यम से बेटियों और बहनों को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने सास और बहू के अधिकांशतः होने वाले विवादों को जड़ मूल समाप्त करने का महामंत्र रामचरितमानस की चौपाई से दिया। ‘वधू लरकिनी परघर आई। राखहुं नयन पलक की नाईं।’ इस महामंत्र को अपने जीवन में उतारकर सास अपनी बहु से व्यवहार करे तो कभी भी कलह नहीं हो सकती। इसी प्रकार बहू अपनी सास से यदि मानस की चौपाई ‘ऐहि ते अधिक धर्म नहिं दूजा, सादर सास ससुर पद पूजा’ का जीवन में अनुकरण करे तो सास से कभी भी वाक युद्ध होने की स्थिति पैदा नहीं होगी। मध्य प्रदेश सतना के रामविश्वास तिवारी ‘निराला’ ने धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की चर्चा करते हुए ‘चार पदारथ करतल ताके, प्रिय पितु मातु प्रान सब जाके’ की बहुत ही गृहणीय व्यख्या प्रस्तुत किया। डा0 तीरथदीन पटेल ने चित्रकूट की पावन भूमि का वर्णनल एक बुंदेली गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया- ‘चित्रकूट की माटी जिसमें राम रमे हैं, जनम दइयो विधाता चित्रकूट में’। रामभरोसे तिवारी ने ‘प्रेम से प्रकट होई मैं जाना’ की बहुत ही सुंदर व्याख्या प्रस्तुत की। चेन्नई के प्रो0 डा0 अशोक कुमार द्विवेदी ने ‘रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चिति चारि’ के प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें गोता लगाने वाले ही भगवान श्रीराम को समझ सकते हैं। रामराज्य की कल्पना करने वाले को राम को समझना होगा और राम को आत्मसात करना होगा वरना कथा बस कथा ही रह जायेगी और साथ में रह जायेगी सिर्फ व्यथा। राम का चरित्र सदा से अनुकरणीय रहा है, आज भी है। उन्होंने दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि आइए संकल्प लेते हैं कि राम को आत्मसात करेंगे और रामराज्य का सपना साकार करेंगे। डा0 छेदीलाल कांस्यकार औरंगाबाद ने कहा कि रामकथा को जगजीवन में फैलाने के लिए रामलीलाओं का सहारा लिया गया वहीं नाटक शैली में राम के चरित्रों को लेकर जनता में भक्ति और सदाचार की स्थापना के प्रयोग किए गए जो काफी हद तक सफल रहे।
*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव चित्रकूट
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