उत्तर प्रदेश ( दैनिक कर्मभूमि) जौनपुर
दहेज मूल रूप से शादी के दौरान दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को दिए नकदी, आभूषण, फर्नीचर, संपत्ति और अन्य कीमती वस्तुओं आदि की इस प्रणाली को दहेज प्रणाली कहा जाता है। यह सदियों से भारत में प्रचलित है। दहेज प्रणाली समाज में प्रचलित बुराइयों में से एक है। यह मानव सभ्यता पुरानी है और यह दुनिया भर में कई हिस्सों में फैली हुई है।दहेज प्रथा घोर अन्याय और पाप है भारत सरकार को इसको जल्द से जल्द खत्म कर देना चाहिए ।
दहेज प्रथा, जिसमें दुल्हन के परिवार को दूल्हे के परिवार के लिए नकदी के रूप में उपहार देने और कीमती चीजें देना भी शामिल है, की काफी हद तक समाज द्वारा निंदा की जाती है लेकिन कुछ लोगों का तर्क यह भी है कि इसका अपना महत्व है और लोग अभी भी इसका अनुसरण कर रहे हैं तथा यह दुल्हन को कई तरीकों से लाभ पहुँचा रही है।
क्या दहेज प्रणाली के कोई लाभ हैं?कई दंपति इन दिनों स्वतंत्र रूप से रहना पसंद करते हैं और उनको दहेज में मिली ज्यादातर नकदी, फर्नीचर, कार और अन्य ऐसी संपत्तियां शामिल हैं जो उनके लिए वित्तीय सहायता के रूप में काम करती हैं और उन्हें अपना नया जीवन शुरू करने में मदद करती हैं। शादी के वक़्त दोनों दूल्हा और दुल्हन अपना कैरियर शुरू करते हैं और वे आर्थिक रूप से इतने अच्छे नहीं होते कि वे इतने ज्यादा खर्चों को एक बार में वहन कर सकें। लेकिन क्या यह एक वैध कारण है? यदि यह मामला है तो दुल्हन के परिवार पर पूरा बोझ डालने के बजाए दोनों परिवारों को उन्हें बसाने में निवेश करना चाहिए। इसके अलावा यह यह भी हो सकता है कि यदि दोनों परिवार नव-दम्पति को बिना ऋण वित्तीय सहायता प्रदान करें।
कई लोग यह भी तर्क देते हैं कि जो लड़कियां दिखने में अच्छी नहीं होती वे दूल्हे की वित्तीय मांगों को पूरा करके शादी कर लेती हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लड़कियों को बोझ के रूप में देखा जाता है और जैसे ही वे बीस वर्ष की उम्र पार कर लेती हैं उनके माता-पिता की प्राथमिकता यही रहती है कि वे उनकी शादी कर दें। ऐसे मामलों में भारी दहेज देना और यह बुरी प्रथा उन लोगों के लिए वरदान जैसी होती है जो अपनी बेटियों के लिए दूल्हा खरीदने में सक्षम हैं। हालांकि अब ऐसा समय है जब ऐसी सोच को बदलना चाहिए।
दहेज प्रथा के समर्थकों द्वारा यह भी माना जाता है कि दुल्हन और उनके परिवार को भारी मात्रा में उपहार उपलब्ध कराने की स्थिति में समाज में उनके परिवार की इज्ज़त बढ़ जाती है। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर मामलों में इसने लड़कियों के खिलाफ काम किया है।
निष्कर्षदहेज प्रथा के अधिवक्ता इसका समर्थन करने के लिए विभिन्न अनुचित कारणों का समर्थन कर सकते हैं लेकिन तथ्य यह है कि यह पूरी तरह से समाज को अधिक नुकसान पहुंचाता है।दहेज प्रथा जो लड़कियों को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए एक सभ्य प्रक्रिया के रूप में शुरू की गई, क्योंकि वे नए सिरे से अपना जीवन शुरू करती हैं, धीरे-धीरे समाज की सबसे बुरी प्रथा बन गई है। जैसे बाल विवाह, बाल श्रम, जाति भेदभाव, लिंग असमानता, दहेज प्रणाली आदि भी बुरी सामाजिक प्रथाओं में से एक है जिसका समाज को समृद्ध करने के लिए उन्मूलन की जरूरत है। हालांकि दुर्भाग्य से सरकार और विभिन्न सामाजिक समूहों द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद यह बदनाम प्रथा अभी भी समाज का हिस्सा बनी हुई है।
