उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) कानपुर।लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व कार्तिक छठ आज से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। सूर्योपासना के इस पवित्र चार दिवसीय महापर्व के पहले दिन छठव्रती श्रद्धालु नर-नारी अंत:करण की शुद्धि के लिए कल नहाय-खाय के संकल्प के साथ नदियों-तालाबों के निर्मल एवं स्वच्छ जल में स्नान करने के बाद शुद्ध घी में बना अरवा भोजन ग्रहण कर इस व्रत को शुरू करेंगे।केंद्रीय छठ पूजा समिति के अध्यक्ष संतोष गहमरी ने बताया कि भारत में बड़े ही धूमधाम से अनेकों त्योहार व पर्व मनाए जाते हैं।लेकिन इनमें से सबसे अनोखा और कठिन पर्व छठ का होता है। भोजपुरी समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष गहमरी ने कहा कि लोक आस्था का यह व्रत सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया की पूजा के लिए समर्पित हैकार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि से इस व्रत के अनुष्ठान की शुरुवात हो जाती है।चार दिवसीय व्रत में पहला दिन नहाय-खाय,दुसरा दिन खरना, तीसरा दिन पहला संध्या सूर्य अर्ध्य और चौथा दिन उषा अर्घ्य होता है।छठ पूजा संतान प्राप्ति की कामना व संतान की सुख-समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है।36 घंटे का निर्जला व्रत कर महिलायें छठी मैया की उपासना करती हैं और नदी घाटों पर भगवान सूर्य को अर्ध्य देती हैं।
संतान की प्राप्ती के लिए होता है व्रत
केंद्रीय छठ पूजा समिति के अध्यक्ष संतोष गहमरी ने बताया कि डाला छठ पर्व व्रतियों के सभी तरह के मनोकामनाओं सहित चातुर्दिक सुख देने वाला है। इस व्रत को सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य, प्रभुत्व एवं संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है. डाला छठ की महत्ता और व्रतों की अपेक्षा इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि भगवान भास्कर के लिए प्राय: व्रत संतान प्राप्ति के लिए होते हैं।उन्होंने कहा कि जिसमें, प्रत्यक्ष देव सूर्य देव की पूजा होती है, लेकिन डाला छठ पर भगवान भास्कर की दोनों पत्नियां ऊषा-प्रत्युषा सहित छठी मईया का भी पूजन भगवान आदित्य के साथ होता है।सब मिलाकर सूर्योपासना की परम्परा हमारे यहां वैदिक काल से होती आ रही है।जिसका वर्णन प्राय: वेद एवं पुराणों में भरा पड़ा है ।
छठ पर्व लोक है परम्परा
लोक परम्परा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई। छठ पूजा अथवा छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। छठ से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं और लोक गाथाओं पर गौर करें तो पता चलता है कि भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी राजाओं का यह मुख्य पर्व था। छठ के साथ स्कंद पूजा की भी परम्परा जुड़ी है। भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कंद की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा रक्षा की थी। इसी कारण स्कंद के छह मुख हैं और उन्हें कार्तिकेय नाम से पुकारा जाने लगा। कार्तिक से संबंध होने के कारण षष्ठी देवी को स्कंद की पत्नी देवसेना नाम से भी पूजा जाने लगा।
लोक आस्था का पर्व है छठ पर्व
लोक आस्था के महापर्व छठ का हिंदू धर्म में अलग महत्व है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें ना केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी पूजा जाता है। अध्यक्ष संतोष गहमरी ने बताया कि मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। पर्व का प्रारंभ नहाय-खाय से होता है, जिस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करते हैं। नहाय-खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम में रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस पूजा को खरना कहा जाता है। इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को उपवास रखकर शाम को अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करके व्रत तोड़ा जाता है।
सुख-समृद्धि और मनोकामनाएं होती पूर्ण
अध्यक्ष संतोष गहमरी ने बताया कि छठ पूजा के व्रत को जो भी रखता है। वह इन दिनों में जल भी नही ग्रहण करता है। इस व्रत को करने से सुख-समृद्धि और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस पूजा वैसे तो मुख्य रुप से सू्र्य देवता की पूजा की जाती है। लेकिन साथ ही सूर्य देव की बहन छठ देवी की भी पूजा की जाती है। जिसके कारण इस पूजा का नाम छठ पूजा पड़ा। इस दिन नदी के तट में पहुंचकर पुरुष और महिलाएं पूजा-पाठ करते है। साथ ही छठ माता की पूजा को आपके संतान के लिए भी कल्याणकारी होती है।
संवाददाता आकाश चौधरी कानपुर
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