उत्तर प्रदेश (दैनिक कर्मभूमि) लखनऊ देश-विदेश के अर्थशास्त्रियों तथा प्रसिद्ध वित्तीय संस्था और रेटिंग एजेंसी मूडीज का मानना है कि कोरोना वायरस का कहर अगर इसी तरह से जारी रहा, तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था एक बार फिर गहरी मंदी की चपेट में आ सकती है। इस संक्रमण के कारण चीन से होने वाला निर्यात काफी घट गया है। कई देशों ने तो उन आयात को ही पूरी तरह बंद कर दिया है, जो बहुत जरूरी नहीं है। वे कंपनियां काफी प्रभावित हुई है, जो कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर पर्यटन उद्योग पर पड़ा है, जो लगभग थम-सा गया है। हर साल लगभग पच्चीस से तीस लाख चीनी पर्यटक दुनिया में घूमने निकलते हैं, लेकिन अब कोई भी देश चीनी पर्यटकों को प्रवेश देने को तैयार नहीं है। दुनिया की अर्थव्यवस्था को लेकर जैसी आशंकाएं थीं, उसका असर मंगलवार को देखने को मिला। सभी प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होने की आशंका से भारत, अमेरिका, यूरोपीय देशों के बाजारों में कोहराम सा मच गया। शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिली। निवेशकों को एक ही दिन में तकरीबन ग्यारह लाख करोड़ रुपये का चूना लगा। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि आने वाले दिनों में मंदी का ऐसा माहौल देखने को नहीं मिलेगा, इसकी गारंटी देने वाला कोई नहीं है। घरेलू शेयर बाजारों के लिए यह आठ सालों की सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट थी। शुक्रवार के हालात के लिए मोटे तौर पर दूसरे देशों से आए भय के संकेत हैं। कोरोना वायरस के अमेरिका समेत यूरोपीय देशों में पहुंच जाने के बाद इसके वैश्विक अर्थव्यवस्था के ज्यादा प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है। अमेरिका का प्रमुख डाऊ जोन्स बाजार वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी के बाद सबसे बड़ी गिरावट के साथ बंद हुआ जबकि सिओल, सिंगापुर, जापान व चीन के शेयर बाजार ने भी ऐतिहासिक गिरावट देखी। यूरोपी के भी तकरीबन सभी शेयर बाजारों में गिरावट रही। पता नहीं शेयर बाजारों में गिरावट का सिलसिला कैसे और कब थमेगा, लेकिन इतना तो है ही कि इस वायरस से मिलकर लड़ने की जरूरत बढ़ती जा रही है। चूंकि कोरोना वायरस संक्रमण बढ़ता ही चला जा रहा है और चीन के साथ-साथ अन्य देशों में भी संक्रमित मरीजों की मौत का आंकड़ा बढ़ने लगा है इसलिए इसके उपाय करने ही होंगे कि वायरस सेहत के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिए और अधिक खतरा नहीं बने। इसके लिए दुनिया को एकजुट होने की जरूरत है। कोरोना वायरस ने एक ऐसे समय में सिर उठाया है जब विश्व अर्थव्यवस्था पहले से ही मंदी की शिकार है। भारत भी इससे वंचित नहीं है। अर्थव्यवस्था में मंदी बड़ी चुनौती बन गई है। हालांकि भारत की सरकार के कुछ कदमों से चालू वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 4.7 फीसद रही है। दूसरी तिमाही में यह 4.5 फीसद रही थी। इसमें मामूली सुधार के संकेत अवश्य है, लेकिन कोरोना की मार से हमें सतर्क रहना होगा। वैश्विक महामारी कोरोना के चलते बढ़ते मृत्यु दर कि इस संकट की घड़ी में भारत को लाॅकडाउन-3 के पश्चात अर्थव्यवस्था का ख्याल महज शराब बिक्री का निर्णय गलत साबित हो सकता है।
लखनऊ से आलोक उपाध्याय की रिपोर्ट ब्यूरो चीफ
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