शिक्षक व पत्रकार स्व वेदप्रकाश शुक्ल की पुण्यतिथि पर पर्यावरण महत्व पर हुआ अंतरराष्ट्रीय वेबिनार

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट: भारतीय संस्कृति प्रकृति के संरक्षण पर केंद्रित है। परंतु कालांतर में एवं पश्चिम से प्रभावित हो अपनी लालच के लिए हम प्रकृति का दोहन कर रहे हैं। यह विचार रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एसके चतुर्वेदी ने रखे। वह शिक्षक एवं पत्रकार स्व वेद प्रकाश शुक्ल की पुण्यतिथि पर पर्यावरण संरक्षण गतिविधि एवं पंडित वेद प्रकाश, शिव प्रताप शुक्ल, स्मृति सेवा न्यास के संयुक्त तत्वाधान में स्वास्थ्य समृद्धि में पर्यावरण का महत्व विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबीनार में कहा कि प्रकृति का शोषण अपने चरम पर पहुंच गया है। अपनी संस्कृति की तरफ लौट कर ही हम इन सभी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।

सदस्य लोक सेवा आयोग प्रयागराज डॉ एच पी सिंह ने कहा कि प्रकृति ने व्यक्ति को निरोगी रहने का वरदान दिया है। परंतु हमने अपने क्रियाकलापों से इसे विकृत रोग की तरफ मोड़ दिया है। उपभोक्तावादी संस्कृति स्वास्थ्य के लिए घातक है। आगे आने वाली पीढ़ी के लिए हमें अभी से पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना होगा। उन्होंने हर खेत पर मेड़ एवं हर मेड़ पर पेड़ जैसे ग्रामीण पर्यावरण संरक्षण उपाय के संदर्भ में जानकारी दी।

वॉशिंगटन स्टेट से पर्यावरणविद प्रो कृपा शंकर तिवारी ने कहा कि हमारी प्रकृति स्वयं में सक्षम है कि वह अपने जीवों का पालन कर सके। परंतु अनियंत्रित विकास योजनाओं ने हमें आज इस दौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है कि जहां हम इतना नुकसान कर चुके हैं कि अब उसे सुधारा नहीं जा सकता। यथास्थिति को ही अगर संरक्षित कर लिया जाए तो भी यह मानव जीवन के लिए उपयोगी होगा। इसके पूर्व आधार व्याख्यान अखिल भारतीय सह प्रमुख शिक्षण संस्थान कार्य विभाग पर्यावरण संरक्षण गतिविधि डॉ उमेश कुमार शुक्ला ने बताया कि हमारा पर्यावरण सुरक्षा को लेकर वृहद उद्देश्य है, लेकिन अगर हम पेड़ लगाओ, पानी बचाओ, पॉलिथीन हटाओ का संकल्प लें, तो यही आने वाली पीढ़ियों के लिए वरदान होगा।

निदेषक आगाथ हेल्थ केयर बैंकॉक थाईलैंड डॉ अलका गुप्ता ने कहा कि सामूहिक प्रयास से ही पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसमें नारियों का विशेष महत्व है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद ने ग्रहणीयों को प्राकृतिक चिकित्सक कहा है क्योंकि आदिकाल से वे हमारे खानपान की देखरेख संस्कृति और पर्यावरण का संरक्षण करती आई है।

विभागाध्यक्ष शिशु एवं बाल रोग विभाग शासकीय धन्वंतरी आयुर्वेद महाविद्यालय उज्जैन प्रोफेसर वेद प्रकाश व्यास ने कहा कि आयुर्वेद का उद्देश्य है कि कोई बीमार ही ना रहे। जबकि अन्य चिकित्सक पद्धतियां व्यक्ति के रोगी होने के बाद उसका उपचार करती हैं। आयुर्वेद पर्यावरण के साथ सम्मिलित हो जीवन जीने की पद्धति है। डॉ व्यास ने बताया कि प्रख्यात समाजसेवी व चिंतक नाना जी निरोगी काया के हिमायती थे। वह चाहते थे चिकित्सा पद्धति ऐसी होनी चाहिए कि कोई भी रोगग्रस्त न हो, जब रोग ही नही होगा तो औषधि की आवश्यकता ही नही होगी। इसके पूर्व स्वागत उद्बोधन जय प्रकाश शुक्ल जनसंपर्क अधिकारी महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय ने प्रस्तुत किया और कार्यक्रम की पृष्ठभूमि व औचित्य पर विजय प्रकाश शुक्ल ने प्रकाश डाला। आभार प्रदर्शन डॉ अजय प्रकाश शुक्ल एवं संचालन डॉ नितिन कुमार पांडेय ने किया। शांति पाठ डॉ उमाशंकर द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संयोजन पर्यावरण विज्ञान के शोध छात्र वेदांत शुक्ल ने किया।

 

*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

*जनपद* चित्रकूट