उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) घोरवारा/डलमऊ – प्रतिबंध लगाने के बाद भी पालीथीन का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। इसके निर्माण,बिक्री और प्रयोग पर अब तक अंकुश नहीं लग सका है जी हाँ मैं घोरवारा की बात कर रहा हूँ बेकरी,होटल हर जगह पॉलीथिन का प्रयोग किया जा रहा है पर्यावरण को पालीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से नुकसान पहुंच रहा है,मगर सरकारी अमला इससे बेपरवाह हाथ पर हाथ धरे बैठा है। वर्ष 2016 में कोर्ट की ओर से पालीथीन के प्रयोग पर रोक के बाद भी इसका प्रयोग रुका नहीं। पॉलीथीन के बढ़ते चलन से जहां प्रदूषण बढ़ रहा है वहीं बेजुबानों की जिन्दगी भी खतरे में है। 22 सितंबर 2016 को कोर्ट ने अधिसूचना जारी करके पॉलीथीन के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिये शासन को निर्देश दिए थे। इसके साथ जिला प्रशासन भी हरकत में आई थी मगर बाद में कागजों में अभियान चला कर शासन के निर्देशों की इतिश्री कर ली गई। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 19 के तहत पॉलीथीन के प्रयोग व भंडारण करने पर पांच साल की सजा व एक लाख के जुर्माने का प्राविधान किया गया था, बावजूद इसके शहर के साथ ही समूचे जिले में पॉलीथीन के प्रयोग पर रोक नहीं लगी सकी है जिन पॉलीथीन का प्रयोग करके उसे घर के बाहर फेंक देते हैं, वह जमीन में दब तो जाती है, लेकिन गलती नहीं है जमीन में दबी पॉलीथीन जमीन की उर्वरा शक्ति को प्रभावित करती है कि जमीन में पड़ी पॉलीथीन के कई तरह के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं पशुओं के लिए यह घातक है पॉलीथीन कि पॉलीथीन के बढ़ते चलन से आम रास्तों के साथ कचरे के ढेरों पर भी पॉलीथीन बड़ी संख्या में देखा जा रहा है। हालत यह है कि लोग खाद्य पदार्थों को भी थैली में डाल कर फेंक दे रहे हैं, जिसे आवारा पशु खा जाते हैं, जो उनके लिए पेट संबंधी अनेक बीमारियों का कारण बन जाता है, कभी-कभी तो पशु की मौत भी हो जाती है।
अक्सर दुकानों पर समान लेने के आए लोग पालीथीन की मांग करते हैं। यदि उन्हे भी पालीथीन के दुष्प्रभाव के प्रति जागरूक किया जाए और वह घर से कपड़े का झोला लेकर आएं तो पालीथीन के प्रयोग पर अंकुश लग सकेगा।
हिंदी दैनिक कर्म भूमी
रिपोर्ट श्रवण कुमार रायबरेली
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