पाठा क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा के प्रति जागरूक करने का संकल्प

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट: गरीबी हटाओ का नारा सुनते सुनते दशकों बीत गये, लेकिन भारत की गरीबी समाप्त होने को ही नहीं आ रही है, विशेषकर गाँव के निवासियों की। इसका एक विशेष कारण यह भी है कि गाँवों में उद्योग धंधे नहीं है न ही इसका कोई सार्थक प्रयास सरकारों के द्वारा किया गया है। इन गरीबों पर कोरोना महामारी का भी भयंकर असर पड़ा है, जीविका उपार्जन के अवसर भी पहले की तुलना में कम हो गये।

मानिकपुर के टिकुरी गाँव की बात करें तो वहाँ के निवासियों में शिक्षा का पूरी तरह अभाव है, एक भी व्यक्ति वहाँ पर स्नातक नहीं है । ज्यादातर निवासी वहाँ पर दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, लेकिन वह काम भी उनको माह में दस से बारह दिन बामुश्किल मिलता है, ऐसे में अक्सर पेट भरने की भी समस्या हो जाती है। यदि सरकार गेंहू और चावल न दे तो शायद इनके लिए जीवन जीना बहुत कठिन हो जायेगा।

मानिकपुर के टिकुरी और अमरपुर में संजीवनी फाउंडेशन, तरंग फाउंडेशन के साथ मिलकर पिछले कुछ माह से लगातार दाल और सोयाबीन की बड़ियां वितरित कर रही हैं । संजीवनी के अध्यक्ष रविंद्र गौतम ने कहा कि इससे इनको प्रोटीन की मात्रा मिलेगी और कुपोषण से लड़ने में सहायता मिलेगी। क्योंकि पढ़ने जाने वाले बच्चों, गर्भवती महिलाओं और मजदूरी करने वाले पुरुषों को प्रोटीन की बहुत आवश्यकता होती है।

इसके साथ महिलाओं की माहवारी स्वच्छता के लिए सैनिटेरी नैपकिन भी वितरित किए जा रहे हैं, यहाँ समझने वाली बात यह है की संजीवनी फाउंडेशन के इन गावों में कार्य शुरू करने से पहले यहाँ की महिलाओं को सैनिटेरी नैपकिन के विषय में पता ही नहीं था ।

उन्होंने बताया कि हम देश को विकसित देशों की श्रेणी में तभी खड़ा कर पायेंगे जब हम अपने देश के गावों को विकसित कर लेंगे और इस मुहिम में संजीवनी फाउंडेशन के साथ दिल्ली की आस ट्रस्ट ने कंधे से कंधा मिलाकर चलने का वचन दिया है। हम गांव के निवासियों की सर्वांगीण विकास के लिए संकल्पित हैं और जल्द ही यहाँ के निवासियों के जीवन में हम बदलाव देख पायेंगे।

 

*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

*जनपद* चित्रकूट