गजब है कानपुर का गंगा मेला,क्या है गंगा मेला का बड़ा महत्व : निहारिका सिंह

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) कानपुर  मथुरा या वृंदावन में होली का खुमार सिर चढ़कर बोल रहा है। रंग और गुलाल की छटा और फाग गाकर होरियारे धूम मचा रहे हैं। लेकिन कानपुर की होली कुछ अगल है। यहां पर होलिका दहन के से रंग खेलने का जो सिलसिला शुरू होता है। वह करीब एक हफ्ते चलता है। इसके पीछे की कहानी दिलचस्प और आजादी से जुड़ी है। पीएम श्री कंपोजिट विद्यालय की प्रधानाध्यापिका निहारिका सिंह ने बताया कि हटिया की रंगबाजों के उस राज को जिसके बारे में अभी आपने न सुना और न ही जाना होगा।

क्रांतिकारियों से जुड़ी है कहानी

कानपुर में सात दिनों तक होली आज से नहीं मनाई जा रही है बलिक इसकी शुरुआत 82 साल पहले साल 1942 में हुई थी।तब से लगातार कानपुर शहर में होली सात दिनों तक मनाई जाती है। निहारिका सिंह ने बताया कि कानपुर में होली के रंगों की शुरुआत रंग पंचमी के दिन से होती है। यहां गांव-गांव से लोग इकट्ठा होकर गंगा के तट पर एक-दूसरे को रंगों से सराबोर कर क्रांति की होली मनाते हैं।कानपुर की इस खास होली इसके पीछे एक एतिहासिक कहानी है जिसकी नींव 1942 को व्यापारियों के स्वतंत्रता आंदोलन द्वारा रखी गई थी।

होली वाले दिन जमींदारों की गिरफ्तारी

गंगा मेली की कहानी आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों से जुड़ी है। इसके पीछे एक कहानी के बारे में यहां के लोग बताते हैं कि 1942 से पहले यहां भी पूरे देश की तरह एक दिन होली खेली जाती थी लेकिन फिर इस होली कुछ ऐसा हुआ की यहां के लोग सात दिनों तक होली खेलने लगे। निहारिका सिंह ने बताया कि ऐसा कहा जाता है कि सन 1942 में ब्रिटिश सरकार ने होली खेलने पर बैन लगा दिया और व्यापारियों पर लगान बढ़ा दिया, जिसके खिलाफ जमींदारों जंग छेड़ दी।अंग्रेज कलेक्टर ने उन जमींदारों को जेल में डाल दिया। इसके बाद गुस्साए ग्रामीणों ने आजादी का बिगुल फूंक दिया और चारो तरफ प्रदर्शन करने शुरू कर दिए।

ऐसे हुई गंगा मेला की शुरुआत

जमींदारों की गिरफ्तारी पर शहर में प्रदर्शन शुरू हुए और पूरे शहर में भयंकर होली खेली गई। ग्रामीणों ने ऐलान किया गया कि जब तक वे उन जमींदारों को छोड़े नहीं छोड़ेंगे तब तक लगातार होली खेली जाएगी। निहारिका सिंह ने बताया कि प्रदर्शन से परेशान होकर अंत में अंग्रेज को हारकर अपना फैसला बदलना पड़ा और जेल से जमींदारों को छोड़ने के साथ ही लगान के लिए माफ करनी पड़ी।इसी खुशी में ग्रामीणों ने रंग और गुलाल से यहां होली खेलने की शुरुआत की। जिस दिन ब्रिटिश सरकार द्वारा वे जमींदार छोड़े गए उस दिन अनुराधा नक्षत्र था।जिसकी वजह से अब हर साल अनुराधा नक्षत्र के दिन गंगा मेला मनाया जाता है।इस साल गंगा मेला 20 मार्च को 83 वर्षगांठ मनाई जाएगी।

जीत के बाद खेली गई होली

कानपुर को धार्मिक-आर्थिक और क्रांतिकारियों का शहर कहा जाता है। यहां हर पर्व कुछ खास होते हैं और इनका इतिहास में सैकड़ों साल प्राचीन है। जानकार बताते हैं कि जब कानपुर का नाम नक्शे में नहीं था।तब यह क्षेत्र जाजमऊ में परगना में आता था। उस वक्त रंग पंचमी तक होली मनाए जाने का जिक्र एतिहासिक किताबों में मिलता है। निहारिका सिंह ने कहा कि यहां की मुख्य होली तो रंग पंचमी को होती थी। जानकार बताते हैं, उस समय से काफी पहले यहां के एक राजा के साथ होली के दिन कुछ मुस्लिम जमींदारों से जंग हो गई और पांच दिन बाद रंग पंचमी के दिन जीत के बाद होली मनाई गई। यह परंपरा,जाजमऊ शनिगंवा आदि क्षेत्रों में आज भी जिंदा है।

हटिया से निकला रंगबाजों का ठेला

कभी एक ठेले पर 4 ड्रम और 8-10 लोगों की फाग मंडली के साथ हटिया से निकलने वाला गंगा मेला का कारवां समय के साथ विशाल होता जा रहा है। अब मेला जुलूस में भैंसा ठेले,कई टैंपो-ट्राली,टैक्टर,बैलगाड़ी,शंकर भगवान का रथ,ऊंटों के साथ हजारों लोगों की सहभागिता होती है। हटिया से शुरू हो शहर के विभिन्न स्थानों से गुजरकर इस मेले का समापन वापस हटिया में होता है।

कौमी एकता का प्रतीक

निहारिका सिंह ने बताया कि पहले लोग खूब फाग गाते थे। और जब से गंगा मेला शुरू हुआ तब से तो भले ही होली वाले दिन कम रंग चले लेकिन गंगा मेला शामिल होने सब के सब हटिया पहुंच जाया करते थे। क्या हिंदू क्या मुसलमान तब सब गंगा मेला में इकट्ठा होकर होली खेलते थे। यह परम्परा आज भी जिंदा है। कहते हैं कि कानपुर में कईबार संप्रदासिक दंगे हुए लेकिन गंगामेला आते ही सभी की दूरियां मिट जाती हैं और एक-दूसरे को गले लगाकर देश में अमनचैन के लिए दुआ मांगते हैं।

संवाददाता आकाश चौधरी कानपुर

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