कलयुग में श्रीमद् भागवतकथा सुनने मात्र से प्राणी भवसागर से हो जाता है पार-पारस कृष्ण शास्त्री

उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय (दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट: शहर के शंकर बाजार स्थित बलदाऊ मंदिर में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित एवं परीक्षित मोक्ष कथा प्रसांगिक वर्णन करते हुए वृंदावन से पधारे रसिक बिहारी पारस कृष्ण शास्त्री ने कहा कि सुदामा जी भगवान श्री कृष्ण के परम मित्र थे,उनकी मित्रता ऋषि संदीपनी के गुरुकुल में शिक्षार्जन के समय हुई। सुदामा जी अपना व अपने परिवार (पत्नी तथा बच्चे) का भरण पोषण ब्राह्मण रीति के अनुसार भिक्षा मांग कर करते थे। सुदामा इतने में ही संतुष्ट रहकर हरि भजन करते रहते थे। एक दिन वह अपनी पत्नी के कहने पर सहायता के लिए द्वारकाधीश श्री कृष्ण के पास गए। उनकी दशा देखकर तीनों लोकों के स्वामी के आंखों से आंसू आ गए। उन्होंने अपने मित्र सुदामा की दो तीन सेवा करके उन्हें वहां से विदा कर दिया। जब सुदामा जी अपने नगर पहुंचे तो उन्होंने पाया की उनकी टूटी-फूटी झोपड़ी के स्थान पर सुन्दर महल बना हुआ है।कथा व्यास ने राजा परीक्षित के मोक्ष पर भी विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि राजा परीक्षित को श्राप मिला था कि सात दिवस के बाद उनकी मृत्यु हो जाएगी। परंतु परीक्षित ने इस लघु अवधि का इतना अपूर्व रूप से सदुपयोग किया कि उनके लिए मोक्ष के द्वार खुल गए। लेकिन यहां ध्यान देने की बात यह है कि परीक्षित की मुक्ति केवल हरि चर्चा या कृष्ण लीलाओं को श्रवण करने मात्र से नहीं हुई थी। अपितु पूर्ण गुरु सुखदेव महाराज के द्वारा प्रभु के तत्व रूप को अपने अंदर जान लेने पर हुई थी।उन्होंने कहा कि जस समय राजा परीक्षित को ऋषि के शाॅपवश तक्षक सर्प ने डसना था तो राजा परीक्षित जी के उद्धार के लिए श्रीमद् भागवत (सुधा सागर) की सात दिन की कथा करनी थी। पृथ्वी के सर्व ऋषियों तथा पंडितों से श्रीमद् भागवत की कथा परीक्षित को सुनाने का आग्रह किया गया। वे वास्तव में पंडित थे। वे परमात्मा के विधान को जानते थे। उनको यह भी पता था कि सातवें दिन परिणाम आएगा। विश्व के बुद्धिजीव व्यक्तियों की दृष्टि सातवें दिन परीक्षित का क्या होगा, इस पर टिकी थी। पृथ्वी के सर्व पंडितों ने श्रीमद् भागवत की कथा सुनाने से मना कर दिया तथा कह दिया कि हम अधिकारी नहीं हैं। हम किसी के मानव जीवन के साथ खिलवाड़ करके पाप के भागी नहीं बनेंगे। जिस वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत को लिखा था, उसने भी कथा सुनाने से इंकार कर दिया। सब ऋषियों ने बताया कि स्वर्ग से ऋषि सुखदेव जी को इस कार्य के लिए बुलाया जाए। वे कथा सुनाने के अधिकारी हैं। राजा परीक्षित के लिए स्वर्ग से सुखदेव ऋषि को बुलाया गया। कुछ समय नरक भोगकर युद्धिष्ठिर स्वर्ग में पुण्य फल भोग रहा है। उसने वंश के मोहवश होकर अर्जुन के पौत्रा परीक्षित के उद्धार के लिए अपने कुछ पुण्यों को सुखदेव (शुकदेव) ऋषि को दान किया। उस पुण्यों की कीमत से श्री शुकदेव ऋषि जी विमान में बैठकर पृथ्वी पर परीक्षित राजा को श्रीमद् भागवत की कथा सुनाने आए। सात दिन कथा सुनाकर परीक्षित का राज तथा परिवार से मोह समाप्त किया। तभी तक्षक सर्प ने राजा परीक्षित को कथा के दौरान ही डसा। उसी समय राजा की मृत्यु हो गई। परंतु कथा सुनने से परीक्षित का ध्यान संसार से हटकर स्वर्ग के सुख में लीन था। राजा के पद पर रहते हुए परीक्षित जी ने बड़े-बड़े धर्म यज्ञ किए थे। जिस कारण से उनके पुण्यों का ढ़ेर लगा था। वाणी में परमात्मा का विधान बताया है।आचार्य पारस कृष्ण शास्त्री ने कहा कि मनुष्य जन्म लेने के पश्चात् संसार के मायाजाल में फँस जाता है और उसे मनुष्य योनि का वास्तविक लाभ प्राप्त नहीं हो पाता। उसका दिन काम धंधों में और रात नींद तथा स्त्री प्रसंग में बीत जाता है। अज्ञानी मनुष्य स्त्री, पुत्र, शरीर, धन, सम्पत्ति सम्बंधियों आदि को अपना सब कुछ समझ बैठता है। वह मूर्ख पागल की भाँति उनमें रम जाता है और उनके मोह में अपनी मृत्यु से भयभीत रहता है पर अन्त में मृत्यु का ग्रास हो कर चला जाता है।मनुष्य को मृत्यु के आने पर भयभीत तथा व्याकुल नहीं होना चाहिये। उस समय अपने ज्ञान से वैराग्य लेकर सम्पूर्ण मोह को दूर कर लेना चाहिये। अपनी इन्द्रियों को वश में करके उन्हें सांसारिक विषय वासनाओं से हटाकर चंचल मन को दीपक की लौ के समान स्थिर कर लेना चाहिये। इस समस्त प्रक्रिया के मध्य ओम का निरन्तर जाप करते रहना चाहिये जिससे कि मन इधर उधर न भटके। इस प्रकार ध्यान करते करते मन भगवत् प्रेम के आनन्द से भर जाता है। फिर चित्त वहाँ से हटने को नहीं करता है। यदि मूढ़ मन रजोगुण और तमोगुण के कारण स्थिर न रहे तो साधक को व्याकुल न हो कर धीरे धीरे धैर्य के साथ उसे अपने वश में करने का उपाय करना चाहिये। उसी योग धारणा से योगी को भगवान के दर्शन हृदय में हो जाते हैं और भक्ति की प्राप्ति होती है।‘‘उन्होंने कहा कि कहा कि जो व्यक्ति संस्कार युक्त जीवन जीता है वह जीवन में कभी कष्ट नहीं पा सकता। व्यक्ति के दैनिक दिनचर्या के संबंध में उन्होंने कहा कि ब्रह्म मुहूर्त में उठना, दैनिक कार्यो से निवृत होकर यज्ञ करना, तर्पण करना, प्रतिदिन गाय को रोटी देने के बाद स्वयं भोजन करने वाले व्यक्ति पर ईश्वर सदैव प्रसन्न रहते हैं। श्रीमद भागवत कथा सुनने वाले के सभी दुख दर्द क्षण में दूर हो जाते हैं। कहा कि हमें श्रीराम और श्रीकृष्ण के बताए मार्ग का अनुसरण अपने जीवन में करना चाहिए। उन्होंने श्रद्धालुओं को धर्म के मार्ग पर चलने की सीख दी।उमाशंकर सोनी, अभिषेक सोनी, भगवानदास अग्रहरी,आशीष सोनी, रमेश सोनी, जयशंकर सोनी ,काजल सोनी ,ओम सोनी, मोना सोनी, गौरव केसरवानी, अभय सिंह, राजन गुप्ता, हरि नारायण तिवारी, संतोष बाजपेई, अनिल कुमार, बब्बू भरद्वाज, राजू भारद्वाज, कमल भारद्वाज मौजूद रहे।

 

 

*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

*जनपद* चित्रकूट