कोरोना में किचकिच लेखक पंकज कुमार मिश्रा

उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि)जौनपुर

कोरोना में किचकिच !

जंग में ऐसा भी होता है, देखो। सड़कों पर पड़ी लाशें फूल गयी थी।”, दाऊ जी के भाई फिर से शुरू हो गये। ‘न हन्यति हन्यमाने शरीरे।’
“‘यह लड़ाई हुई क्यों थी सर…पता है?” मैंने गोलमोल जवाब देने की बजाय अनभिज्ञता की मुद्रा को चुना। ” इराक़ इन सब की तरफ से कितनी साल से ईरान से लड़ रहा था। इनके पास किधर फ़ौज़ और असला था। जब इराक़ का दीवाला निकल गया तो इन सबको बुलाया। पहले क्या कीमत थी सर इराक़ी रियाल की, दीनार के बराबर!… और बोला- तुम लोगों ने बहुत बैठे तेल निकाल कर बेच लिया। अब निकालो हिसाब। सर, साऊदी के किंग ने उधर तारीक़ अज़ीज़ को बोला- थू! बस इतना था कि सद्दाम की खोपड़ी फिर गयी। सऊदी को घमंड था पैसे का, और अमरीका की बैकिंग का सर!”
‘ दंभो दर्पोभिमानश्च…’
” फिर क्या था सर रातों रात में खून ख़राबा… लूटपाट.. कुवैतियों का क़त्ले-आम कर दिया। पर जंग के बाद ही इंसान में इंसानियत जागती है सर। उसके बाद जो लोगों ने एक दूसरे की मदद की, पूछो मत। जंग में हैवानियत और इंसानियत एक साथ खड़ी हो जाती हैं। लोग एक दूसरे को पनाह दे रहे थे, खाना दे रहे थे, पेट्रोल फ्री मिल रहा था।”
मुझे विश्वयुद्ध और १९४७ की हिंदू-मुस्लिम खून ख़राबे की कहानियाँ याद आ गयी।
“…और जंग के वक़्त में होता है अजनबी से प्यार सर। मैंने आएशा के बारे में ऐसा कभी सोचा भी नहीं था। श्री लंका की थी, मेरे अरबाब के यहाँ मेड थी। मैं पहले रोज़ उसके साथ झगड़ता था। पर अजनबी देश और मौत के सन्नाटे में वह मुझे अपनी लगने लगी। जैसे इंसानियत के दो टुकड़े हो जाते हैं सर… एक आदमी में ही दो आत्मा आ जाती हैं।”
वह क्रूर भी हो जाता है दयालु भी। स्वार्थी भी और उदार भी। हंता भी और त्राता भी।
‘ कालोस्मि लोकक्षया… ‘
सुन रहे हो मधुसूदन? ऐसा कहा ही था पार्थ ने कि ,धृतराष्ट्र के सारथी संजय ने अपने आंख के ट्रांसमीटर का डायरेक्शन हांककांग से हटाकर चीन के करीब के एक नगर पर फोकस किया। स्क्रीन पर श्मशान जैसा दृश्य देखकर वो घबरा गया।
‘क्या दृष्टिगोचर हो रहा है प्रिय पुत्र संजय? हमें भी वेलकम शहर वुहान का हालचाल बताओ!” धृतराष्ट्र ने अधीर होकर संजय से पूछा। संजू ने तत्काल जवाब दिया ! ‘मामा दिग्विजय के डी के डैडी सर, जहां कभी तिल रखने की जगह नहीं होती थी वहां की सड़कें एकदम सूनी पड़ी हैं। दुकानें बंद हैं। मॉल, सिनेमा हाल, रेलगाड़ी, हवाई जहाज, पानी के जहाज, बस, मानो, मेट्रो सब बंद पड़े हैं। ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं से किसी प्रकार की ध्वनि बाहर नहीं आ रही है। मानो किसी तेजप्रताप यादव ने पूरे शहर को स्टेच्यू बोल दिया है।”
संजय के स्वर में आश्चर्य के भाव थे। ‘संजय, जरा बताओ तो इस तेज प्रताप के डैडी का नाम क्या है?” धृतराष्ट्र उतावलेपन को दबा न पाये।
‘डी सर, इस पगले के डैडी का नाम लालू प्रसाद है । धृतराष्ट्र उझल पड़े और बोले वही हमारे अस्तबल के घोड़ों का चारा खाने वाला ? हां महराज ! इनका नाम सुनकर सारे बिहार का पाप धुल जाता है । किन्तु इतना सन्नाटा क्यो है भाई , अचानक धृतराष्ट्र ने काउंटर प्रश्न किया ।
“कोरोनासुर” संजय ने गूगल करके उत्तर दिया।
_______ पंकज कुमार मिश्रा 8808113709