कोरोना काल बच्चे शिक्षा और चुनौती एवं अभिभावक

राजस्थान (दैनिक कर्मभूमि) बारां छीपाबड़ौद करोना के इस कठिन समय में जीवन जीने की शैली में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है समाज का प्रत्येक वर्ग इस परिवर्तन से बच नहीं सका है | इनमें सबसे अधिक प्रभावित बालपन हुआ है | ऐसे तो कोरोना वायरस संक्रमण के कारण जनमानस बहुत अधिक प्रभावित हुआ है, किंतु बगैर संक्रमित हुए बालपन अत्यधिक प्रभावित हुआ है संसार के लोगों को इस वायरस ने घरों में कैद होने पर मजबूर कर दिया है | व्यस्क व्यक्ति तो इन चुनौतियों का सामना करने में दिन-रात लगा हुआ है, किंतु बच्चों के लिए भी यह किसी महा चुनौती से कम नहीं है | बात मनोविज्ञान के अनुसार बच्चों का मन खेलना कूदना ,बाहर घूमना, बगीचों में पानी देने से सीखता आया है, दोस्तों के साथ संपर्क ,पढ़ाई के साथ मौज मस्ती ,खेलकूद बच्चों के सर्वांगीण विकास मैं सहयोगी होते हैं |बच्चे समाज के बीच में रहकर इन्हीं से सीखता है | परंतु इस वायरस ने सभी कुछ कैद करवा दिया है, जिसका प्रभाव बालक के मन पर बहुत अधिक पड़ा | प्रारंभ में ऐसा लगा कि कुछ दिनों की बात है, परिस्थिति शीघ्र ही सामान्य हो जाएगी ,किंतु शनै_ शनै जब यह नौबत आई की संसार की हलचल पूरी तरह बंद हो गई | सोचा था संक्रमण से जल्दी मुक्ति मिल जाएगी तब तक इन स्कूल कॉलेजों के बच्चों को महामारी से बचाना है तो शिक्षण संस्थानों को बंद करना पड़ेगा| पहले तो सभी बच्चे प्रसन्न थे ,सोचने लगे कि पढ़ाई नहीं करनी पड़ेगी | किंतु किसी ने यह नहीं सोचा था की स्थिति इतनी गंभीर हो जाएगी | कि लंबे समय तक लाॅकडाउन हो जाएगा | इस लंबे लॉकडाउन ने मानसिक अवसादो से अनेक बच्चों को गिरने पर मजबूर कर दिया | अनेक बच्चे ऐसे भी थे जो बड़ी-बड़ी परीक्षाओं में भाग लेकर अपने स्वर्णिम भविष्य की ओर नए-नए सपने लेकर आगे बढ़ रहे थे| इस कठिन परिस्थिति में परिवार का सहयोग नहीं मिलने पर एवं पारिवारिक सदस्यों के अधिक अपेक्षाओं के कारण अनेक बच्चे अवसाद से घिरते नजर आ रहे है |लंबा समय हो गया है, शिक्षा संस्थानों के खुलने का कोई विकल्प नजर नहीं आया तो हमने शिक्षा देने का विकल्प ऑनलाइन शिक्षा खोज लिया |मान लिया ऑनलाइन शिक्षा से प्रतिदिन कक्षाएं ली जा रही है ,किंतु उतनी सफल साबित नहीं हो सकती जितना कि विद्यालय में अपने सहपाठियों और अध्यापकों के साथ सीधा संपर्क करने पर सफल होती थी |ऑनलाइन कक्षा को स्कूल जैसा माहौल बनाने के लिए कुछ नियम बना दिए गए जिसमें गणवेश पहनना अनिवार्य कर दिया गया | गूगल मीट, जियो मीट, जूम एप, जैसे अनेक ऐप बच्चों के लिए बिल्कुल नई अवधारणा लेकर आए हैं | जिसके चलते अनेक तकनीकी समस्याओं का सामना भी बच्चों को करना पड़ता है| सबसे बड़ी समस्या बोर्ड के सामने खड़े रहकर पढ़ाने वाले अध्यापक से कक्षा में बैठे विद्यार्थी का सीधा संपर्क रहता है |वह यहां पर नहीं है उसकी कमी सबसे बड़ी है | फिर घंटों तक ऑनलाइन पढने पर मानसिक स्तर पर भी कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ रहा है| अनेक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म् भी शिक्षा देने के लिए बाजार में उतर गए हैं | जिसके अंतर्गत मोटी मोटी फीस भी ली जा रही है ,किंतु क्या हमने कभी सोचा है कि इन बच्चों को जो ऑनलाइन कक्षा लेनी पड़ रही है| कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल टेबलेट के सामने घण्टो बैठना पड रहा है ,,होमवर्क भी ऑनलाइन मिलता है, तथा जांचा जाता है |इसका प्रभाव बच्चों के शरीर पर नहीं हो रहा है क्या?

