पर्यावरण जल एवं प्रेम दया का महत्व पूनम बिष्ट के विचारों में

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) रायबरेली जनपद (समरौता गाँव)* मैं रहने वाली पूनम बिष्ट का कहना है कि आज कोरोना से श्री महामारी के समय में व्यक्ति इतना ज्यादा पीड़ित है की बीमारी के घात करने से पहले ही वह दम तोड़ दे रहा है क्योंकि उसका सबसे बड़ा कारण है आज हमारे पास वायु की कमी है ऑक्सीजन की कमी है ऑक्सीजन देने वाला जब हमारा पर्यावरण हमारे पेड़ ही सुरक्षित नहीं है बच्चे नहीं है तो हमें ऑक्सीजन मिले कहां से मनुष्य ने अपने जीवन काल में पिछले कुछ वर्षों से प्राकृतिक के द्वारा पाए हुए अमूल्य वस्तुओं को नष्ट करने का ही कार्य किया है प्रकृति ने हमें वरदान स्वरुप अमृत जैसा जल दिया है नदियों के रूप में धरती के गर्भ गर्भ से एवं हमें पर्यावरण के माध्यम से स्वच्छ सुंदर लाभदाई ऑक्सीजन वायु भी निशुल्क प्रदान किया था किंतु हम लोगों ने विकास के नाम पर विनाश को आमंत्रित कर दिया लोग कुछ वर्षों से बड़ा ही बोल रहे थे कि विकास हो रहा है विकास हो रहा है हम सभी विकास की ओर हैं पर उन्हें शायद विकास के अंधकार में जो बिना आ रहा था वह दिखाई नहीं दिया आज ऑक्सीजन की बात करें तो उसकी कोई कीमत ही नहीं है पैसे लिए लोग घूम रहे हैं फिर भी ऑक्सीजन नहीं मिल रहा है और प्रकृति ने जो हमें निशुल्क दिया था हम उसे खुद ही सुनकर को देख लेने के लिए तैयार हैं आज के समय में जीवन कठिन होने का कारण यही है कि हमने ऊंची ऊंची इमारतों का तो निर्माण किया लेकिन अपनी उत्तम जीवन शैली को भुला दिया जिससे हमें शरीर की जरूर जरूरत की वस्तु प्राप्त होती थी जैसे जीवन में जल बहुत ही बड़ा महत्व रखने वाला वस्तु है जल बिन जीवन ही नहीं है उस पर एक कविता भी बनी है मछली जल की रानी है जीवन उसका पानी है हाथ लगाओगे डर जाएगी बाहर निकालो मर जाएगी यह बच्चों के लिए मनोरंजक कविता जरूर होती है पर हमारे जीवन के लिए बहुत बड़ा सीख का एक पाठ है हम भी उसी मछली की तरह है यदि हमें जल ना मिले तो हमारा भी जीवन समाप्त है हमने जल का दुरुपयोग किया जल को दूषित किया नदियों को दूषित करके उसमें बड़े-बड़े कारखानों का गंदा पानी अपने घर के नाली नालों का पानी मिलाकर के स्वच्छता को समाप्त कर दिया जो मां पतित पावनी आदि गंगा हिमालय की पर्वत भगवान सदा शिव की जटा से निकलते हुए गोमुख गंगोत्री हरिद्वार होते हुए प्रयागराज होते हुए वाराणसी होते हुए जाकर के बंगाल के सागर में मिलती हैं जहां गंगासागर नामक तीर्थ भी है उस आदि पतित पावनी मां गंगा की भी हम लोगों ने निर्मलता से नहीं रहने दिया जबकि हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता एवं आदिकाल की जड़ी बूटियां उसमें भूल कर के आती है इसलिए वह चल अमृत रहता है जल के सेवन से ही हम लोगों के जीवन के काफी रोग समाप्त हो जाते हैं पर हम लोगों ने इन मुख्यतः विषयों पर ध्यान ना दे करके केवल कंक्रीट की इमारतों एवं पत्थर में अपनी जिंदगी को कैद करने को ही विकास समझ लिया आओ हम लौट चलें अपनी गांव की ओर जहां हमें सुंदर पेड़ पौधों से शीतल वायु मिलती है निशुल्क जहां हमें गौ माता के बरहमपुर दाई सेवा का अवसर प्राप्त होता है जहां हमें रितु अनुसार गांव के पेड़ से फल प्राप्त होते हैं इतना ही नहीं जिस गांव से हमें सुबह शाम खाने के लिए अनाज मिलता है यदि उस गांव को हमने अब नहीं बचाने का प्रयास किया तो कुछ भी नहीं बचेगा इसलिए गांव गंगा पर्यावरण गौ माता को संरक्षित करते हुए उन्हें फिर से प्रकृति की गोद के कोने कोने में अर्थात करना होगा समय हर मनुष्य को संकल्प लेना चाहिए कि अपने जीवन में कम से कम 100 वृक्ष जरूर लगाएं और गांव के तालाबों की क्षेत्र की नदियों की एवं जल के जितने भी बचाव के उन्हें सुरक्षित करते हुए जल को स्वच्छ रूप में निर्मल करने की ओर कदम बढ़ाया जाए बस इतना ही आप सबके लिए मेरे विचार और भाव है बाकी जैसा जिसे अच्छा लगता हो वह उसको करने के लिए स्वतंत्र है पर हमारी स्वतंत्रता और हमारी जीवन पर इस समय प्रकृति ईश्वर और विनाश का प्रकोप प्रकोप दिखाई दे रहा है अभी भी संभल जाओ ऐ मेरे साथियों वक्त है आओ लौट चलें अपने गांव की ओर

जीवन में जल एवं वायु क्या होता है यह इस महामारी से हम सभी को पता चला है आगे चलकर यदि हमने अपने देश को पर्यावरण और जल गौ एवं गाँव में ही बढ़ाया जा सकता न की पत्थर और कंक्रीट के बिल्डिंग के द्वारा ।

एडिटर अभिषेक शुक्ला रायबरेली