दहेज प्रणाली अभी भी कायम क्यों है?सवाल यह है कि दहेज को एक दंडनीय अपराध घोषित करने के बाद और कई अभियानों के माध्यम से इस प्रथा के असर के बारे में जागरूकता फैलाने के बाद भी लोग इसका पालन क्यों कर रहे हैं? यहां कुछ मुख्य कारण बताए गए हैं कि दहेज व्यवस्था जनता के द्वारा निंदा किए जाने के बावजूद बरकरार क्यों हैं:परंपरा के नाम पर
दुल्हन के परिवार की स्थिति का अनुमान दूल्हे और उसके परिवार को गहने, नकद, कपड़े, संपत्ति, फर्नीचर और अन्य परिसंपत्तियों के रूप में उपहार देने से लगाया जाता है। यह चलन दशकों से प्रचलित है। इसे देश के विभिन्न भागों में परंपरा का नाम दिया गया है और जब शादी जैसा अवसर होता है तो लोग इस परंपरा को नजरअंदाज करने की हिम्मत नहीं कर पाते। लोग इस परंपरा का अंधाधुंध पालन कर रहे हैं हालांकि यह अधिकांश मामलों में दुल्हन के परिवार के लिए बोझ साबित हुई है।प्रतिष्ठा का प्रतीक कुछ लोगों के लिए दहेज प्रथा एक सामाजिक प्रतीक से अधिक है। लोगों का मानना है कि जो लोग बड़ी कार और अधिक से अधिक नकद राशि दूल्हे के परिवार को देते हैं इससे समाज में उनके परिवार की छवि अच्छी बनती है। इसलिए भले ही कई परिवार इन खर्चों को बर्दाश्त ना कर पाएं पर वे शानदार शादी का प्रबंध करते हैं और दूल्हे तथा उसके रिश्तेदारों को कई उपहार देते हैं। यह इन दिनों एक प्रतियोगिता जैसा हो गया है जहाँ हर कोई दूसरे को हराना चाहता है।सख्त कानूनों का अभाव हालांकि सरकार ने दहेज को दंडनीय अपराध बनाया है पर इससे संबंधित कानून को सख्ती से लागू नहीं किया गया है। विवाह के दौरान दिए गए उपहारों और दहेज के आदान-प्रदान पर कोई रोक नहीं है। ये खामियां मुख्य कारणों में से एक हैं क्यों यह बुरी प्रथा अभी भी मौजूद है।
इन के अलावा लैंगिक असमानता और निरक्षरता भी इस भयंकर सामाजिक प्रथा के प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
निष्कर्ष यह दुखदाई है कि भारत में लोगों द्वारा दहेज प्रणाली के दुष्प्रभावों को पूरी तरह से समझने के बाद भी यह जारी है। यह सही समय है कि देश में इस समस्या को खत्म करने के लिए हमें आवाज़ उठानी चाहिए।प्राचीन काल से ही दहेज प्रणाली हमारे समाज के साथ-साथ विश्व के कई अन्य समाजों में भी प्रचलित है। यह बेटियों को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद करने के रूप में शुरू हुई थी क्योंकि वे विवाह के बाद नए स्थान पर नए तरीके से अपना जीवन शुरू करती है पर समय बीतने के साथ यह महिलाओं की मदद करने के बजाए एक घृणित प्रथा में बदल गई।दहेज सोसायटी के लिए एक अभिशाप हैदहेज दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे और उसके परिवार को नकद, संपत्ति और अन्य संपत्तियों के रूप में उपहार देने की प्रथा है जिसे वास्तव में महिलाओं, विशेष रूप से दुल्हनों, के लिए शाप कहा जा सकता है। दहेज ने महिलाओं के खिलाफ कई अपराधों को जन्म दिया है। यहाँ विभिन्न समस्याओं पर एक नजर है जो इस प्रथा से दुल्हन और उसके परिवार के सदस्यों के लिए उत्पन्न होती है:परिवार पर वित्तीय बोझ
हर लड़की के माता-पिता उसके जन्म के बाद से उसकी शादी के लिए बचत करना शुरू कर देते हैं। वे कई साल शादी के लिए बचत करते हैं क्योंकि शादी के मामले में सजावट से लेकर खानपान तक की पूरी जिम्मेदारी उनके ही कंधों पर होती है। इसके अलावा उन्हें दूल्हे, उसके परिवार और उसके रिश्तेदारों को भारी मात्रा में उपहार देने की आवश्यकता होती है। कुछ लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों से पैसे उधार लेते हैं जबकि अन्य इन मांगों को पूरा करने के लिए बैंक से ऋण लेते हैं।
