उत्तर प्रदेश(दैनिक कर्मभूमि) चित्रकूट-राष्ट्रीय रामायण मेला के चौथे दिन राम और उनके ऐतिहासिक काव्यों पर शोधपरक विद्वानों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। इसी क्रम में राम विनोद महाकाव्य के खोजकर्ता विद्वान डा0 चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ‘ललित’ विद्वत गोष्ठी का संचालन करते हुए बताया कि 18वीं शताब्दी में रामकथा के क्षेत्र में एक परिवर्तन हुआ और वह परिवर्तन राष्ट्रीयता को लेकर किया गया। गुरु तेगबहादुर के बलिदान और गुरु गोविंद सिंह को महाकवि चंद ने दशम अवतार की संज्ञा दी है, कवि के शब्दां में ‘अवतार कला दश आय लियो’ इस प्रकार समूचे देश में रामकथा के द्वारा राष्ट्र प्रेम और बलिदान की भावना जगाने का कार्य महाकवि चंद के द्वारा पूरा किया गया। श्री दीक्षित ने बताया कि रामकथा के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन भी समय-समय पर हुए हैं। युगीन परिस्थितियों के दवाब और सामाजिक तथा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रामकथा ने अपने भीतर कई तरह के परिवर्तन किए हैं। उदाहरण के रुप में महाकवि चंद जिनकी उपाधि ‘वरदाई’ थी, उन्होंने अपने राज्य का परित्याग कर सम्राट अशोक की तरह ‘बुद्धं शरणं’ की जगह ‘गोविंद शरणं’ को चुना था। महाकवि चंद 18वीं शताब्दी में हिमाचल प्रदेश के विलासपुर के राजा थे और बावन पहाड़ी राज्य उनके अधीनस्थ थे। उन्हीं के विलासपुर राज्य में गुरु गोविंद सिंह ने आश्रय लिया था किन्तु राजनैतिक दवाब के कारण बाद में महाकवि चंद ने गुरु गोविंद सिंह को प्रतिष्ठित करके स्वयं उनके साथ युद्धां में भाग लिया। महाकवि चंद ने संवत 1804 में गंगा यमुना के मध्य भाग फतेहपुर जनपद के हसवां ग्राम जिसे प्राचीन समय में हंसपुरी भी कहा गया है, वहीं पर रहकर वेद साधना की थी और राज पद छोड़कर वेद और साहित्य के द्वारा समाज में क्रांति उत्पन्न की थी। रामचरितमानस की परंपरा में महाकवि चंद ने ‘राम विनोद’ नामक महाकाव्य की रचना संवत् 1804 में हसवां फतेहपुर में की थी जिसमें कुल मिलाकर सात काण्ड हैं और काण्डों के अंतर्गत अध्यायों की रचना की गई है। कुल 5 हजार 328 छंद हैं और इस महाकाव्य में वैदिक छंद, छप्पय छंद, दण्डक छंद, त्रिभंगी छंद, छंद गीतिका, कवित्त दोहा आदि छंदों का प्रयोग महाकवि केशव की रामचन्द्रिका की शैली में मिलता है किन्तु केशव की तुलना में महाकवि चंद के छंद बड़े ही सरस, ओज तथा माधुर्य से हृदय को रसविभोर कर देते हैं। इस महाकाव्य में सीता निर्वसन, लवकुश युद्ध और महानिर्वाण की कथा भी ली गई है। इस महाकाव्य में राम और कृष्ण दोनों की कथाओं का समवेत रुप भी देखने को मिलता है। इस प्रकार रामायण में भागवत की लीलाओं का भी आनंद प्राप्त होता है। इस महाकाव्य की एक दूसरी विशेषता यह है कि इसमें रामकथा के साथ-साथ गुरु गोविंद और स्वयं कवि चंद के द्वारा लड़े गये युद्धों का इतिहास भी मिलता है। इस प्रकार रामकथा के द्वारा अपने समय के इतिहास को भी व्यक्त करने में कवि को सफलता प्राप्त हुई है। कवि का कथन है ‘यहु इतिहास अनूप कियो सोई इतिहास मय’ अर्थात यह अनुपम इतिहास रामकथा है। विद्वत सभा सत्र की अध्यक्षता करते हुए तिरुपति से पधारे ब्रह्मर्षि प्रो0 आर0 एस0 त्रिपाठी (तिरुपति स्वामी) ने अपने समापन व्यक्तव्य में कहा कि अब रामायण के लगभग-लगभग सभी छह काण्ड सम्पूर्ण हो चुके हैं। अब ‘‘राम-राम-राम महर्षि वाल्मीकि की इस उक्ति को सम्मान देते हुए हम सब रामकाज रुप अयोध्या में भव्य राममंदिर निर्माण के कार्य में पूर्ण रुप से संलग्न हो जायेंगे। ज्ञातव्य है कि ब्रह्मर्षि तिरुपति स्वामी भारत स्वाधीनता के अजेय आत्म बलिदानी क्रांतिकारी पंडित चंद्रशेखर आजाद (त्रिपाठी) के भतीजे हैं। प्रो0 त्रिपाठी ने बताया कि हमें भगवद् गीता और वाल्मीकि रामायण दोनों प्रेरणा दे रहे हैं कि भारत को फिर से विश्व गुरु के रुप में स्थापित करने का समय आ गया है और इस देश के 130 करोड लोगों को इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिये अपनी-अपनी महती भूमिका निर्वाह करनी है। चेन्नई से पधारे प्रो0 अशोक कुमार द्विवेदी ने कहा कि पूरे देश से आये विद्वानों ने राम के आदर्श चरित्र को प्रस्तुत करके यह