भारतीय संस्कृति की अनमोल धरोहर गुरु-शिष्य परम्परा : खंड शिक्षा अधिकारी

 

 

उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि)।कानपुर।हिंदू संस्कृति में गुरु या शिक्षक को हमेशा भगवान के समान माना गया है। गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा हमारे गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है। गुरु एक संस्कृत शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है वह जो हमें अज्ञान से मुक्त करता है।आषाढ़ के महीने की पूर्णिमा का दिन हिंदू धर्म में वर्ष के सबसे शुभ दिनों में से एक है। इसे गुरु पूर्णिमा उत्सव के रूप में मनाया जाता है।इस बार गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई सोमवार के दिन मनाई जाएगी।खण्ड शिक्षा अधिकारी मनीन्द्र कुमार ने बताया कि गुरु पूर्णिमा के दिन को वेद व्यास के जन्मदिन रूप में मनाया जाता है,जिन्हें पुराणों,महाभारत और वेदों जैसे समय के कुछ सबसे महत्वपूर्ण हिंदू ग्रंथों को लिखने का श्रेय दिया जाता है।गुरु पूर्णिमा एक ऐसी घटना है जो जीवन में गुरु के महत्व को बढ़ाती है,और वह किसी भी रूप में हो सकता है। चाहे वह प्रबुद्ध व्यक्ति हो या भगवान। सुबह अपने गुरु की पूजा एक विशेष प्रार्थना के साथ एक व्यवस्थित मंगल आरती के साथ करना गुरु पूर्णिमा के दिन की शुरुआत करने का एक शानदार तरीका हो सकता है।यह न केवल आसपास के वातावरण को शुद्ध करता है बल्कि यह आपके मन और आत्मा को भी तरोताजा कर देगा। मंगल आरती अपने गुरु के प्रति सम्मान दिखाने का सबसे अच्छा तरीका है।

 

 

 

 

 

ज्ञान का मार्ग है गुरु पूर्णिमा

 

खण्ड शिक्षा अधिकारी श्री यादव ने कहा कि शास्त्रों में गुरु के अर्थ के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश देने वाला कहा गया है। गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले होते हैं। गुरु की भक्ति में कई श्लोक रचे गए हैं जो गुरू की सार्थकता को व्यक्त करने में सहायक होते हैं. गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार संभव हो पाता है और गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं हो पाता।उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से चली आ रही यह परंपरा हमारे भीतर गुरु के महत्व को परिलक्षित करती है.पहले विद्यार्थी आश्रम में निवास करके गुरु से शिक्षा ग्रहण करते थे तथा गुरु के समक्ष अपना समस्त बलिदान करने की भावना भी रखते थे,तभी तो एकलव्य जैसे शिष्य का उदाहरण गुरु के प्रति आदर भाव एवं अगाध श्रद्धा का प्रतीक बना जिसने गुरू को अपना अंगुठा देने में क्षण भर की भी देर नहीं की।गुरु पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह उच्चवल और प्रकाशमान होते हैं उनके तेज के समक्ष तो ईश्वर भी नतमस्तक हुए बिना नहीं रह पाते। गुरु पूर्णिमा का स्वरुप बनकर आषाढ़ रुपी शिष्य के अंधकार को दूर करने का प्रयास करता है।शिष्य अंधेरे रुपी बादलों से घिरा होता है जिसमें पूर्णिमा रूपी गुरू प्रकाश का विस्तार करता है।

 

 

परमात्मा के माध्यम से गुरु का होता है संबंध

 

 

 

परमात्मा के मध्य का संबंध होता है.गुरु से जुड़कर ही जीव अपनी जिज्ञासाओं को समाप्त करने में सक्षम होता है तथा उसका साक्षात्कार प्रभु से होता है.श्री यादव ने कहा कि हम तो साध्य हैं किंतु गुरु वह शक्ति है जो हमारे भितर भक्ति के भाव को आलौकिक करके उसमे शक्ति के संचार का अर्थ अनुभव कराती है और ईश्वर से हमारा मिलन संभव हो पाता है.परमात्मा को देख पाना गुरू के द्वारा संभव हो पाता है.इसीलिए तो कहा है,गुरु गोविंददोऊ खड़े काके लागूं पाय.बलिहारी गुरु आपके जिन गोविंद दियो बताय।

 

 

गुरु पूर्णिमा महत्व

 

गुरु को ब्रह्मा कहा गया है।गुरु अपने शिष्य को नया जन्म देता है। गुरु ही साक्षात महादेव है,क्योकि वह अपने शिष्यों के सभी दोषों को माफ करता है। गुरु का महत्व सभी दृष्टि से सार्थक है।आध्यात्मिक शांति,धार्मिक ज्ञान और सांसारिक निर्वाह सभी के लिए गुरु का दिशा निर्देश बहुत महत्वपूर्ण होता है। खंड शिक्षा अधिकारी श्री यादव ने बताया कि

गुरु केवल एक शिक्षक ही नहीं है,अपितु वह व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक भी है।गुरु व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश में ले जाने का कार्य करता है,सरल शब्दों में गुरु को ज्ञान का पुंज कहा जा सकता है। आज भी इस तथ्य का महत्व कम नहीं है।विद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों द्वारा आज भी इस दिन गुरु को सम्मानित किया जाता है.मंदिरों में पूजा होती है, पवित्र नदियों में स्नान होते हैं,जगह जगह भंडारे होते हैं और मेलों का आयोजन किया जाता है।वास्तव में हम जिस भी व्यक्ति से कुछ भी सीखते हैं,वह हमारा गुरु हो जाता है और हमें उसका सम्मान अवश्य करना चाहिए.आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ‘गुरु पूर्णिमा’अथवा ‘व्यास पूर्णिमा’ है। लोग अपने गुरु का सम्मान करते हैं।

संवाददाता।आकाश चौधरी