जीवन स्तर को कम करना दुल्हन के माता-पिता अपनी बेटी की शादी पर इतना खर्च करते हैं कि वे अक्सर अपने जीवन स्तर को कम करते हैं। कई लोग बैंक ऋण के चक्कर में फंसकर अपना पूरा जीवन इसे चुकाने में खर्च कर देते हैं।
भ्रष्टाचार को सहारा देनाजिस व्यक्ति के घर में बेटी ने जन्म लिया है उसके पास दहेज देने और एक सभ्य विवाह समारोह का आयोजन करने से बचने का कोई विकल्प नहीं है। उन्हें अपनी लड़की की शादी के लिए पैसा जमा करना होता है और इसके लिए लोग कई भ्रष्ट तरीकों जैसे कि रिश्वत लेने, टैक्स चोरी करने या अनुचित साधनों के जरिए कुछ व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन करना शुरू कर देते हैं।लड़की के लिए भावनात्मक तनाव सास-ससुर अक्सर उनकी बहू द्वारा लाए गए उपहारों की तुलना उनके आसपास की अन्य दुल्हनों द्वारा लाए गए उपहारों से करते हैं और उन्हें नीचा महसूस कराते हुए व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हैं। लड़कियां अक्सर इस वजह से भावनात्मक रूप से तनाव महसूस करती हैं और मानसिक अवसाद से पीड़ित होती हैं।
शारीरिक शोषण जहाँ कुछ ससुराल वालों ने अपनी बहू के साथ बदसलूकी करने की आदत बना रखी है और कभी भी उसे अपमानित करने का मौका नहीं छोड़ते वहीँ कुछ ससुराल वाले अपनी बहू का शारीरिक शोषण करने में पीछे नहीं रहते। कई मामले दहेज की भारी मांग को पूरा करने में अपनी अक्षमता के कारण महिलाओं को मारने और जलाने के समय-समय पर उजागर होते रहते हैं।
कन्या भ्रूण हत्याएक लड़की को हमेशा परिवार के लिए बोझ के रूप में देखा जाता है। यह दहेज प्रणाली ही है जिसने कन्या भ्रूण हत्या को जन्म दिया है। कई दम्पतियों ने कन्या भ्रूण हत्या का विरोध भी किया है। भारत में नवजात कन्या को लावारिस छोड़ने के मामले भी सामान्य रूप से उजागर होते रहे हैं।निष्कर्ष दहेज प्रथा की जोरदार निंदा की जाती है। सरकार ने दहेज को एक दंडनीय अपराध बनाते हुए कानून पारित किया है लेकिन देश के ज्यादातर हिस्सों में अभी भी इसका पालन किया जा रहा है जिससे लड़कियों और उनके परिवारों का जीना मुश्किल हो रहा है।दहेज प्रणाली भारतीय समाज का प्रमुख हिस्सा रही है। कई जगहों पर यह भारतीय संस्कृति में अंतर्निहित होने के लिए जानी जाती है और उन जगहों पर यह परंपरा से भी बढ़कर है। दुल्हन के माता-पिता ने इस अनुचित परंपरा को शादी के दौरान नकद रूपए और महंगे तोहफों को बेटियों को देकर उन की मदद के रूप में शुरू किया क्योंकि उन्हें शादी के बाद पूरी तरह से नई जगह पर अपना नया जीवन शुरू करना पड़ता था।शुरुआत में दुल्हन को नकद, आभूषण और ऐसे अन्य उपहार दिए जाते थे परन्तु इस प्रथा का एकमात्र उद्देश्य समय गुजरने के साथ बदलता चला गया और अब उपहार दूल्हा, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों को दिए जाते हैं। दुल्हन को दिए गए गहने, नकदी और अन्य सामान भी ससुराल वालों द्वारा सुरक्षित अपने पास रखे जाते हैं। इस प्रथा ने निरपेक्षता, लिंग असमानता और सख्त कानूनों की कमी जैसे कई कारकों को जन्म दिया है।
दहेज प्रणाली के खिलाफ कानून
