कोरोना त्रासदी में आम जन की भूमिका.* घनश्याम पाल (सचिव राष्ट्रीय गूंज)

उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) जौनपुर

जौनपुर।उक्त विषयक कुछ लिख रहा हूं, इससे स्पष्ट है कि जिंदा हूं, क्यूंकि लाशे लिखा नहीं करतीं। आगे भी लिखता रहूंगा या नहीं यह केवल मेरे प्रयास से संभव नहीं है अपितु इसका उत्तर सामूहिक प्रयास में निहित है। कोरोना जो आज एक वैश्विक महामारी का रूप धारण कर चुका है, इसे सामूहिक प्रयास से ही समाप्त किया जा सकता है। इसलिए इस मानव त्रासद में आम जन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कोरोना स्वयं में अनोखी त्रासदी है जिससे लड़ा तो सामूहिक जाएगा परंतु समूह से दूर रहकर। यही सबसे बड़ी चुनौती है। जब-जब मानवता पर संकट आया है हमारे रण बांकुरे और वीरांगनाएं मिलकर लड़े हैं और बड़ी से बड़ी चुनौती का मिलकर सामना किया है तथा विजय पाई है। परंतु,महामारी एक ऐसी चुनौती होती है जिससे थोड़े समय के लिए अलग होकर जिसे “सोशल डिस्टेंसिंग” कहा जा रहा है,लड़ा जाता है। आज की चुनौती सामूहिक है और इससे सामूहिक रूप से ही निपटा जा सकता है। आवश्यकता समूह से दूरी बनाने की नहीं बल्कि उचित और पर्याप्त दूरी बनाने की है।
अरस्तू का महत्वपूर्ण कथन कि, “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है” तथा वह समूह में रहना पसंद करता है। लेकिन इसी के साथ यह भी सही है कि मनुष्य एक समझदार प्राणी भी है। आज जरूरत है समझदारी से काम लेने की। मानवता का भविष्य इस समय इसी समझदारी पर टिका हुआ है कि हम लोग कुछ समय के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। इस संकट की घड़ी में हमें जो कुछ करना है उसके लिए कहीं से प्रशिक्षण प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। हमारे देश में यह हमारे जीवन प्रणाली का हिस्सा रहा है, जिसे हम भौतिकता के चक्कर में तथा पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण में भूलते जा रहे हैं। आज पूरी दुनिया नमस्ते जैसे अभिवादन को स्वीकार कर रही है। यह हमारे जीवन प्रणाली का हिस्सा है, अभिवादन में नमस्ते,राम-राम हम यही तो करते हैं। हाथ को साफ रखना तथा साफ-सफाई करना यह भारतीय संस्कृति के लिए कोई नई चीज तो नहीं है। भोजन को ईश्वर तुल्य समझा जाता रहा है तथा रसोई को भगवान। बस यही भारतीय संस्कृति की स्वस्थ परंपराओं का हमें आज और आगे भी अनुपालन करना है।
भारतीय मनीषियों द्वारा हमें योग का ऐसा धरोहर दिया गया है जिसके माध्यम से हम अपना आत्मिक और शारीरिक विकास कर सकते हैं,स्वस्थ रह सकते हैं तथा एक स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकते हैं। योग के माध्यम से हम अपनी भावनाओं पर भी नियंत्रण कर सकते हैं, जिसकी आज बहुत आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति कोरोना की भयावहता से डरा हुआ है। संकल्प को मजबूत करके इस डर को दूर किया जा सकता है और इस संकल्प को मजबूत करने में योग बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है। मेडिटेशन,संगीत हमें एकांत में रहने के लिए सहायता प्रदान कर सकते हैं।
संकट की इस घड़ी में भौतिक दूरी को भले ही समर्थन दिया जा रहा हो,परंतु मानसिक एकता बहुत ही आवश्यक है। मानसिक रूप से पूरे देश को एकजुट होना होगा। कुछ लोग हैं जो संकट की इस घड़ी में भी अपने निहित स्वार्थों के कारण सरकार और व्यवस्था के समक्ष कोरोना से इतर समस्याएं उत्पन्न कर रहे हैं जो कोरोना से लड़ने की ताकत को क्षीण कर रहा है। ऐसे लोग स्पष्ट हो लें की जब समस्त मानवता संकट में होगी तो उनके लिए कहां स्थान होगा। अतः सभी लोगों को मतभेद और मनभेद भुलाकर इस लड़ाई में एकजुट होकर सरकार का सहयोग करना चाहिए और सरकार के आदेश एवं निर्देशों का अनुपालन करना चाहिए।
कोरोना से लड़ने के लिए संस्थाओं एवं वैश्विक संगठनों द्वारा जो भी उपाय सुझाए जा रहे हैं वह तभी सफलिभूत होंगे जब आमजन उनका अनुपालन करेंगे। आज बच्चे, बूढ़े और जवान सभी सैनिक हैं तथा हमारा दुश्मन कोरोना है। एक भी सैनिक कमजोर हुआ तो लड़ाई जीती नहीं जा सकती। घर,परिवार, समाज की रक्षा लोगों से मिलकर नहीं बल्कि दूर रहकर की जा सकती है। ऋषि मनीषियों के संदर्भ में यह एक जनश्रुति है कि मानवता के कल्याण के लिए वह गुफाओं में बैठकर साधना करते हैं। क्या हम घर में बैठ कर मानवता के कल्याण के लिए अपना योगदान नहीं कर सकते हैं? इस विषय में सब को सोचना चाहिए।
आइए संकल्प लें जब तक स्थितियां अनुकूल नहीं हो जाती हम सब मिलकर सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन करेंगे तथा जो भी एडवाइजरी जारी की जाएगी उसका पूरी सामर्थ्य से पालन करेंगे।

रिपोर्ट ‌अभिषेक शुक्ला