प्रमाणित किया है कि राम जैसा चरित्र और उनके जैसे व्यवहार यदि आज समाज में नहीं रहेगा तो न तो परिवार चलेगा और न ही देश। भारतीय संस्कृति के कारण जो सम्मान विदेशों में भारत देश का है वह राम जैसे आदर्श चरित्रों ने प्रतिष्ठापित की है। भारत को जगतगुरु का सम्मान इन्हीं आदर्शों के कारण मिला है। जिसकी हिफाजत करना हम सभी भारतवासियों का धर्म है। अयोध्या के डा0 हरिप्रसाद दुबे ने बताया कि जीवन संस्कारों का देवता है। तुलसी बार-बार प्रीति की शुभी दृष्टि देते हैं। लोक की उपेक्षा पर तुलसी से अधिक किसी ने नहीं लिखा। माता का लोक पुराण जग प्रसिद्ध है। कौंच (पक्षी) क्रन्दन की संवेदना ने वाल्मीकि का सत्य जगाया। यातना दृष्टि देती है। डा0 दुबे ने आगे बताया कि इतिहासकार लाला सीताराम भूप ने चित्रकूट की झांकी और अयोध्या का इतिहास कृतियां लिखीं। चित्रकूट की पहाड़ी का संदर्भ दिया है। कोलकाता विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर में पढ़ाने के लिए भूप ने आशुतोष मुखर्जी को तैयार किया। बताया कि प्रयाग विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सीताराम सम्मिलित रहे। अयोध्या के पुरातात्विक संदर्भ के अलावा भूप ने शेक्सपियर के ग्रंथों का संस्कृत में अनुवाद कर ख्याति पाई। गोस्वामी तुलसीदास के सम्मान से पुरस्कृत प्रयाग के डा0 सभापति मिश्र ने भगवान राम का चरित्र विश्व के लिए अनुकरणीय बताया। इनकी चौपाई सावर मंत्र की तरह प्रभावी हैं। प्राचीन काल में जब तंत्र, मंत्र, यंत्र द्वारा सिद्धि प्राप्त करने की स्वाथी। परंपरा प्रचलित हुई तब भगवान शंकर ने सभी मंत्रों को कीलित करके शक्ति समाप्त कर दी। कलयुग के दुखी जीवों को देख पार्वती के निवेदन पर भगवान शंकर ने राम के विराट स्वरुप की कल्पना की। उन्होंने कलयुग में चित्रकूट के वन प्रांतर में पार्वती के साथ भील भीलनी के रुप में अवतार लिया और सावर मंत्रों का निर्माण किया। भगवान शिव की कृपा से ही तुलसीदास के हृदय में सुमित उत्पन्न हुई तब उन्होंने रामचरितमानस की रचपा की जिसकी चौपाईयां सावर मंत्रों की तरह सिद्ध हैं। ‘कलि विलोक जग हित हर गिरिजा, सावर मंत्र जाल जिमि सिरजा। अनमिल आखर अरथ न जापू, प्रगट प्रभाव महेश प्रतापू।’ उन्होंने बताया कि मानस की चौपाईयों के पाठ से सभी प्रकार की सिद्धि हो जाती है। सुरेन्द्र सिंह पूर्व प्रधानाचार्य बांदा ने बताया कि भगवान रामराज्य की स्थापना में जाति, धर्म, सम्प्रदाय के भेदभाव समाप्त होंगे। भदोही के डा0 उदयशंकर दुबे ने कहा कि बुंदेलखण्ड की चित्रकूट की धरती पर जहां मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने 11 वर्ष 6 माह 6 दिन साधनारत रहकर ऋषियों-मुनियों सहित दीन-दुखियों की सेवा कर साधना में सफलता हासिल कर लंका सहित समस्त राक्षसों का विनाश किया था। चित्रकूट की धरती पर साधक की साधना पूरी होती है। विद्वत गोष्ठी के दौरान रायबरेली से आईं डा0 चम्पा श्रीवास्तव की पुस्तकों निष्कंप दीपशिखा एवं विन्यास निबन्ध संग्रह का लोकार्पण प्रयाग विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डा0 सभापति मिश्र द्वारा संपन्न हुआ। उन्होंने आध्यात्मिक तपोभूमि चित्रकूट की पावन रज का नमन करते हुए अपने व्याख्यान में कहा कि रामायण, संस्कृति और संस्कार का सिंधु है। तुलसीदास ने रामचरितमानस के सात काण्डों को मानव के सुख और शांति के सात सोपान बताया। कहा कि राचरितमानस मानव जीवन की इनसाइक्लोपीडिया है जो मानव को जीवन जीने की कला सिखाता है। उन्होंने राजा दशरथ, राम, हनुमान, लक्ष्मण एवं मानवेतर प्राणी गिद्धराज जटायु के उद्धरणों के द्वारा बताया कि मानस उस मां के समान है जिसका दरश, परस, मज्जन और पान हर निराश मानव को आशावान, दुर्बल को सबल, नास्तिक को आस्तिक तथा दानव को मानव बनाता है। असम गुवाहाटी के डा0 देवेन चन्द्र दास ‘सुदामा’ ने कहा कि राष्ट्रीय रामायण मेला के माध्यम से देश में राष्ट्रीय एकता सुदृढ़ होगी। यहां केवल रामकथा ही नहीं अपितु देश के विभिन्न प्रांत की झलक देखने को मिलती है। जिसके माध्यम से देश की कला, संस्कृति का आदान-प्रदान भी होता है।
*ब्यूरो रिपोर्ट* अश्विनी कुमार श्रीवास्तव चित्रकूट
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