दहेज प्रणाली भारतीय समाज में सबसे जघन्य सामाजिक प्रणालियों में से एक है। इसने कई तरह के मुद्दों जैसे कन्या भ्रूण हत्या, लड़की को लावारिस छोड़ना, लड़की के परिवार में वित्तीय समस्याएं, पैसे कमाने के लिए अनुचित साधनों का उपयोग करना, बहू का भावनात्मक और शारीरिक शोषण करने को जन्म दिया है। इस समस्या को रोकने के लिए सरकार ने दहेज को दंडनीय अधिनियम बनाते हुए कानून बनाए हैं। यहां इन कानूनों पर विस्तृत रूप से नज़र डाली गई है:दहेज निषेध अधिनियम, 1961इस अधिनियम के माध्यम से दहेज देने और लेने की निगरानी करने के लिए एक कानूनी व्यवस्था लागू की गई थी। इस अधिनियम के अनुसार दहेज लेन-देन की स्थिति में जुर्माना लगाया जा सकता है। सजा में कम से कम 5 वर्ष का कारावास और 15,000 रुपये का न्यूनतम जुर्माना या दहेज की राशि के आधार पर शामिल है। दहेज की मांग दंडनीय है। दहेज की कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मांग करने पर भी 6 महीने का कारावास और 10,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 से महिला का संरक्षण बहुत सी महिलाओं के साथ अपने ससुराल वालों की दहेज की मांग को पूरा करने के लिए भावनात्मक और शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता है। इस तरह के दुरुपयोग के खिलाफ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए इस कानून को लागू किया गया है। यह महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाता है। शारीरिक, भावनात्मक, मौखिक, आर्थिक और यौन सहित सभी प्रकार के दुरुपयोग इस कानून के तहत दंडनीय हैं। विभिन्न प्रकार की सजा और दुरुपयोग की गंभीरता अलग-अलग है।
दहेज प्रणाली को समाप्त करने के संभावित तरीके सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों के बावजूद दहेज प्रणाली की अभी भी समाज में एक मजबूत पकड़ है। इस समस्या को समाप्त करने के लिए यहां कुछ समाधान दिए गए हैं:शिक्षा दहेज प्रणाली, जाति भेदभाव और बाल श्रम जैसे सामाजिक प्रथाओं के लिए शिक्षा का अभाव मुख्य योगदानकर्ताओं में से एक है। लोगों को ऐसे विश्वास प्रणालियों से छुटकारा पाने के लिए तार्किक और उचित सोच को बढ़ावा देने के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए जो ऐसी बुरे प्रथाओं को जन्म देते हैं।
महिला सशक्तीकरण
अपनी बेटियों के लिए एक अच्छी तरह से स्थापित दूल्हे की तलाश में और बेटी की शादी में अपनी सारी बचत का निवेश करने के बजाए लोगों को अपनी बेटी की शिक्षा पर पैसा खर्च करना चाहिए और उसे स्वयं खुद पर निर्भर करना चाहिए। महिलाओं को अपने विवाह के बाद भी काम करना जारी रखना चाहिए और ससुराल वालों के व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के प्रति झुकने की बजाए अपने कार्य पर अपनी ऊर्जा केंद्रित करना चाहिए। महिलाओं को अपने अधिकारों, और वे किस तरह खुद को दुरुपयोग से बचाने के लिए इनका उपयोग कर सकती हैं, से अवगत कराया जाना चाहिए।
लैंगिक समानताहमारे समाज में मूल रूप से मौजूद लिंग असमानता दहेज प्रणाली के मुख्य कारणों में से एक है। बहुत कम उम्र से बच्चों को यह सिखाया जाना चाहिए कि दोनों, पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकार हैं और कोई भी एक-दूसरे से बेहतर या कम नहीं हैं।इसके अलावा इस मुद्दे को संवेदनशील बनाने के लिए तरह तरह के अभियान आयोजित किए जाने चाहिए और सरकार द्वारा निर्धारित कानूनों को और अधिक कड़े बनाना चाहिए।
निष्कर्ष दहेज प्रणाली लड़की और उसके परिवार के लिए पीड़ा का कारण है। इस कुरीति से छुटकारा पाने के लिए यहां उल्लिखित समाधानों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और इन्हें कानून में शामिल करना चाहिए। इस प्रणाली को समाप्त करने के लिए सरकार और आम जनता को साथ खड़ा होने की ज़रूरत है।
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