हमारे देश में बदलती संस्कृति का बदलता हुआ स्वरूप । अशोक शुक्ल

उत्तर प्रदेश ( राष्ट्रीय दैनिक कर्मभूमि)जौनपुर

 

 

जौनपुर।आज के पारिवारिक संरचना को देखकर काफी तकलीफ होती है कि परिवार के सदस्यों में एक दूसरे के बीच पहले जैसा अपनत्व तथा संस्कार अब नहीं है यहां तक की उनका माता पिता के प्रति भी पहले जैसा अपनापन कहें या व्यवहार वो भी नहीं रहा इसमें काफी बदलाव आया है।कारण जो भी हो लेकिन इसमें गिरावट आई है।ये आधुनिकरण तथा संयुक्त परिवार के विघटन और न्यूक्लीयर परिवार के स्वरुप के कारण है।
बच्चे अब घर से बाहर रहकर शिक्षा ले रहें हैं जिससे परिवार से दूर होते जा रहे हैं तथा परिवार के बीच जो पहले रहते थे उससे उनका पारिवारिक संबंध कायम रहता था तथा अपने माता पिता के अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उनका संबंध बना रहता है जो अब नहीं है।अब तो और सदस्यों की बात छोड़े यहां तक की अपनो से भीे दूर होते जा रहें हैं।
प्रायः ये सुनने में आता है कि लड़के अब वो आदर सम्मान नहीं देते हैं जैसा कि पहले था ये सही बात है लेकिन जड़ा सोचीय पांच साल की उम्र से वह घर से बाहर रहकर पढ़ता है साल में दो तीन बार घर आता है वैसी हालात में ऐसा होना लाजिमी है फिर भी मैं यह कहूंगा कि इसमें माता -पिता का भी दोष है।
पहले भारतीय संस्कृति में पैर छू कर प्रणाम किया जाता था,बाद में ठेहुंना तक झुककर और अब तो नमस्ते पर आ गया है।आज कल के युवा पीढ़ी हाय हलो करना ज्यादा पंसद करते हैं।अगर कोई इस पर नोटिस ले रहा है तो उसे लोग कहतें हैं कि ये पुराने ख्यालात के हैं। संस्कृति से दूर हटकर हम अपने संस्कार को खोते जा रहें हैं।
पहले बुजुर्गों के पास बैठकर उनसे अनुभव लिया जाता था आज इसके विपरीत दूर रहना लोग चाहते हैं, इनकी बात उन्हें जड़ा भी पसंद नहीं पड़ती, जिससे आजकल के बुजुर्ग परिवार से अलग -थलग पड़ते जा रहें रहें हैं।
अफसोस जिसके बदौलत संसार में लोग पहला कदम चलते है उसको हीं कहां जाता है कि इनको चलने नहीं आता थोड़े समय के लिए भी अगर उनके बातों का कदर किया जाता तो उनके मन को कितनी तसल्ली मिलती पर मानना तो दूर उसे सुनना भी नहीं चाहते।
उन्हें ये समझदारी नहीं की विश्वविद्यालयों में प्रधानाध्यापक अपने लेक्चर में पढ़ाई के साथ -साथ अपना अनुभव भी शेयर करते हैं और उनकी बातों को ये ध्यान से सुनते हैं पर घर में ऐसा नहीं करते।
एक अनुभव हीं है इसे व्यवहार में लाकर सिखलाया जाता है।
अतः हर हालत में भारतीय संस्कृति की रक्षा होनी चाहिए तभी हमारा संस्कार बचेगा अन्यथा जो हालात एवम् माहौल देखे जा रहें हैं वो बद से बदतर होते जाएगा।संस्कृति की रक्षा से हीं देश की रक्षा होगी ।