मोबाइल की छोटी सी स्क्रीन पर लगातार देखने से बच्चों की न सिर्फ आंखें बल्कि कानों में इयरफोन लगाने से इसका अत्यधिक प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ रहा है |स्कूलों में शारीरिक गतिविधियां होती थी, वह भी बंद है ,जिस कारण बच्चे के दिमाग वह शरीर पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है |वह चिड़चिड़ा हो रहा है |अब दूसरी और यह हो चुका है कि उनकी आदतों में मोबाइल का शुमार हो चुका है जो कि मानसिक स्वास्थ्य को सबसे अधिक प्रभावित कर सकता है |व्यवहार में परेशानी आ रही है कि बच्चे ऑनलाइन शिक्षण में जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रहे हैं | बच्चों को एक ही दिन में व्हाट्सएप पर पीडीएफ फाइल बनाकर अनेक पेज भेज दिए जाते हैं |इतने सारे पृष्ठ देखकर बच्चे घबरा जाते हैं ,और इसका असर उनके दिमाग पर पड़ता है |बात करने पर अनेक माताओं का कहना कि मेरा मोबाइल अपने बच्चे को ऑनलाइन कक्षा के लिए दे दिया और मैं थोड़ा आराम करने के लिए चली गई थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि कक्षा तो चल रही है लेकिन बच्चा वीडियो गेम खेल रहा था | अब आप इससे अंदाजा लगा सकते हो कि क्या यह ऑनलाइन कक्षा सार्थक हो रही है |वर्तमान समय को देखते हुए यह भी लग रहा है कि भविष्य में उच्च शिक्षा के लिए यह प्रक्रिया स्थाई हो जाएगी |जहां शिक्षक भी होंगे ,छात्र भी होंगे ,किंतु दोनों मोबाइल की स्क्रीन पर ही एक दूसरे को जान पायेंगे| जिसका प्रभाव गुरु और शिष्य के आत्मीय संबंधों पर भी पड़ेगा | तथा संस्कार भी बच्चे के जीवन में न्यून होंगे | क्या यह छोटे बच्चे के लिए ठीक होगा? शिक्षा के साथ-साथ संस्कार एवं शारीरिक तथा व्यवहारिक ज्ञान भी जब बच्चा समूह में उठता बैठता है तभी सीखता है| इस कोरोना वायरस ने इस प्रकार के ज्वलंत मुद्दों ने मस्तिष्क पटल पर ना जाने कितने अनेक प्रश्न खड़े कर दिए है| जिनके उत्तर हम सभी को धीरे धीरे खोजना पड़ेगा | इस महामारी की वजह से बच्चों में चिंता, तनाव ,अनिश्चितता के भाव से भर दिया है ,कारण यह कि स्कूल बंद है |संपूर्ण गतिविधियां रुकी हुई है, सभी प्रकार के आयोजन समारोह बंद है ,घर में सीमित रहना है, दोस्तों से भी दूरी बनाकर रहना है, इस कोरोना वायरस से बचने के लिए सबसे पहले बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखना होगा |अभिभावक अपनी कुंठा ,क्रोध एवं अपेक्षाएं बच्चों पर नही थोपे| माता पिता एवं परिवार के बड़े बुजुर्गों को ही बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ रखने पर ध्यान देना होगा |जब तक इस कोरोना वायरस की समस्या से हम निदान नहीं पाले ,तब तक घर से बाहर की अनुमति नहीं मिलेगी |और यह बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बेहतर भी है किंतु इस पीड़ा से उबरने के लिए बच्चों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को रोकने के लिए सृजनात्मक क्रियाकलाप बच्चों को करने के लिए उनको प्रेरित करना होगा | बच्चों के अंदर कला व कौशल को बाहर लाना होगा | उनकी रूचि के अनुसार उन्हें चित्रकला हस्तशिल्प कला संगीत, नृत्य , खिलौने बनाना महापुरुषों के अच्छे-अच्छे प्रेरक प्रसंग सुनाना गीत सुनना व सुनाना अच्छे अच्छे नाटकों का मंचन करना खेल खिलाना, घर के कार्य में सहयोग करना, इन सब के लिए प्रोत्साहित करना होगा | बच्चों के साथ अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ें, देश, धर्म, इतिहास, महापुरुषों की जीवनी जैसे विषयों पर चर्चा करे | संस्कारों पर ध्यान दें | प्रातः सायं योग ,व्यायाम, शारीरिक, ध्यान,संध्या वंदन करने के लिए प्रेरित करें | जिससे इनकी नकारात्मकता सकारात्मकता में परिवर्तित हो ,निराशा से आशा की ओर बढ़ने का प्रयास करें |भगवान की कृपा से हम शीघ्र ही इस कठिन दौर में मुक्ति पाकर वैसे ही सामान्य जीवन जी कर वहीं निश्चल बालपन, बाल रूप आनन्द उठा पाएंगे | ऐसी कामना करता हूं |हरिसिंह गोचर प्रधानाचार्य सुशिला देवी आदर्श विद्या मंदिर छीपाबड़ौद

रिपोर्टर कुलदीप सिंह सिरोहीया बारां छीपाबड़ौद