उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) कानपुर। पातेपुर में डॉक्टर यदुनाथ के संयोजन में विश्व शांति एवं कल्याण के लिए सर्व जन हिताय हवन यज्ञ का आयोजन किया गया।पृथ्वी के बढ़ते तापमान और समाज में बढ़ती हुई अराजकता के प्रति आचार्य प्रवर ने सनातन की वैज्ञानिक व्याख्या करते हुए युवाओं से पाश्चात्य संस्कृति त्यागने का आवाहन किया।शिक्षक दिनेश भोला ने सामाजिक विश्लेषण कर मनुर्भव की विस्तृत विवेचना की।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बृजभूषण सिंह परिहार अकेला ने पाखंड और सनातन के मध्य एक स्पष्ट विभाजन रेखा खींची।सीता के स्वयंवर में जाति प्रथा जिंदा नहीं थी , परशुराम की मां क्षत्राणी थी।भीष्म के पिता शांतनु का विवाह मल्लाह की कन्या के साथ हुआ था। लिंग भेद और जाति प्रथा समाज में सिरे से नदारत थी।गार्गी याज्ञवल्क्य का संवाद इसका उदाहरण है।आज की राजनीति भगवान को भी जातियों के घेरे में कैद करना चाहती है।जो भारत की विभिन्नता में एकता और समन्वय की भावना के विपरीत है।कबीर नानक तुलसी और तमाम पौराणिक कथाओं को साक्षी बनाकर श्री परिहार ने समाज में एकत्व की स्थापना पर बल दिया।सनातन विज्ञान है और विज्ञान भौतिक पदार्थों का अनुशीलन करता है।विज्ञान मनुष्य के मनुष्य होने और उसके आध्यात्मिक बल का अनुशीलन करता है।दोनों का प्रयोग और प्रयोगशाला मानव जीवन ही है।दोनों का उद्देश्य भी मानव कल्याण ही है।वर्तमान समय में समाज को विखंडित करने का श्रेय राजनीति को जाता है।आज भी भारत के गांव लघु भारत का स्वरूप धारण किए हुए हैं।परंतु उनमें राजनीतिक ग्रहण लगता जा रहा है।समाज का भी दायित्व है कि अब वह राजनेताओं से प्रश्न करना शुरू करें।केवल जिंदाबाद बोलना उनका जन्म सिद्ध अधिकार नहीं है।
संवाददाता आकाश चौधरी कानपुर