उत्तर प्रदेश ( दैनिक कर्मभूमि) लखनऊ
लखनऊ।दीपावली के बाद से सोशल मीडिया में ऐसी चर्चायें प्रसारित हो रही थीं जिनसे यह ध्वनित होता है कि ज्योतिष्पीठ एवं द्वारका शारदापीठके शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वतीजी ने ज्योतिष्पीठ पर अपने उत्तराधिकारी की घोषणा कर दिया है। सूत्रोंके हवालेसे खबर मिली कि दीपावली के अवसर पर दोनों पीठोंके प्रमुख शिष्योंकी उनके पास जुटान हुयी थी और उन पर लिखित घोषणा करनेका दबाव बनाया गया था। उसीके बाद उन शिष्योंके समर्थकों ने यह अफवाह फैलाना आरम्भ कर दिया कि शङ्कराचार्यजी ने दोनों पीठों पर अन्तिमरूपसे उत्तराधिकारीकी घोषणा कर दिया है। एक शिष्यने तो स्वयं विज्ञप्ति जारी करके कहा कि उन्होने ध्वजोत्तोलन करके ज्योतिर्मठका कार्यभार ग्रहण कर लिया है।समझा जाता है कि ऐसा अनेक बार हो चुका है कि अवसर देखकर शङ्कराचार्य जी पर लिखा पढी़ करने का दबाव बनाया जाता है। शङ्कराचार्यजी पहले भी समय समय पर मीडिया में स्पष्टीकरण देते रहे हैं कि उन्होने अभी तक दोनोंमें से किसी पीठ पर उत्तराधिकारी का अन्तिम चयन नहीं किया है। सोशल मीडिया पर प्रसारित प्रेसनोट दिनांक 28/11/20 के अनुसार, इस बार भी अफवाहों का खण्डन करते हुये उन्होने स्पष्ट किया है वे इस वर्ष बद्रीनाथ नहीं जा सके थे अतः अपनी ओरसे एक शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द को कपाट बन्द होनेके अवसर पर भेजे तथा जोशीमठकी तोटकाचार्य गुफामें चौंसठ योगिनी की पूजा सम्पन्न कराने को कहे थे। इसका अन्य कोई अर्थ नहीं लगाना चाहिये। उन्होने कहा है कि यह सब बातें भ्रामक हैं और हमारे द्वारा अब तक कभी भी किसी पीठ पर उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की गयी है। क्या है उत्तराधिकारी घोषित करने की प्रक्रिया ?मठ परम्पराके जानकार लोगों का कहना है कि शङ्कराचार्य का पद कोई निजी सम्पत्ति नहीं है जिसको लिखा पढी़ या वसीयत के द्वारा किसी को दे दिया जाय। यह एक लोकपद है और विद्वज्जनों की सहमति से शास्त्रानुसार अभिषेक करके ही उत्तराधिकारी की घोषणा की जा सकती है। केवल लिखा पढी़ करके उत्तराधिकारी की घोषणा कर ही नहीं सकते। ऐसा करना अशास्त्रीय भी है और गैरकानूनी भी।
उत्तर प्रदेश सम्पादक अभिषेक शुक्ला
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