उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट। वर्ष 2019 के दिसम्बर माह से सभी लोग एक अजीबोगरीब दबाव में जी रहे है।चतुर्दिक प्राकृतिक प्रकोप ने अपना डेरा जमा रखा है।अभी भारतवासी कोरोना का दंश झेल ही रहे हैं कि इसी बीच ताऊ-ते और यास चक्रवातों ने घेर लिया ।जन- धन की हानि के साथ मानसिक शांति को भी किसी की नजर लग गयी है। इससे कैसे उबरें? सर्व चिंतन का विषय बन गया है। ऐसा कोई समुदाय और कुटुंब नही है जिसने अपने और अपने सगे संबंधियों को न खोया हो।चारो तरफ अजीब उदासी।कोई सिर पकड़ कर रो रहा है तो कोई सीने पर पत्थर रखकर विलख रहा है।असंख्य बच्चे अनाथ हो गए तो अनगिनत माताओं की कोख उजड़ गई।कितनी नई नवेली दुल्हनें विधवा हो गयी तो कितने वृद्ध बाप अपने बेटों को कंधा भी नही दे पा रहे।न जाने विधाता कौन सा खेल खेल रहा है।अपनी आंखों के सामने अपनो को जाते हम देख रहे हैं मगर कर कुछ भी नही पा रहे हैं।सिर्फ वेबसी और लाचारी ।ऐसे में न हम कुछ सोच पा रहे हैं न ही कुछ आत्मविश्वास ही जगा पा रहे हैं।घोर निराशा और अवसाद में हम घिरे हुए है।विवशता और सिर्फ विवशता। फिर भी हम इन परिस्थितियों से भाग तो नही सकते।इन्हें तो झेलना ही होगा।प्रश्न उपस्थित होता है हम कैसे इससे निकले।अनेक झंझावातों को झेलता उसे चीरता हुआ इंसान अपनी सभ्यता को आगे बढ़ाता है और उसने बढ़ाया भी है।यह बुरा समय भी गुजरेगा । पुनः आगे बढ़ेंगे। थोड़ा वक्त लगेगा हमें सम्हलने में।लेकिन हम निकलेंगे।अपनी सोच को सकारात्मक दिशा देनी होगी।अपने टूटे मन को बिखरने से रोकना होगा।किसी कवि ने कहा है-
*यदि संध्या मंद मंथर गति से आ रही हो,दिग-दिगंत अवगुंठन में ढक गए हो,
सारे संगीत एक इंगित पे थंम गए हो,
यदि कोई भी संगी इस अनंत आकाश में न हो,तब भी ओ मेरे विहंग इस गहन अंधकार में भी,अपनी उड़ान बंद मत करना।*
हमे अपनी उड़ान को जारी रखना होगा।यही हमारा कर्तव्य भी है और यही इसका मार्ग भी है।
नूर ने भी कहा है-
जिंदगी से बड़ी सजा ही नही,
और क्या जुर्म है पता ही नही
इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से में कुछ बंचा ही नही
ए जिंदगी मौत तेरी मंजिल है
दूसरा कोई रास्ता ही नही
जिंदगी अब बता कहाँ जाएं
जहर बाजार में मिला ही नही
कहा जाता है कि मन के हारे हार है मन के जीते जीत। मन को हमें मोड़ना होगा।हमे सुबह की प्रतीक्षा करनी ही होगी। उपदेश देना सरल होता है पर किया भी क्या जा सकता है।वर्तमान समय मे अपने मन को कठोर करके सब अच्छा होगा ऐसा मानना होगा।ईश्वर यदि रास्ता बंद करता है तो भी एक रास्ता खोलकर रखता है।
वक्त के कारनामे को देखते हुए हमें आशावान और ऊर्जावान बने रहना होगा।अपने आप को छोटे छोटे कार्यो में लगाये रखना है।मन को कभी आराम मत देवे अन्यथा वह वातावरण से उन्ही चीजो को खोजता है जो उसके अनुरूप होता है।
नकारात्मकता को लेकर निराश होने की जरूरत नही है।अपने सोच को थोड़ा परिवर्तित करना है।आत्मविश्वास को बढ़ाएं हीन भावना को मन से बाहर निकालने की कोशिश करें।स्वयं से प्रेम करें औरनये विचारों को अपने मन मे बैठाएं।श्रम करते रहिए।घर मे खुलापन रखें और आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते रहिए।यदि आप अपने चिंतन को सकारात्मक रखेंगे तो निश्चित ही आप इस गंभीर परिस्थिति से बाहर निकल जाएंगे।
*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव
*जनपद* चित्रकूट
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