ज्ञान और वैराग्य के बिना अधूरी है भक्ति- डाॅ रामनाराण

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट: धर्म नगरी स्थित गायत्री शक्तिपीठ में मंगलवार को श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया गया। कथा के पहले दिन कथा वाचक डाॅ रामनारायण त्रिपाठी कहा कि श्रीमद्भागवत कथा का एक-एक श्लोक भगवान का स्वरूप है। जहां भी भागवत कथा के श्लोकों का गायन होता है, वहां भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के साथ सदा विराजमान रहते हैं।

उन्होंने श्रद्धालुओं को भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का जीवन में महत्व समझाया। बताया कि ज्ञान और वैराग्य के बिना भक्ति अधूरी है। कहा कि जब भागवत कथा के श्रवण से प्रेत आत्मा धुंधकारी भी पवित्र हो तर सकता है, तो जीवित कर्मशील मनुष्य अपने जीवन की दिशा धारा बदल कर निश्चित ही कल्याण को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने श्रोताओं को आत्मदेव और धुंधकारी की कथा का भी श्रवण कराया। बताया कि रूप, रस, गंध, स्पर्श व ध्वनि यह मानव को वश में करने वाली वेश्याएं हैं, जो इनके चक्कर में फंसता है, वही धुंधकारी है। इन वेश्याओं के चक्कर में फसकर जीव अपने प्राण को नष्ट कर देता है। जैसे रूप के चक्कर में पतंगा दीपक में जल मरता है, रस के चक्कर में मछली, गंध के चक्कर में भंवरा, स्पर्श की कामना से हाथी तथा ध्वनि के चक्कर में फस कर हिरण अपना प्राण गंवाता है। जो मनुष्य इन पांचों के चक्कर में फंसा है, उसका जीवन कैसे सुरक्षित रहेगा यही इस कथा के माध्यम से समझाया गया है। बताया कि कुंती ने भगवान से विपत्ति मांगी क्योंकि विपत्ति में व्यक्ति एकाग्र होता है, जिससे उसका संबंध भगवान से जुड़ा रहता है। संपत्ति और सुख में व्यक्ति भगवान को भूल जाता है। इसलिए कुंती ने भगवान से प्रार्थना की कि उन्हें विपत्ति दें क्योंकि जब-जब विपत्ति आई, तब-तब उन्हें भगवान का सानिध्य मिला। कहा कि जीवन का पूर्ण विकास भीष्म पितामह के समान होना चाहिए। उन्होंने कर्म करते हुए अपने जीवन को इतना पवित्र बनाया कि भगवान उनको विदा करने के लिए स्वयं उपस्थित हुए। कहा कि जो भी व्यक्ति भागवत कथा को ध्यान से सुनता है, उसका मनन करता है और उसके अनुरूप अपने जीवन को विकसित करता है। तो निश्चित ही उसके जीवन की सभी ग्रंथियां मिट जाती हैं और वह ब्रह्म स्वरूप हो जाता है।

 

*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

*जनपद* चित्रकूट